LagatarDesk: खरना कार्तिक मास की पंचमी को मनाया जाता है. खरना नहाय खाय के अगले दिन मनाया जाता है. इसे लोहंडा भी कहा जाता है. इस साल खरना 19 नवंबर दिन गुरुवार को है. इस दिन सूर्योदय सुबह 06:47 बजे पर होगा और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा. छठ महापर्व में खरना का खास महत्व है क्योंकि इस दिन व्रती दिनभर व्रत रखकर रात में खीर का प्रसाद ग्रहण करती है और इसके बाद छठ पूजा का पारण होने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती हैं.
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छठ में खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण. यह शुद्धिकरण केवल तन का नहीं बल्कि मन का भी होता है. इसलिए इस दिन खरना के दिन रात में व्रती खीर खा कर छठ के लिए अपने तन और मन को शुद्ध करती हैं. खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होता है. षष्ठी तिथि को अस्ताचलगामी और अगले दिन उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं.
खरना के दिन बनती है खीर
खरना के दिन खीर, गुड़ तथा चावल का इस्तेमाल कर शुद्ध तरीके से खीर बनायी जाती है. खरना पूजा में खीर के अलावा अलग-अलग क्षेत्र की परंपरा के मुताबिक केला तथा अन्य चीजें भी रखी जाती हैं. इसके अलावा प्रसाद में रोटी, पूरी, गुड़ की पूरियां और मिठाईयां भी भगवान को अर्पित की जाती हैं. छठी मइया को भोग लगाने के बाद व्रती इसी प्रसाद को ग्रहण करती हैं.
खरना का प्रसाद नये मिट्टी के चूल्हे पर बनता है लेकिन बदलते जमाने के साथ गैस चूल्हे का उपयोग भी होने लगा है. प्रसाद बनाने के लिए चूल्हे में आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है. इसमें दूसरे पेड़ों की लकड़ियों का उपयोग नहीं किया जाता है.
खरना का प्रसाद ग्रहण करने के ये हैं नियम
खरना के दिन जब व्रती शाम में पूजा और प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं, उस समय घर में पूरी शांति रखी जाती है. क्योंकि माना जाता है कि आवाज होने पर व्रती प्रसाद खाना बंद कर देती हैं. इस दिन घर के सभी सदस्य व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही उनसे प्रसाद लेते है.
छठ महापर्व चार दिनों का त्योहार
छठ का पर्व चार दिनों का होता है. यह पर्व नहाय खाय से शुरु होता है, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन शाम को अर्घ्य और चौथे दिन सुबह अर्घ्य देकर पारण किया जाता है. इस तरह पारण के साथ छठ महापर्व का समापन होता है.