Satya Sharan Mishra
Ranchi: झारखंड के 30 फीसदी घरों में शौचालय नहीं है. अभी भी ग्रामीण इलाकों में 50 फीसदी से ज्यादा लोग खुले में शौच करते हैं. जिन ग्राम पंचायतों में 100% ओडीएफ का बोर्ड लगा है, वहां की जमीनी हकीकत ये है कि 100 में से सिर्फ 60 से 70 घरों में ही शौचालय हैं.
यह खुलासा होता है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे और नेशनल सैंपल सर्वे की देशभर में की गई सर्वे की रिपोर्ट से. स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत 2019 में राज्य के 29,564 गांवों में 35,87.082 शौचालय बनाये गये हैं. सिर्फ साल 2019 में ही 5,08,290 टॉयलेट बना दिये गये हैं और राज्य के सभी 4,396 ग्राम पंचायत खुले में शौचमुक्त हो गये हैं.
फाइलों में तो राज्य ओडीएफ है, लेकिन हकीकत क्या है यह किसी से छिपा नहीं है. आने वाले पंचायत चुनाव से पहले यह आंकड़ा सामने आ जाएगा कि राज्य के किस पंचायत के कितने घरों में शौचालय बना ही नहीं है.
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मुंह चिढ़ा रहे खुले में शौचमुक्त गांव के बोर्ड
राज्य को ओडीएफ घोषित कर सरकार ने अपनी सफलता का ढिंढ़ोरा पीट दिया, लेकिन हर गांव के बाहर लगा ओडीएफ गांव (यह गांव पूरी तरह खुले में शौचमुक्त है) का बोर्ड उस 30 फीसदी गरीब जनता को मुंह चिढ़ा रहा है जिसे शौचालय मिला ही नहीं. आवेदन जमा कर वार्ड कमिश्नर, मुखिया और पंचायत सचिवालय की दौड़ लगाने के बाद भी जिन लोगों को शौचालय नहीं मिला है वे काफी नाराज हैं. आने वाले पंचायत चुनाव के वक्त इसक हिसाब अपने जनप्रतिनिधि से मांगने की तैयारी कर रहे हैं.
गांवों में स्वच्छ भारत मिशन का मजाक
राज्य में 35,87.082 शौचालय बनाये जाने का दावा किया गया है. शौचालयों की जमीनी हकीकत देखनी हो तो गांवों में जाकर देखिये वहां कैसे स्वच्छ भारत मिशन का मजाक उड़ाया गया है. सिंहभूम, पलामू, लोहरदगा, खूंटी, हजारीबाग, चतरा, गिरिडीह और गोड्डा समेत राज्य के कई जिलों में शौचालय आधे-अधूरे बने हुए हैं. कहीं सिर्फ पेन डालकर छोड़ दिया गया है. आज भी यहां लोग सुबह-शाम लोटा लेकर जंगलों-झाड़ियों के पीछे शौच के लिए जाते दिखते हैं.
बीजेपी की सरकार कहती है कि उसने इस योजना से महिलाओं को सम्मान दिया. क्या यही सम्मान है कि आज भी झारखंड की गरीब महिलाएं शौच के लिए रात होने के इंतजार करती हैं. अगर महिलाओँ को सम्मान और सुरक्षा मिला है तो फिर राज्य में खुले में शौच के लिए गई महिला से दुष्कर्म की खबरें आये दिन क्यों अखबारों में छपती रहती है.
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ओडीएफ के झूठे दावों से राज्यभर के लोगों में गुस्सा
ओडीएफ के झूठे दावों से लोगों का धैर्य टूटने लगा है. बीते दिनों दुमका के सिमरा, दुबरीकलेली पंचायत के लोगों ने खुले में शौचमुक्त गांव का बोर्ड लगाये जाने पर हंगामा किया. लोगों ने कहा कि एक भी घर में शौचालय का निर्माण पूरा नहीं हुआ है, फिर क्यों प्रशासन ने ऐसा बोर्ड लगवाया. हजारीबाग के कोनरा, कोल्हुकला, पंचमाधव, जरहिया, रसोईयाधमना गांव में भी ओडीएफ का बोर्ड लगा था, जिसे लोगों ने हटा दिया.
सरायकेला के मुड़कम पंचायत में खुले में शौचमुक्त का बोर्ड लगाने गये सरकारी कर्मियों को लोगों ने भगा दिया और बोर्ड को जब्त कर लिया था. गढ़वा के कांडी, खरौंदी, रमना, श्रीवंशीधर नगर, सगमा, चिनयां, भवनाथपुर, केतार और खरौंधी में सभी घरों में शौचालय नहीं बने हैं, लेकिन ओडीएफ गांव का बोर्ड लगा दिया गया है. इससे यहां के लोगों में काफी गुस्सा है. बोकारो के बाराडीह और बोदरो गांव में सिर्फ 25 फीसदी शौचालय बने, लेकिन ओडीएफ गांव का बोर्ड लग गया. गुस्साये लोगों ने बोर्ड को उखाड़ कर फेंक दिया है.
पश्चिम सिंहभूम के 217 पंचायतों में कोई ऐसा पंचायत नहीं है जहां शत-प्रतिशत शौचालय बना हो, लेकिन गांव में बोर्ड जरूर लग गया है. कई गांव के लोगों ने बोर्ड को उखाड़ फेंका है. राज्य के लगभग सभी गांवों की हालत ऐसी ही है. लोगों ने ओडीएफ का बोर्ड हटाना शुरू कर दिया है.
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आंकड़ों की जादूगरी
आंकड़ों की जादूगरी में मोदी सरकार माहिर है. भले ही हर घर शौचालय नहीं बने, जो बने वो आधे-अधूरे रहे, लेकिन चुनाव से पहले बीजेपी की सरकार ने इसे अपनी उपलब्धि में शामिल करने के लिए 5 साल में 83.75 फीसदी शौचालय बनवा दिये.
वर्ष शौचालय (% में)
अक्टूबर 2014 16.25%
2015-16 75.78%
2016-17 46.59%
2017-18 76.74%
2018-19 100%
2019-20 100% के साथ + की कोशिश
2020-21 100% के साथ ++ की कोशिश
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100 में 99 शौचालय बंद फिर कैसे हो गया ओडीएफ प्लस
राजधानी रांची, धनबाद समेत राज्य के अधिकांश नगर निगम क्षेत्र ओडीएफ प्लस घोषित हो चुके हैं. क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया यानी क्यूसीआई की जांच में खरा उतरने के बाद नगर निगमों को ओडीएफ प्लस का दर्जा मिला है. क्यूसीआई की जांच का क्या पैमाना है यो वही बता सकता है, लेकिन शहरों के शौचालयों की व्यवस्था अच्छी नहीं है. मुख्य सड़कों के किनारे बने शौचलायों की रोज सफाई जरूर होती है, लेकिन सड़क के अंदर बने शौचालयों की हर रोज सफाई नहीं होती. साबुन और पानी की भी वहां किल्लत होती है. अधिकांश शौचालय तो बंद ही रहते हैं. विधानसभां में जमशेदपुर के विधायक सरयू राय ने भी इस मुद्दे को उठाया था. उन्होंने कहा था कि जमशेदपुर में 100 में से 99 शौचालयों में ताले लटके हैं तो फिर जमशेदपुर कैसे हो गया ओडीएफ प्लस.
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क्या है ओडीएफ, ओडीएफ प्लस और ओडीएफ डबल प्लस
ओडीएफ- शौच मुक्त की जांच की जाती है. 100 फीसदी घरों में शौचालय होने पर ही ODF की घोषणा की जाती है.
ओडीएफ प्लस- यूरीनल का इस्तेमाल लोग करते हैं या नहीं, 100 % पाये जाने पर ODF+ की घोषणा होती है.
ओडीएफ डबल प्लस- मल के निपटान की व्यवस्था की जांच, 100% पाये जाने पर ही ODF++ की घोषणा होती है.
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