गंदगी के बीच हो रहा इलाज, 75% डॉक्टर रहते हैं नदारद
Dhanbad : धनबाद जिले में राज्य व केंद्र सरकार के अधीन कुल करीब 213 सरकारी अस्पताल संचालित हैं. जहां ओपीडी और इनडोर में इलाज कराने वाले मरीजों को 95 फीसदी दवाएं नहीं मिल रही हैं. सदर से लेकर एसएनएमएमसीएच, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अर्बन हेल्थ सेंटर, केंद्रीय अस्पताल और रेलवे हॉस्पिटल समेत जिले के कोने-कोने में हेल्थ सेंटर हैं. हर महीने चिकित्सकों व कर्मियों समेत अन्य मद में 50 करोड़ रुपए से अधिक खर्च होता है. इसके बावजूद गंदगी के बीच भर्ती मरीजों का इलाज होता है. लोगों का आरोप है कि जितने सरकारी डॉक्टर नियुक्त हैं, उनमें 75 फीसदी डॉक्टर ओपीडी व इनडोर में ऑन ड्यूटी नहीं के बराबर दिखते हैं. इसके अलावा 25 फीसदी डॉक्टर जो अस्पताल आते हैं, वे ड्यूटी के नाम पर खानापूर्ति कर चले जाते हैं. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी सबकुछ जानकर भी मौन रहते हैं. कभी-कभार औचक निरीक्षण कर अनुपस्थित चिकित्सक व कर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के नाम पर शो-कॉज करते हैं. जिसका चिकित्सकों व कर्मियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. मरीजों को जो सुविधा मिलनी चाहिए, वह मिल रही है या नहीं, इसे देखने कोई भी अधिकारी नहीं आते हैं.
बैंडेज-सीरिंज और रूई तक खरीदते हैं मरीज
मरीजों का कहना है कि धनबाद कहने के लिए देश की कोयला राजधानी है और राजस्व के मामले में सबसे आगे हैं, लेकिन यहां के लोगों को बुनियादी सुविधाएं तक नसीब नहीं हो पा रही हैं. धनबाद में सदर, एसएनएमएमसीएच, सेंट्रल हॉस्पिटल में सरकारी कर्मचारी के साथ-साथ आम लोग भी इलाज कराने आते हैं. सरकार इन अस्पतालों पर स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करती है, फिर भी मरीजों को जीवन रक्षक दवा की बात तो दूर, बैंडेज-सिरिंज व रूई तक बाहर की दुकानों से खरीदते हैं. रांची व दिल्ली से स्वास्थ्य विभाग की टीम भी कभी कभार आती है, लेकिन मरीजों को इसका लाभ नहीं मिलता है. ओपीडी के मरीजों व उनके घरवालों के लिए बैठने के लिए अस्पताल में कुर्सी तक नहीं मिलती है. सबसे अधिक खराब हालत इनडोर की है, जहां गंदगी के बीच मरीज का इलाज होता है. सरकारी अस्पतालों में धनबाद के अलावा गिरिडीह, जामताड़ा, देवघर, पाकुड, गोड्डा, दुमका जिला से भी मरीज इलाज कराने आते हैं.
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