Amit Singh
Ranchi : क्या आप मानेंगे कि भारत में एक ऐसा रेलवे स्टेशन भी है, जहां पांच ट्रेनें रुकती हैं, लेकिन कोई सवारी वहां नहीं उतरती. कहते हैं कि अंधेरा होते ही यहां एक औरत की आत्मा मंडराती है. इस स्टेशन पर भूत का साया है. 1967 में एक रेलकर्मी ने भूतनी को देखने का दावा किया था. कुछ दिन बाद उसकी मौत हो गयी. भूतनी के खौफ से 42 साल तक यह स्टेशन बंद रहा. 2009 में फिर से इसे खोला गया, लेकिन यहां कोई पैसेंजर नहीं आता. जो रेलकर्मी यहां तैनात हैं, वे भी दहशत के साये में ड्यूटी करते हैं.
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जब ट्रेन आती है, तब खुलती है टिकट खिड़की
रांची जंक्शन से 85 किलोमीटर दूर, रांची रेल मंडल के झालदा और कोटशिला स्टेशनों के बीच में है बेगुनकोदर पैसेंजर हॉल्ट. बेगुनकोदर मशहूर पर्यटन स्थल अयोध्या हिल के करीब पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिले में पड़ता है. इस स्टेशन को 1960 में शुरू किया गया था. इसे खुलवाने में संथाल की रानी लाचन कुमारी की बड़ी भूमिका थी. लेकिन एक अफवाह ने बेगुनकोदर स्टेशन को पैसेंजर हॉल्ट बना दिया. यह अफवाह है स्टेशन पर एक भूतनी के घूमने की. लगातार संवाददाता ने बेगुनकोदन स्टेशन पर भूत के मामले की पड़ताल की. पता चला कि रेलवे अफसर भूतनी के डर से स्टेशन पर नहीं जाते. कहा जाता है कि जो भी रेल कर्मी स्टेशन पर ड्यूटी देता है, उसे यह भूतनी डराती है. कभी-कभी रेलवे ट्रैक पर भी देखी जाती है. इसी भूतनी के डर से बेगुनकोदर रेलवे स्टेशन पर दिन में भी ताला लगा रहता है. जब पैसेंजर ट्रेन आती है, तब टिकट खिड़की खुलती है. फिर खिड़की बंद कर रेलकर्मी चला जाता है. रात के समय यहां कोई रेल कर्मी नहीं रहता.
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1967 में एक रेलकर्मी ने किया था भूत देखने का दावा
लोग मानते हैं कि यहां तकरीबन 45 साल से भूतनी का डेरा है. हालांकि स्टेशन खुलने के समय यहां कोई भूत नहीं था. लेकिन कुछ साल बाद यहां अजीबोगरीब घटनाएं घटने लगीं. 1967 में एक रेलकर्मी ने स्टेशन पर एक महिला को देखने का दावा किया. अफवाह उड़ी कि जिस महिला को उसने देखा था, उसकी मौत उसी स्टेशन पर एक ट्रेन दुर्घटना में हो गयी थी. अब उसकी आत्मा यहां भटकती है और रेलकर्मियों को परेशान करती है.
जांच में नहीं मिला भूत, टीम ने स्टेशन पर रात गुजारी
स्टेशन में भूत के दावे की जांच रेलवे ने करायी. पश्चिम बंग विज्ञान मंच (पीबीबीएम) के 10 सदस्यों ने जिला प्रशासन, पुलिस और रेलवे कर्मचारियों ने स्टेशन पर एक रात गुजारी. किसी को भूत नहीं दिखाई दिया. पीबीबीएम सदस्यों ने स्टेशन के दोनों अंतिम छोर पर डिजिटल कंपास लगाये, ताकि किसी भी चुंबकीय व्यवधान का पता किया जा सके, लेकिन ऐसा कुछ पहचान में नहीं आया. दो डिजिटल कैमरों का उपयोग किया गया, लेकिन कुछ सामने नहीं आया.
कभी स्टेशन था, अब हॉल्ट बन गया है बेगुनकोदर
भूतनी के डर से रेलकर्मियों ने यहां काम करने मना कर दिया, तो रेलवे ने कर्मियों की पोस्टिंग बंद कर दी. आखिरकार इस स्टेशन को बंद कर दिया गया. तकरीबन 42 साल तक स्टेशन बंद था. 42 साल बाद 2009 में रेल मंत्री रहते हुए ममता बजर्नी ने इस स्टेशन को चालू किया. उसी समय रेलवे अफसरों ने बेगुनकोदर को स्टेशन से हॉल्ट की संज्ञा दे दी. कागज में बेगुनकोदर स्टेशन अब हॉल्ट में तब्दील हो गया. हॉल्ट होने की वजह से बेगुनकोदर पर कोई ध्यान नहीं देता है. रांची रेल मंडल की भविष्य में भी बेगुनकोदर में कोई डेवपलमेंट वर्क कराने की योजना नहीं है. यानी, बेगुनकोदर पैसेंजर हॉल्ट पर यात्री सुविधाएं बहाल नहीं होंगी. रांची रेल मंडल, रांची जंक्शन से कोटशिला जंक्शन तक सभी नौ स्टेशनों को धीरे-धीरे डेवलप कर रहा है. यहां तेजी से यात्री सुविधाएं बहाल की जा रही हैं. इन्हें अत्याधुनिक और इलेक्ट्रॉनिक बनाया जा रहा है, मगर बेगुनकोदर में एक बत्ती तक नहीं लगी है.
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