Akshay Kumar Jha
Ranchi: झारखंड बनने के महज पांच साल के बाद से ही मैनहर्ट का जिन्न झारखंड में अपनी मौजूदगी जता रहा है. लेकिन मामले में जांच के आदेश देने में 14 साल लग गये. 2006 में हुए मैनहर्ट घोटाले के बाद 2009 में कोर्ट के आदेश के बाद निगरानी विभाग में मामले को लेकर पीई (preliminary, Enquiry) दर्ज की. पीई की जांच में गड़बड़ी भी पायी गयी थी. लेकिन मामले में निगरानी में एफआइआर दर्ज नहीं हो सका. उस समय IG विजिलेंस मौजूदा डीजीपी एमवी राव थे.
उन्होंने कोर्ट के आदेश के बाद पीई दर्ज की थी. लेकिन जांच सही पाये जाने के बावजूद भी उन्हें मामला दर्ज करने की अनुमति नहीं मिली. दरअसल उस वक्त निगरानी आयुक्त पूर्व मुख्य सचिव राजबाला वर्मा थी. राजबाला वर्मा को बतौर IG विजिलेंस एमवी राव ने 6 अगस्त 2009, 22 सितंबर 2010, 04 दिसंबर 2010, 20 जनवरी 2011 और 28 मार्च 2011 को पत्र लिखकर निर्देश मांगा. लेकिन एक बार भी निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा की तरफ से किसी तरह का कोई जवाब नहीं आया. लिहाजा मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
तीन बार हुआ पीआइएल
2010- वर्ष 2010 में मो. ताहिर नाम के एक शख्स ने मामले को लेकर हाइकोर्ट में पीआइएल किया. जिसके वकील राजीव कुमार थे. पीआइएल की सुनवाई करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद और नरेंद्र नाथ तिवारी ने 18 सितंबर 2010 को फैसला सुनाया. दो जजों वाली बेंच ने याचिकाकर्ता को डीजी विजिलेंस के पास जाकर शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा. आदेश में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की शिकायत में किसी तरह कोई सच्चाई है, तो आगे की कानूनी कार्रवाई हो. लेकिन किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकी
2012- तत्कालीन निगरानी आयुक्त की तरफ से आइजी विजिलेंस को कोई मार्गदर्शन नहीं मिलने के बाद मामले में दूसरा पीआइएल वर्ष 2012 में दायर हुआ. कोर्ट ने जब राज्य सरकार से जवाब मांगा तो सरकार ने जवाब दिया कि महाधिवक्ता की राय के बाद सीएम ने मामले को लेकर निगरानी से जांच कराने को मना किया है.
उस वक्त झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा थे. कहा गया कि अब मामले की जांच खुद विभाग यानी नगर विकास विभाग करेगा
2016- कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दुबे ने मामले को लेकर तीसरा पीआइएल वर्ष 2016 में दायर किया. इस पीआईएल पर सुनवाई करते हुए 28 सिंतबर 2018 को हाईकोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध घोष और जस्टिस डीएन पटेल ने फैसला सुनाया कि निगरानी आयुक्त एक वाजिब समय में आइजी विजिलेंस की चिट्ठी पर निर्णय लें. लेकिन जिस वक्त कोर्ट की तरफ से यह फैसला सुनाया गया. राज्य में मैनहर्ट में आरोपी रघुवर दास की ही सरकार थी.
सरकार की तरफ से एसीबी को किसी तरह का कोई निर्देश ना देने के पीछे का मकसद पानी की तरफ साफ है. 2020 में मामले को लेकर सरयू राय ने मौजूदा हेमंत सरकार के डीजीपी एमवीराव को आदेवन दिया. पूर्व मंत्री सरयू राय ने मैनहर्ट मामले पर पूरे साक्ष्य जुटाकर एक किताब लिख डाली. साथ ही सरकार से बार-बार जांच को दोहराते रहे.
अब जाकर एक अक्टूबर 2020 को सीएम हेमंत सोरेन की तरफ से एसीबी जांच के लिए हरी झंडी मिली है. मामले में एसीबी ने रघुवर दास समेत कई लोगों पर मामला दर्ज कर जांच की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
क्या है मैनहर्ट मामला
2006 में रघुवर दास, अर्जुन मुंडा सरकार में उप मुख्यमंत्री औऱ नगर विकास मंत्री थे. रांची शहर में सिवरेज और ड्रेनेज को लेकर काम होना था. विभाग ने इस काम के लिए ORG/SPAM Private Limited का चयन किया. कंपनी ने काम शुरु कर दिया. करीब 75 फीसदी डीपीआर बनने के बाद कंपनी से काम वापस ले लिया गया और काम मैनहर्ट कंपनी को दे दिया गया. आरोप है कि मैनहर्ट को काम देने के लिए विभाग ने शर्तों का उल्लंघन किया. शर्त थी कि उसी कंपनी को काम मिलेगा, जिसका टर्नओवर 300 करोड़ है और जिसे सिवरेज-ड्रेनेज दोनों काम में तीन साल काम करने का अनुभव हो. मैनहर्ट शर्तों को पूरा नहीं करता था. बावजूद इसके विभाग ने इस कंपनी को काम दे दिया.
मामला विधानसभा में उठा. विधानसभा ने जांच के लिये एक कमेटी बनायी. जिसमें सरयू राय, प्रदीप यादव और सुखदेव भगत सदस्य थे. समिति ने रिपोर्ट सौंपी की मैनहर्ट को काम देने में गड़बड़ी हुई है. साथ ही एक स्वतंत्र एजेंसी से जांच करने की सिफारिश की. लेकिन विधानसभा समिति की सिफारिश को नहीं माना गया. बार-बार जांच को रोका गया. लिहाजा जांच शुरू होने में 20 साल लग गए.