Faisal Anurag
मुकुल राय घर वापसी कर रहे है. जितिन प्रसाद पुराने घर को क्षेत्रीय पार्टी बता कर कांग्रेस छोड़ भाजपा में जा चुके हैं. राजस्थान में सचिन पायलट सक्रिय दिख रहे हैं. प्रशांत किशोर शरद पवार के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों को साथ लाने की रणनीति पर विचार विमर्श कर चुके हैं. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की दिल्ली में प्रधानमंत्री के साथ अकेले की गयी मुलाकात को लेकर राजनीतिक कयास के बीच शिवसेना नेता संजय राउत का यह बयान आया है कि नरेंद्र मोदी देश के सबसे बड़े नेता है. इस बयान के राजनीतिक मायने को नकारा नहीं जा सकता है. संजय राउत पिछले चार सालों से नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुलकर बोलते रहे हैं.
राजनीति में अचानक बढ़ी सरगर्मी के संकेत बता रहे हैं कि आनेवाले दिनों में बड़े राजनीतिक उठापटक होने जा रहा है. दो दिनों में दिल्ली में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अमित शाह, नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा से मुलाकात के राजनीतिक नतीजे जल्द ही देखने को मिलेंगे. 2019 के बाद से उपेक्षित अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल ने अमित शाह से मुलाकात की है. इसके साथ ही केंद्र में मंत्रीमंडल विस्तार की अटकलें बढ़ गयी हैं. 2019 में नरेंद्र मोदी मंत्रीपरिषद में 54 सदस्यों को शामिल किया गया था. केंद्र में अधिकतम 81 मंत्री बनाए जा सकते हैं. यान अभी 31 लोगों का संतुष्ट करने के दरवाजे खुले हुए हैं. पिछले दो सालों से अनेक लोग केंद्रीय मंत्री परिषद के विस्तार की उम्मीद में हैं. कांग्रेस से भाजपा में आये जोतिरादित्य सिंधिया भी इसमें एक हैं. नरेंद्र मोदी के सात साल के शासन में पहली बार भाजपा के आंतरिक असंतोष की चर्चा सरेआम हो रही है.
भाजपा आरएसएस के बड़े नेताओं की बैठक में आक्रामक प्रचार से उस नरेटिव को बदलने का निर्णय किया गया जो कोविड की तबाही के बाद पैदा हुआ है. इस नरेटिव से ब्रांड मोदी को गहरा धक्का लगा है. बंगाल की हार ने तो मोदी शाह के चुनावी अपराजेयता की नरेटिव को क्षत विक्षत कर दिया है. बंगाल की हार का सदमा गहरा है और उस सदमे से निकलने की कोशिशें भी इन राजनीतिक सरर्गियों में तलाशी जा सकती है.
जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल कराकर जो माहौल बनाने की कोशिश की गयी, उसे मुकुल राय की घरवापसी से कड़ी टक्कर मिल रही है. बंगाल में अभी भाजपा को और चुनौती मिलने जा रही है. भाजपा में शामिल हुए अनेक नेता तृणमूल कांग्रेस में जाने का फैसला कर चुके हैं. बंगाल के चुनाव को देश ने भाजपा के प्रचार अभियान और जीत के लिए की गयी हरमुमकिन कोशिश ने राष्ट्रीय सवाल बना दिया. यही कारण है कि बंगाल के साथ हुए अन्य चार राज्यों के चुनाव परिणाम के असर को कम कर देखा गया.
ममता बनर्जी की यह कामयाबी है कि पहली बार उन्होंने अमित शाह शैली से बढ़कर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी की है. महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा को इसी तरह की चुनौती एनसीपी और शिवसेना ने भी दिया था. अजित पवार प्रकरण को इस संदर्भ में याद किया जा सकता है. ममता बनर्जी की निगाह यूपी और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने पर है. इसके लिए वे उन तमाम राजनैतिक ताकतों को एकजुट करने की प्रक्रिया में हैं, जो यूपी में भाजपा को चुनौती दे सकते हैं. प्रशांत किशोर इसके लिए माहौल बनाने में जुट गए हैं. शरद पवार के साथ उनकी मुलाकत इसी एजेंडा का हिस्सा है. प्रशांत किशोर ने 2014 में नरेंद्र मोदी के साथ काम किया था, लेकिन अब वे भाजपा को हराने के लिए भाजपा विरोधियों के साथ बातचीत शुरू कर चुके हैं. विभाजित विपक्ष कमजोर जरूर दिख रहा है, लेकिन जिस तरह के हालात देश में हैं उनकी एकजुटता भाजपा की राह की बड़ी बाधा बनने की क्षमता रखती है.