Vijay Shankar Singh
पिछले सात दिनों में करीब 10 हजार लोग कश्मीर से पलायन कर गये. यह खबर तो आपने अखबारों में पढ़ी ही होगी. जम्मू कश्मीर की कश्मीर घाटी से, 1990 के बाद का सबसे बड़ा पलायन है, यह. यह स्थिति, दुःखद है और शर्मनाक तो है ही. आज तक यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि, कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिये कौन जिम्मेदार है और यह सवाल जो बार-बार पूछते आ हैं, वे भाजपा और संघ के लोग हैं. और आज, भाजपा और संघ की सरकार है. जम्मू कश्मीर सीधे केंद्र सरकार के आधीन है. उसकी जिम्मेदारी है कि वह इस पर ध्यान दे. सावरकर महात्म्य पर बाद में भी बहस और चर्चा हो सकती है.
जब भाजपा पीडीपी के साथ जम्मू कश्मीर में सत्ता में थी, तो आरएसएस के राम माधव, जम्मू कश्मीर में पार्टी के प्रभारी थे. वे आरएसएस के थिंक टैंक कहे जाते थे. कहते हैं उन्होंने कश्मीर के आतंकवाद को कम करने के लिये काम किये हैं. वहां के सारे मामले वे खुद ही देख रहे थे. अब हालात बेहद बुरे हो गए हैं. वहां के राज्यपाल और फिर उपराज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने साफ-साफ कहा है कि उनके समय में श्रीनगर से आतंकी दूर ही रहते थे. अब यह घटनाएं रोज घट रही हैं.
कश्मीरी पंडित का घाटी से पलायन पर सवाल उठाना, भाजपा और आरएसएस का सबसे प्रिय एजेंडा है. जब ये सत्ता में नहीं रहते हैं, तो कश्मीर से पंडितों का पलायन इन्हें बहुत याद आता है. पर यह भूल जाते हैं कि जब-जब यह सत्ता में रहते हैं, तभी कश्मीर घाटी से पंडितों का पलायन हुआ है. 1990 में तब, जब ये बीपी सिंह सरकार के साथ थे और अब 2021 में जब जम्मू कश्मीर सीधे केन्द्राधीन हैं. 1990 में व्यापक पलायन के बाद भी भाजपा ने अपना समर्थन बीपी सिंह की सरकार से वापस नहीं लिया. समर्थन लिया भी तो मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद निकली रथयात्रा में आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद.
आज सुरक्षा बलों का सबसे अधिक डिप्लॉयमेंट जम्मू कश्मीर में है. सेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ, जेके पुलिस सहित अन्य सुरक्षा बल हैं. वे काबिल भी हैं और पूरी कोशिश भी कर रहे हैं. सिविलियन तो मारे जा ही रहे हैं, साथ ही सुरक्षा बल के जवान भी शहीद हो रहे हैं. सरकार कह रही है कि, और सुरक्षा बल वहां बढ़ाये जाएंगे. सुरक्षा बल बढ़ाना, खुफिया विभाग को और सक्रिय तथा सक्षम करना, यह सब तो सरकार का प्रशासनिक दायित्व और कर्त्तव्य है ही. और यह सब काम किये भी जा रहे होंगे. पर केवल सुरक्षा बल के ही दम पर आतंकवाद पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है. यह वैसे ही है, जैसे कि केवल सेना के दम पर सीमा विवाद हल नहीं किया जा सकता है.
आतंकवाद रोकने के लिये जरूरी है प्रदेश की जनता का पूरा साथ मिले, सरकार और सत्तारूढ़ दल में उस प्रदेश के लोगों का भरोसा हो, सत्ता और विपक्ष में इस बात पर सहमति हो कि, आतंकवाद का खात्मा ज़रूरी है. आतंकवाद, खुद भी राजनीति की उपज है, तो इसका समाधान राजनीतिक चुप्पी से नहीं हो सकता है. राजनीतिक प्रक्रिया को तेज करने के साथ सरकार को जम्मू कश्मीर की जनता और वहां के नेताओं का भरोसा जीतना होगा और उन्हें इस मुहिम में जोड़ना होगा.
पहल तो सरकार को ही करनी होगी. अब तो जम्मू कश्मीर की सारी समस्याओं की जड़ समझा जाने वाला संविधान का अनुच्छेद 370 भी संशोधित हो चुका है. पर उससे भी बहुत फर्क वहां के हालात पर नहीं पड़ा है. यह बात आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने स्वयं स्वीकार की है. अब सरकार क्या कदम उठाती है यह तो बाद में ही पता चलेगा पर फिलहाल वहां हालात खराब हैं.
डिस्क्लेमरः लेखक सेवानिवृत पुलिस अधिकारी हैं.