Shri Ram Shaw
New Delhi : इस वर्ष 5 अगस्त को राम जन्मभूमि का पावन शिलान्यास अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और भारतवासियों का 500 वर्षों का लंबा इंतजार समाप्त हुआ. रामलला अपने स्थान पर विराजमान हो गये.
इस पावन उपलब्धि के बाद अब बिहार स्थित जनमत पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सीता जी के उद्भव स्थल सीतामढ़ी क्षेत्र के पुनौरा धाम में सीता के जन्मस्थली कुंड के जल के समक्ष पूजा वंदन करके विशाल एवं भव्य सियाराम मंदिर निर्माण का बीड़ा उठाया है.
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रभात सिंह, प्रदेश अध्यक्ष निमेष शुक्ला और राष्ट्रीय महासचिव अनिल कुमार मौर्य ने पटना से फोन पर Lagatar News Network से बात करने के दौरान बताया कि मंदिर निर्माण की रूपरेखा विस्तार से कोरोना काल के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से दी जायेगी. मंदिर निर्माण का संकल्प उसी मुहूर्त में लिया गया जिस अभिजीत मुहूर्त में रामलला का जन्म हुआ था. हम सब संकल्प लेते हैं कि सिया को राम के साथ, इनके अभिन्न के साथ उनके ससुराल बिहार की धरती पर सम्मान और भव्यता से स्थापित करेंगे जिस भव्यता के साथ अयोध्या में विराजमान हुये हैं.
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सीतामढी में प्रभू श्रीराम और माँ जानकी से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों की महत्ता
सीतामढी का स्थान हिंदू धर्मशास्त्रों में अन्यतम है. सीतामढ़ी पौराणिक आख्यानों में त्रेतायुगीन शहर के रूप में वर्णित है. त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री तथा भगवान राम की पत्नी देवी सीता का जन्म पुनौरा में हुआ था. पौराणिक मान्यता के अनुसार मिथिला एक बार दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी. पुरोहितों और पंडितों ने मिथिला के राजा जनक को अपने क्षेत्र की सीमा में हल चलाने की सलाह दी. ऐसा कहा जाता है कि सीतामढ़ी के पुनौरा नामक स्थान पर जब राजा जनक ने खेत में हल जोता, तो उस समय धरती से सीता का जन्म हुआ था. सीता जी के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई पड़ा. फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा.
ऐसी जनश्रुति है कि सीताजी के प्रकाट्य स्थल पर उनके विवाह पश्चात राजा जनक ने भगवान राम और जानकी की प्रतिमा लगवायी थी. लगभग 500 वर्ष पूर्व अयोध्या के एक संत बीरबल दास ने ईश्वरीय प्रेरणा पाकर उन प्रतिमाओं को खोजा और उनका नियमित पूजन आरंभ किया गया. यह स्थान आज जानकी कुंड के नाम से जाना जाता है. प्राचीन कल में सीतामढी तिरहुत का अंग रहा है.
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एक नजर श्रीराम जानकी की यात्रा पर
14 वर्ष के वनवास में श्रीराम प्रमुख रूप से 17 जगह रुके. भगवान राम, माता जानकी और लक्ष्मण की यात्रा अयोध्या जो की वर्तमान में उत्तर प्रदेश में है वहीं से शुरू हुई. प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ. इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया. संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया.
रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की. इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है.
जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है. जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे. वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की. आज जरूरत इस बात की है कि हम इन महत्वपूर्ण स्थलों की पहचान कर उन्हें विकसित करें.
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1.तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी. यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की.
2.श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था. यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था. श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है.
3.कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे.
4.प्रयाग : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे. प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है.
5.चित्रकूणट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट. चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं. तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है. भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं.
6.सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था. हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में ‘रामवन’ नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था.
7.दंडकारण्य: चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गये. असल में यहीं था उनका वनवास. इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था. दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं. दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था. इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम. गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है. कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताये थे. स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे. ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है.
8.पंचवटी नासिक : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए. यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है. यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी. राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था. गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी. वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है.
9.सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है. जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है. इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया. रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था. इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी.
10.पर्णशाला: पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है. रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को ‘पनशाला’ या ‘पनसाला’ भी कहते हैं. पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है. मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था. हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था. इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी. इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है. यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है.
11.तुंगभद्रा : सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गये. तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए.
12.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्मण चले सीता की खोज में. जटायु और कबंध से मिलने के पश्चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे. रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है. शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा. ‘पम्पा’ तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है. इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है. पौराणिक ग्रंथ ‘रामायण’ में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है. केरल का प्रसिद्ध ‘सबरिमलय मंदिर’ तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है.
13.ऋष्यमूक पर्वत : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े. यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया. ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था. ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है. पास की पहाड़ी को ‘मतंग पर्वत’ माना जाता है. इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे.
14.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े. तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्तारित है. कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्क स्ट्रेट से घिरा हुआ है. यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया. लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया.
15.रामेश्वरम : रामेश्वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है. रामेश्वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है. महाकाव्य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी. रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है.
16.धनुषकोडी: वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो. उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया. धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है. धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है. धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्नार से करीब 18 मील पश्चिम में है.
इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है. इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है. धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है.
17.’नुवारा एलिया’ पर्वत श्रृंखला: वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था. ‘नुवारा एलिया’ पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं. यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है.
श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है. आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए हैं.
अनिल कुमार मौर्य ने कहा कि हमलोग लम्बे समय से विभिन्न माध्यमों से माँ जानकी से जुड़े स्थलों के विकास की मांग उठाते आ रहे हैं. यह अब पहले से भी ज्यादा प्रासंगिक हो चुका है. पुनौरा धाम में भूमिपूजन और 100 फीट से उंचे मन्दिर निर्माण के संकल्प के साथ मिल रहे जनसहयोग से जनमत के अभियान को बल मिला है.
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