Ranchi : झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर अभी तक कोई फैसला नहीं आया है. खबर है कि बारह-आठ के बीच पेंच फंस गया है. आजसू 12 सीटों पर अड़ी है, जबकि भाजपा आठ से आगे नहीं बढ़ रही है. बीच का रास्ता 10 सीट पर निकल सकता है. ले-देकर हालात पिछली विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे से बहुत ज्यादा जुदा नहीं नजर आ रहा है. चंदनकियारी, जुगसलाई, ईचागढ़, लोहरदगा सीट को लेकर जहां पेंच फंसी है. वहीं डुमरी और टुंडी में आजसू की सफलता को लेकर भी भाजपा सशंकित है. खबर यह भी है कि भाजपा के नेता जयराम महतो के भी संपर्क में हैं. लोकसभा चुनाव में जयराम महतो की पार्टी के प्रदर्शन ने सभी को चौंकाया है. चाहे वह भाजपा हो, कांग्रेस हो, झामुमो हो या दूसरा कोई दल. जयराम महतो सबके लिए हॉट केक बन चुके हैं.
सीट शेयरिंग पर कई बार हुई बात, पर बनी नहीं
सूत्रों ने जो जानकारी दी है कि उसके मुताबिक, आजसू और भाजपा के बीच सीट शेयरिंग को लेकर कई बार बात हो चुकी है. लेकिन बात बन नहीं पा रही है. भाजपा के कुछ नेताओं का कहना है कि अगर आजसू की जगह जयराम महतो को एनडीए में शामिल कर लिया जाये, तो इसका ज्यादा फायदा हो सकता है. आजसू पार्टी लोगों के लिए देखी, जानी और उम्मीदों पर तौली हुई पार्टी है. जबकि जयराम महतो की पार्टी के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है. नया चेहरा , नई पार्टी और उनसे जुड़े लोगों की उम्मीद को भी अभी तक तौला नहीं गया है. भाजपा को एक फायदा यह भी दिख रहा है कि जयराम महतो कम सीटों पर भी राजी हो जायें और लोकसभा चुनाव के परिणाम से उनकी पार्टी से गठबंधन करने में ज्यादा लाभ मिलने के संकेत मिल रहे हैं.
सुदेश को सिल्ली में अभी से करनी पड़ रही मेहनत
भाजपा के कुछ नेता इस बात को लेकर भी आजसू से दिक्कत महसूस करते हैं कि कोई भी बात दिल्ली दरबार में ही हो पाती है. राज्य स्तर पर किसी तरह की संयुक्त रणनीति बनाने में भाजपा के लोकल नेताओं को परेशानी होती है. कई नेता उस घटना को बार-बार दोहराते हैं, जिसमें भाजपा के शिवराज सिंह चौहान, कर्मवीर सिंह, बाबूलाल मरांडी जैसे नेताओं को आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो का इंतजार करना पड़ा था. इस बीच इस रिपोर्ट भी चर्चा है कि आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो खुद अपने क्षेत्र सिल्ली में घिरते नजर आ रहे हैं. खुद को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें अभी से ही सिल्ली में बहुत मेहनत करनी पड़ रही है. गोमिया में जयराम महतो की ज्यादा धमक महसूस की जा रही है. रामगढ़ में भी स्थिति बहुत ठीक नहीं है. पारिवारिक पार्टी होने का तमगा लग गया है सो अलग. कुल मिलाकर भाजपा खेमा यह देख रहा है कि आजसू के साथ सीट शेयरिंग से आजसू को ज्यादा और भाजपा को कम फायदा होगा, जबकि जयराम से अगर बात बनती है, तो भाजपा को अधिक फायदा मिलेगा.
आजसू को लेकर भाजपा सतर्क
आजसू को लेकर इस बार भाजपा पूरी तरह सतर्क और अलर्ट है. आजसू के पुराने फैसलों को ध्यान में रखकर भाजपा रिश्तों को तौल रही है. भाजपा नेताओं का मानना है कि अगर वह आजसू पर पूरी तरह निर्भर रहें, तो झटका भी लग सकता है. ऐसी सोच की वजह भी है. वर्ष 2014 में स्थानीय नीति के मामले में आजसू ने दोहरी चाल चली थी. कैबिनेट में मंत्री चंद्रप्रकाश की सहमति और बाहर पार्टी का सरकार से विरोध. भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि ऐसी परिस्थितियां दोबारा पैदा हों. हाल ही में गांडेय उपचुनाव में भी, जो भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था, आजसू पहले तो असमंजस की स्थिति में रही, फिर आजसू के उम्मीदवार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में उतर गये. गांडेय उपचुनाव में आजसू की तरफ से प्रचार करने के लिए कोई नेता नहीं गया. इन वजहों से भाजपा चाहती है कि उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार हो और आजसू भी सहयोगी हो. आजसू को वही सीट मिले, जहां वह मजबूत स्थिति में है.
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