Deepak Aseem
अब समय आ गया है कि हमें संवैधानिक पदों से रिटायर होने वाले लोगों के लिए एक नियमावली बनानी पड़ेगी. लोकतंत्र को कायम रखने के लिए अब यह बेहद ज़रूरी हो गया है. यह सरकार तो ऐसा नहीं करने वाली मगर दूसरी राजनीतिक पार्टियों को यह वादा करना चाहिए कि वे सत्ता में आए तो संवैधानिक पदों से रिटायर होने वाले बाबू साहेबान को किसी भी किस्म की सत्ता और सत्ता से जुड़ी सुविधाओं से सम्मानजनक दूरी पर रखेंगे.
अगर ऐसा नहीं होता तो सारी संवैधानिक संस्थाओं की जड़ों में मट्ठा पड़ जाएगा. होगा यह कि रिटायर होने वाला आदमी पहले ही सरकार से जुड़ी फाइलें निपटाएगा और वही करेगा जो सरकार चाहती होगी.
चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को चुनाव आयुक्त के पद से रिटायर होते ही गोवा का राज्यपाल बना देना बहुत ही ज्यादा शर्मनाक है. यह सत्ता के लिए भी शर्मनाक है और सुनील अरोड़ा के लिए भी. मगर शर्म जैसी चीज इन दिनों अप्राप्य हो चली है.
रेमडिसिविर से ज्यादा किल्लत इन दिनों शर्म की है. अस्पताल में गलती से बेड मिल सकता है मगर बड़े पदों पर बैठे लोगों में शर्म नहीं मिलती. नेताओं में तो इसका नितांत अभाव ही होता है.
कोई पूछे कि सुनील अरोड़ा को राज्यपाल बनाए जाने की चर्चा क्या अंदरखाने पहले से नहीं चल रही होगी. ऐसे में सुनील अरोड़ा ने चुनाव आयुक्त रहते हुए क्या सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के मनमाफिक फैसले नहीं लिये होंगे. बंगाल में आठ चरण का चुनाव हो या ईवीएम हटाने की मांग खारिज करना, सभी फैसले भाजपा को सूट करने वाले हैं. और भाजपा की ही सरकार ने उन्हें राज्यपाल बनाया है. इसमें जो संधिसूत्र है, उसे बच्चा भी पकड़ सकता है.
उधर चीफ जस्टिस के पद से रिटायर हुए और राममंदिर के पक्ष में अहम फैसला देने वाले जज रंजन गोगोई को भारतीय जनता पार्टी की तरफ से राज्यसभा भेज दिया गया. ऐसे और भी कई उदाहरण हैं कि कल तक आप किसी सरकारी कुर्सी पर बैठ कर इंसाफ के नाम पर एक पार्टी को फायदा पहुंचा रहे थे और रिटायर होते ही आपको पार्टी का टिकिट मिल गया.
सत्ता और संवैधानिक पदों से रिटायर होने वाले लोगों के बीच समझौते और सौदे पहले भी होते रहे होंगे, मगर वो इतने खुलेआम नहीं होते थे. यह ऐसा ही है कि किसी चकले पर साइन बोर्ड लगा दिया जाए. खुलेआम चलने वाले चकलों में भी इतनी शर्म तो होती है कि साइन बोर्ड नहीं लगाया जाता. मगर यहां तो चकले पर साइन बोर्ड लगा है, जिस पर फोटो भी है और रेट भी लिखे हैं.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.