हाईकोर्ट भी कह रहा है, यह समय गिद्ध बनने का नहीं है.

Faisal Anurag

यह समय गिद्ध बनने का नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट की इस टिप्पणी ने सरकारों, कालाबाजारियों और  आक्सीजन सिलेंडर और दवाइयों के लिए मनमाना पैसा वसूलने और उसकी कमी बनाये रखने वालों के गठजोड़ की ओर इशारा किया है.हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि इन अमानवीय कृत्य में संलग्न लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है. अदालत ने टिप्पणी तो दिल्ली सरकार को ले कर ही की है, लेकिन देश में इसे हरेक राज्य और केंद्र सरकार पर लागू किया जा सकता है. अदालत ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार इस गड़बड़ी को दूर करने में नाकाम रही है. ‘आपके पास अधिकार हैं, ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाओं की कालाबाजारी में संलिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें.’ लेकिन ऐसे तत्वों पर किसी भी राज्य से कार्रवाई की कितनी खबरें आ रही हैं, आप स्वयं समझ सकते हैं.

सरकारें तो शायद ही इसका जवाब दें. जवाब मांगने वाली आवाजें भी कमजोर होती जा रही हैं. दिल्ली एनसीआर के इलाके वसुंधरा में रहनेवाले एक पत्रकार पिछले 12 दिनों से पॉजिटिव हैं. उनके परिवार के चार अन्य सदस्य भी पॉजिटिव हैं. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने एक अजीब आदेश जारी किया है. सरकार ने घरों में इलाज करा रहे लोगों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति पर बंदिश लगा दी है. इस कारण जिन लोगों को आक्सीजन की जरूरत है, उनकी परेशानी को आसानी से समझा जा सकता है. अस्पताल जाने पर कहा जा रहा है कि आप घर पर ही इलाजरत रहें और घर पर जरूरी होने पर भी आक्सीजन सिलेंडर का प्रतिबंध लगा हुआ है.

इस प्रतिबंध को क्या जा सकता है. इस फैसले ने लोगों के बीच दहशत का माहौल बना दिया है. लोग बीमार पड़े हैं और जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं, वे केवल आंकड़े नहीं है. वे जीते-जागते इंसान हैं और भरपूर जिंदगी जीने का उन्हें अधिकार है. उन्हें मौत की ओर धकेलना या उसका अंदेशा पैदा कर देना बेहद तकलीफदेह है. भारत का संविधान भी जान और माल की रक्षा का दायित्व केंद्र सरकार को ही देता है.

गिद्ध बनने के इस प्रतीक को समझने के लिए उत्तर प्रदेश की एक और घटना को देखा जा सकता है. इलाहाबाद हाईकोर्ट में पंचायत चुनाव में तैनात 135 कर्मचारियों की मौत का संज्ञान लिया है. मद्रास हाईकोर्ट तो कह ही चुका है कि कोरोना को सुपर स्प्रेडर बनाने के लिए चुनाव आयोग दोषी है. लेकिन इसके बावजूद उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहे हैं. दो चरणों के वोट के बाद अब तीसरे चरण की तैयारी चल रही है.

क्या लोगों की जिंदगियों को बचाने से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव है?  इस सवाल को कभी कोई राजनेता या मीडिया नहीं पूछेगा. लेकिन हाईकोर्ट के कुछ जज जरूर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन उनकी टिप्पणियां भी नक्कारखाने में तूती साबित हो रही हैं. क्या हम भारत के लोगों के बीच कुछ लोग किस तरह यह यह हिम्मत जुटा लेते हैं कि लोगों का हाहाकार भी उन्हें अवैध कदम उठाने से नहीं रोक पाती है. यह तो और भी तकलीफ की बात है कि फिर आपदा प्रबंधन कानून को सख्ती से अमल में लाने की दिशा में कौन ताकतें बाधक हैं. विश्वगुरू का डंका पीटने वाले भारत की इससे क्या छवि दुनिया में बन रही है, इस पर भी एक पल के लिए सोच लेना चाहिए.

दूसरे महायुद्ध और उसी दौरान पड़े भयावह अकाल में भी अनेक गिद्धों ने लोगों को भूख से मरने के लिए विवश किया था. 1967 के अकाल में भी यह देखा गया है. यह तो राष्ट्रीय शर्म का विषय है, जिसे लेकर हरेक को परेशान होने की जरूरत है. खास कर केंद्र सरकार को. कम से कम 21वीं सदी के भारत में तो गिद्ध के मंडराने के हालात टाले ही जाने चाहिए.