Girish Malviya
कौन जात हो ?
जी हां कल एक टेलीफोनिक सर्वे में मुझसे यही पूछा गया !..
क्या किसी निजी सर्वे एजेंसी द्वारा एक टेलीफोनिक राजनीतिक सर्वे करते वक्त आपसे आपकी जाति धर्म समुदाय पूछा जाना उचित है ? कल दोपहर (28 मई 2025) को मुझे मेरे मोबाइल पर एक कॉल आया. नंबर था- 1408945658. उसमें एक रिकॉर्डेड आवाज में कुछ सवाल पूछे गए. जिसके जवाब में मुझे अपने मोबाइल के की-बोर्ड पर नंबर दबाने को कहा गया. मैने भी उत्सुकतावश सर्वे में भाग लिया.
लगभग 4 से 5 प्रश्न पूछे गए... पहला सवाल था कि क्या सरकार को ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए संसद का संयुक्त सत्र बुलाना चाहिए ? पहले सवाल से ही स्पष्ट हो गया था कि यह प्रायोजित सर्वे है. अगला सवाल था कि क्या आपको लगता है विपक्ष ऑपरेशन सिंदूर का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए कर रहा है ?
दूसरा सवाल था क्या राजनीतिक दलों को यह करने का अधिकार होना चाहिए कि कुटनीतिक प्रतिनिधिमंडल में उनका प्रतिनिधित्व कौन करेगा? तीसरा सवाल इसी संदर्भ में शशि थरूर की भागीदारी से संबंधित था.
एक सवाल और था वो मैं भूल रहा हूं, लेकिन इसके बाद जो पूछा गया वो बहुत आपत्तिजनक लगा इन सारे सवालो के जवाब लेंने के बाद मुझसे यह पूछा गया कि आप कौन से वर्ग से आते हैं ?
दलित के लिए 1 दबाए.
आदिवासी के लिए 2 दबाए.
पिछड़ा वर्ग के लिए 3 दबाए
ब्राह्मण के लिए 4 दबाएं.
मुस्लिम के लिए 5 दबाए.
इसके बाद सर्वे खत्म हो गया. मेरे कान खड़े हुए मैने जब इस नंबर के बारे में जानकारी निकाली तो पता चला कि true Caller पर कई लोगों ने इसे फ्रॉड नंबर के नाम से रिपोर्ट किया है. मुझे लगा कि कही मेरे साथ भी तो ऐसा कोई फ्रॉड नहीं हो गया, लेकिन जब मैने इस तरह के सर्वे के बारे में नेट पर सर्च किया तो पता चल गया कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश भर में ऐसे सर्वे करवाए जा रहे है. इनकी फंडिंग कौन कर रहा है इसकी जानकारी नहीं है.
जैसे मुझसे सवाल पूछे गए वैसे ही सवाल देश के विभिन्न जिलों में इन सर्वे में पूछे जा रहे हैं. एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वोट बाइट नाम की एजेंसी है जो ऐसे कॉलिंग असिस्टेंट टेलीफोनिक इंटरव्यू ले रही हैं. रिपोर्ट में एजेंसी के फाउंडर अमिताभ तिवारी जी से भी इस सर्वे के सवालों के संदर्भ में बातचीत दिखाई गई है, लेकिन न एंकर द्वारा ओर न ही फाउंडर अमिताभ तिवारी द्वारा यह बताया गया कि हमने आखिरी सवाल में फोन पर जवाब दे रहे व्यक्ति से उसकी आइडेंटिटी की पहचान धर्म समुदाय के आधार पर की है.
ऐसे सवाल जिनसे जवाब देने वाले की राजनीतिक समझ उजागर हो उन्हे केटेगरीज में डाला जाना कितना खतरनाक है, यह बताने की जरूरत नहीं है. सब समझ में आता है कि ऐसे सर्वे किसके इशारे पर करवाए जा रहे हैं. यह एक तरह से होलोकास्ट की शुरुआत है.
डिस्क्लेमरः लेखक टिप्पणीकार हैं और यह टिप्पणी उनके सोशल मीडिया एकाउंट से साभार लिया गया है. यह उनके निजी विचार हैं.