Faisal Anurag
तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की, ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए…
इमरजेंसी के दौरान दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां नारा बन ताकतवर इंदिरा गांधी की सत्ता के लिए चुनौती ही नहीं दिया, उन्हें 1977 में बेदखल भी कर दिया. एक बार फिर ये पंक्तियां आज के भारत के हालात के लिए सटीक साबित हो रही हैं. एक बार फिर लोगों के प्रतिरोध और असहमति की जुबान को सिलने के लिए देशद्रोह से लेकर सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल के तमाम नजारे सामने हैं. दैनिक भास्कर और भारत समाचार पर इनकम टैक्स की छापेमारी बताती है कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी और बदइंतजामी से हुई मृत्यु की हकीकत को दफनाने के लिए केंद्र भय का माहौल बना रहा है. जगजाहिर है कि दैनिक भास्कर और भारत समाचार को अपनी उस खोज परक रिर्पोटों की कीमत चुकानी पड़ रही है, जो सरकार के झूठ का पर्दाफाश करते हैं.
लोगों को आतंकित और डराने के लिए जिस तरह के प्रयास पिछले सालों में देखे गए हैं, वे किसी भी लोकतंत्र के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगाता है. ऑक्सीजन की कमी से जिन लोगों की मौत अप्रैल और मई के महीनों में हुई थी, वे एक जीवंत दस्तावेज छोड़ गए हैं. जिन पर पश्चाताप और शर्म महसूस किया जाना चाहिए था. लेकिन उनकी मौत की हकीकत को ही झूठ बता दिया गया. राज्यसभा के सदस्य मनोज झा के अनुसार वास्तव में यह सामूहिक नाकामी का जिंदा दस्तावेज है.
ज्यादातर मीडिया संस्थान ने तो पहले ही घुटने टेक दिये हैं, लेकिन जिन्होंने भी अपनी रीढ़ को थोड़ा बचाने का प्रयास किया है, उसके खिलाफ सरकार की एजेंसियां सक्रिय हो जाती हैं. द वायर और न्यूजक्लिक तो पिछले कई सालों से केंद्र के कोप का शिकार हैं. न्यूजक्लिक के संपादक के साथ जिस तरह का व्यवहार हुआ, वह तो भारत के बड़े से बड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कभी नहीं देखा गया. अरबन एक्टिविस्ट सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो उन्हें यूएपीए और राजद्रोह के मामले में जेलों में डाल दिया गया. भीमा कोरेगांव की साजिश के नाम पर जिस तरह देश के जाने-माने लोगों को जेलों में लंबे समय से बंद किया गया है, उसके बारे में अनेक नये तथ्य सामने आ चुके हैं.
दुनियाभर में पेगासस के खिलाफ आवाज उठ रही है. भारत की संसद में भी आवाज उठी और सरकार यह जवाब नहीं दे पा रही है कि उसने इस स्पायवियर को खरीदा या नहीं. यदि नहीं खरीदा तो फिर किसने खरीदा. एनएसओ कह चुका है कि वह केवल सरकारों के साथ ही पेगासस का सौदा करता है.
पेगासस स्पायवियर के माध्यम से किस तरह इन अभियुक्तों के लैपटॉप में दस्तावेज डाले गए, इसकी जांच अमेरिकी आर्सेनल कर चुकी है और हकीकत बयान कर चुकी है. पेगासस तो एक राजनैतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है. यही कारण हे कि दुनियाभर में पेगासस के खिलाफ आवाज उठ रही है. भारत की संसद में भी आवाज उठी और सरकार यह जवाब नहीं दे पा रही है कि उसने इस स्पायवियर को खरीदा या नहीं. यदि नहीं खरीदा तो फिर किसने खरीदा. एनएसओ कह चुका है कि वह केवल सरकारों के साथ ही पेगासस का सौदा करता है. अब तो इजरायल भी एनएसओ, जो पेगासस बनाती है, की जांच करने का एलान कर चुका है. अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन तक अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. हंगरी, पोलैंड और फ्रांस में जांच शुरू हो गयी है. हंगरी में हुए प्रदर्शनों में लाखों ने भाग लिया है. केवल भारत ही है, जहां जांच के एलान के बजाय हकीकत को दबाने और छुपाने का प्रयास स्पष्ट देखा जा रहा है. जबकि भारत में तो तमाम बड़े और प्रभावी लोगों की या तो निगरानी की गयी या फिर संभावितों की सूची में उन्हें रखा गया. यह एक गंभीर बात है और यह अभिव्यक्ति व असहमति के संवैधानिक अधिकारों पर हमला से कम नहीं है.
दैनिक भास्कर और भारत समाचार ने कोविड के दौर में हुई मौत के सरकारी आंकड़ों को चुनौती दिया. दैनिक भास्कर ने तो राज्यसभा में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं के सरकार के दावे को भी बेनकाब किया. दैनिक भास्कर की इस बेकाब करने वाली रिपोर्ट के छपने के 36 घंटे के भीतर ही आईटी रेड उस पर पड़ गया. दैनिक भास्कर ने लिखा : रिसर्चर्स, वकील और स्टूडेंट्स के एक इंडिपेंडेंट ग्रुप ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का रिकॉर्ड रखने की कोशिश की. उन्होंने न्यूज रिपोर्ट्स, जांच पैनल और अस्पतालों के बयान के आधार पर एक डेटाबेस तैयार किया है. इस डेटाबेस के मुताबिक इस साल 6 अप्रैल से 19 मई के बीच यानी 43 दिनों में देश के 110 अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से 629 मरीजों की मौत हुई है. इस आंकड़े में वो मरीज शामिल नहीं हैं, जो घर पर क्वारंटीन थे, अस्पतालों ने भर्ती करने से मना कर दिया था या ऑक्सीजन की कमी की वजह से डिस्चार्ज कर दिए गए थे. डेटाबेस के मुताबिक 23 अप्रैल को ऑक्सीजन की कमी से सबसे ज्यादा 60 मौतें हुईं. इसमें दिल्ली के दो बड़े अस्पतालों सर गंगाराम और जयपुर गोल्डेन में 46 मौतें रिपोर्ट हुई थीं. अस्पतालों के बयान के बावजूद अधिकारियों ने ऑक्सीजन की कमी से मौत होने की बात से इनकार कर दिया. कर्नाटक हाईकोर्ट की बनाई एक कमेटी ने पाया कि दूसरी लहर के दौरान चामराजनगर के जिला अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 36 लोगों की मौत हो गई.
दुष्यंत की ही एक और अशआर है : रहनुमानाओं की अदा पर फिदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो…