Pravin kumar
Koderma : वर्ष 1995 से पहले तक कोडरमा में माइका उद्योग अपने चरम उत्कर्ष पर था. इस संबंध में जानकार बताते हैं कि एमएमटीसी कंपनी माइका पेपर बनाने का काम करती थी. कोडरमा स्थित प्लांट में 500 कर्मचारी काम करते थे. जब प्लांट बंद हो गया, तब सभी कर्मचारियों को दूसरे स्थानों पर शिफ्ट कर दिया गया था. वर्तमान में मात्र 25 कर्मचारी प्लांट की देखरेख के लिए रखे गए हैं.
जानकार करते हैं कि एमएमटीसी बिहार माइका कंपनी द्वारा कोडरमा और गिरिडीह जिले में माइका का खनन किया जाता था. वर्तमान दौर में स्थानीय व्यापारियों से माइका खरीद कर उसका पाउडर बनाने का काम हो रहा है, जबकि 1995 से पूर्व माइका पेपर तैयार किया जाता था. माइका पेपर के निर्माण में एमएमटीसी को 1.5 डालर खर्च होते थे. वहीं, भारत का माइका खरीदकर चीन माइका पेपर बनाकर एक डॉलर में बेचता था. इस कारण जिले का माइका उद्योग पूरी तरह चरमरा गया. एमएमटीसी कंपनी माइका का निर्यात करती थी, अब यह काम जिले में स्वतंत्र रूप से डीलर करते हैं.
जिले में अधिकतर माइका खदान वन क्षेत्र में होने के कारण वैध माइका खान जिले में पूरी तरह बंद है. इसके बाद भी माइका का अवैध रूप से निर्बाध व्यापार जिले में चल रहा है. वर्तमान में जिले में कई माइका क्रशर चल रहे हैं. जानकारों के अनुसार माइका से करोड़ रुपयों का अवैध कारोबार होता है. बंद पड़ी माइका खदानों से माइका निकाला जाता है. इस काम में पूरा परिवार लगा रहता है. इन बंद खदानों से बच्चे ही ढिबरा निकालते हैं. स्थानीय भाषा में इलाके के बच्चों का भी मुख्य काम ही ढिबरा/माइका चुनना है.
1920 के दशक से चल रहा माइका खनन का काम
गिरिडीह और कोडरमा में पाया जाने वाला बेशकीमती खनिज अभ्रक, भारत को विश्व में सबसे बड़े निर्यातक के रूप में जाना जाता है. 1920 के दशक में अंग्रेजों द्वारा रेलवे लाइन के निर्माण के समय कोडरमा में इसके बड़े भंडार पाए गए और द्वित्य विश्व युद्ध और उसके बाद शीत युद्ध के दौरान इसकी विदेशी मांग चरम पर था. रूस के साथ साथ जापान और अमेरिका बड़ी तादाद में यहां के अभ्रक का आयात करते थे. अभ्रक का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इंसुलेटर के रूप में होता रहा है. मैटेलिक पेंट, सौंदर्य प्रसाधन, बिजली ट्रांसमिशन जैसे लगभग 19 महत्वपूर्ण सेक्टरों में इस खनिज का इस्तेमाल होता है. आज भी इसका विकल्प दुनिया में नहीं के बराबर हैं.
अवैध खनन के कारण अक्सर होती हैं दुर्घटनाएं
झारखंड के दो माइका बहुल जिले हैं कोडरमा और गिरिडीह. दोनों जिलों में माइका खनन का काम धड़ल्ले से जारी है. लोग अवैध खदानों में काम कर रहे हैं. पुलिस रिकॉर्ड, स्थानीय अखबारों की रिपोर्ट्स और निजी संस्थानों के इंटरव्यू, अधिकारियों और चश्मदीदों से बात करने पर पता चला चलता है कि इन खदानों में अक्सर दुर्घटनाएं भी होती हैं और कई बार लोग हताहत भी हुए हैं. लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में ये मामले दर्ज नहीं होते. यहां होने वाले हादसे में हर साल 10 से अधिक लोगों की मौत होती है. यहां के अधिकतर लोग अपने परिवार और बच्चों समेत अवैध अभ्रक खदान में काम करने जाते हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि गांववाले हादसों की रिपोर्ट इसलिए नहीं करते हैं, क्योंकि उन्हें गिरफ्तारी का डर रहता है. साथ ही उन्हें पता है कि यह अवैध काम है.
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क्या कहते हैं फिल्ममेकर दीपक बाड़ा
आदिवासी समुदाय के लिए काम कर रहे फिल्मकार दीपक बाड़ा कहते हैं कि माइका खनन के लिए सही पॉलिसी बनाने से राज्य को बड़ा राजस्व प्राप्त हो सकता है. राज्य में लगभग 75 से अधिक अभ्रक खदान बंद पड़ी हैं, लेकिन इसके बाद भी माइका का खनन किया जा रहा है. सरकार अगर माइका खानों को खोल दे तो इलाके में बाल मजदूरी रुक सकती है. साथ ही दो लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार के बेहतर अवसर मिल सकते हैं. वर्तमान समय में ढिबरा चुनने में बड़ी संख्या में बच्चे लगे हैं.
बाल श्रम के कलंक को मिटाने के लिए कोडरमा और गिरिडीह के अभ्रक खनन मजदूर, व्यापारी और अन्य व्यवसायियों को नियमित करके राज्य सरकार को राजस्व प्राप्त होगा. राज्य में उचित नीति नहीं होने के कारण अभ्रक की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है. यहां से अभ्रक को चीन भेजा जाता है. यहां पर फिल्म की शूटिंग का अनुभव बताते हुए दीपक कहते हैं कि कई वर्षों से कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन और RMI रेस्पोंसिबल माइका इनिशिएटिव ने अभ्रक खदानों से बच्चों को दूर रखने के लिए कई सामुदायिक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, लेकिन धरातल पर बदलाव दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता. दीपक बाड़ा ने हाल ही में अभ्रक पर आधारित फिल्म The Dark Secret Behind Your Shiny Makeup बनायी है. इसे शिक्षाप्रद मीडिया के लिए आयोजित प्रतिष्ठित जापान प्राइज 2021 फिल्म फेस्टिवल चयनित किया गया है. यह फिल्म अभ्रक खनन और विश्व के बड़े सौंदर्य प्रसाधन कंपनियों के बीच जमीनी रिश्तों की पड़ताल करती है.