- बच्चों के लिए घातक साबित हो रहा है चिप्स के पैकेट में मिलने वाला खिलौना
- हर महीने सांस और खाने की नली की सर्जरी कर निकाले जा रहा सिक्के और बजाने वाली सीटी
Saurav Shukla
Ranchi: सावधान! राजधानी रांची स्थित रिम्स में इन दिनों ऐसे मामले आ रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक और चौंकाने वाले हैं. इन मामलों में बच्चों के पेट से सीटी, सिक्के और डिस्क बैटरी सर्जरी कर निकाली जा रही है. दरअसल, पैकेट में मिलने वाले खिलौने बच्चों के लिए घातक साबित हो रहे हैं. खेल-खेल में बच्चे इसे मुंह में लेते हैं. ये सांस की नली और भोजन की नली में फंस जाते हैं. जिससे जान का भी डर रहता है. रिम्स के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के चिकित्सकों ने एक बच्चे की जांच की, इसमें जो दिखा उसे देखकर वे भी हैरान रह गए. दरअसल, सोनुवा प्रखंड के 13 वर्षीय दनियाल सोय के सांस की नली में खिलौने वाली सीटी फंसी दिखी. इसके बाद चिकित्सकों ने (एंडोस्कोपी) विधि के माध्यम से सर्जरी कर उसे बाहर निकाला.
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खेलने के दौरान सांस की नली में फंसी सीटी को 1 घंटे की सर्जरी के बाद निकाला गया
पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ हीरेन्द्र बिरुआ ने इसकी जानकारी दी. उन्होंने कहा कि 20 दिन पहले 13 साल के बच्चे के सांस की नली में सीटी फंस गयी थी. जिसके बाद परिजन उसे लेकर सदर अस्पताल चाईबासा गए. वहां से रिम्स रेफर किया गया. यहां के ईएनटी विभाग में जांच करने के बाद पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग में उसे ट्रांसफर किया गया. उन्होंने कहा कि करीब 1 घंटे तक चले ऑपरेशन में एंडोस्कोपी विधि से सीटी को बाहर निकाला गया. अब बच्चा खतरे से बाहर है.
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खतरनाक साबित होता है सिक्का, सीटी और डिस्क बैटरी
पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ हीरेन्द्र बिरुआ ने कहा कि महीने में 8 से 10 ऐसे बच्चे आते हैं, जो खेलने के क्रम में सिक्का, डिस्क बैटरी जैसी चीजों को खा जाते हैं. उन्होंने कहा कि डिस्क बैटरी खतरनाक होती है, क्योंकि बैटरी के निगेटिव साइड का हिस्सा जब शरीर के अंग से संपर्क करता है तो उस हिस्से को जला देता है. डॉ बिरुआ ने कहा कि मूंगफली, चना का दाना सेफ्टी पिन जैसी चीजें सांस की नली और भोजन की नली को प्रभावित करते हैं. इससे जान जाने का भी खतरा है. डॉ हीरेंद्र ने कहा कि अब तक ऑपरेशन कर बच्चों के सांस की नली से 50 रुपए से अधिक के सिक्के को बाहर निकाला गया है.
ऑपरेशन के दौरान टीम में शामिल रहे ये चिकित्सक
इस ऑपरेशन में शिशु विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हीरेन्द्र बिरुआ, डॉ श्याम सुंदर साहू, डॉ अभिषेक कुमार सिंह, डॉ शिशिर कुमार, डॉ प्रिया शालिनी लकड़ा और डॉ अरकम जिया की भागीदारी रही. जबकि एनेस्थीसिया विभाग के डॉ रमेश खरवार, डॉ असीम, डॉ अनुप्रिया, डॉ श्रवण और डॉ रोमा का महत्वपूर्ण योगदान रहा. वहीं ओटी टेक्नीशियन पुष्पदेव कुमार की अहम भूमिका रही.
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