राजनीतिक विश्लेषण
Gyanvardhan Mishra
Patna: लोकसभा चुनाव की आहट बिहार के सियासी गलियारे में अब सुनायी देने लगी है. राजधानी पटना में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गयी है. ‘एम-वाई’ समीकरण को तोड़ने के लिए नाना प्रकार के उपक्रम किए जा रहे हैं. ‘एम’ का लगाव कुछ हद तक जदयू के साथ है, लेकिन ‘वाई’ पूरी तरह राजद के साथ है. राजनीतिक दलों द्वारा अलग-अलग कार्यक्रमों के माध्यम से जातीय वोटरों को अपने पक्ष में गोलबंद करने की कवायद तेज हो गयी है. भाजपा की नजर पिछड़े-अति पिछडे वोटों पर है. खासकर यादव वोटों को साधने के लिए भाजपा एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है.
बिहार में वर्ष 1990 से ”एम-वाई” का राष्ट्रीय जनता दल के साथ गहरा जुड़ाव रहा है. यही कारण रहा कि राजद को अधिक सीट मिलती रहीं. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में तो यादव वोटरों ने एक प्रकार से भाजपा को नकार ही दिया था. 2015 में कुल 61 यादव चुनाव जीते थे. इनमें 42 राजद के और 6 भाजपा के थे. 2020 के चुनाव में यादव विधायकों की संख्या 52 रही, जिसमें राजद के 35 तो भाजपा के 7 रहे. वर्ष 2000 में बिहार विधानसभा में यादव सदस्यों की संख्या 64 थी, जो 2005 में 54 और 2010 में 39 हो गयी. अभी तैयारी तो ”मिशन 2024” की है, लेकिन अंदरखाने में चर्चा आसन्न विधानसभा चुनाव की चल रही है.
मंगलवार को गोवर्धन पूजा महोत्सव पर 21 हजार यदुवंशियों को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कराने का दावा करते हुए भाजपा की ओर से कहा गया कि लालू प्रसाद को सिर्फ अपने परिवार की चिंता है. उन्हें यदुवंशियों से कोई लेना-देना नहीं है. लालू प्रसाद ने राबड़ी देवी को सत्ता सौंपी, लेकिन किसी यदुवंशी के बेटे को मुख्यमंत्री नहीं बनाया. बिहार में 15 वर्षों तक लालू-राबड़ी का राज रहा, लेकिन सर्वाधिक आबादी रहने के बाद भी 1.4 फीसदी यादव ही सरकारी नौकरी में क्यों हैं. भाजपा ने अब तक तीन यदुवंशियों के हाथों में प्रदेश अध्यक्ष की कमान दी है. भाजपा से ज्यादा यदुवंशियों को कोई दूसरा सम्मान नहीं दे सकता है. पार्टी की ओर से आयोजित भव्य सम्मेलन में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने यदुवंशियों को जातिवाद के बंधन से मुक्त होने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि यदुवंशियों ने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ हमेशा लड़ाई की है. समाज में शांति स्थापित करने में आगे रहा है, लेकिन लालू प्रसाद ने यदुवंशियों के चेहरे को भय के रूप में तब्दील कर दिया. श्रीकृष्ण जिस तरह गरीब कल्याण में लगे थे, पीएम मोदी भी उसी तर्ज पर गरीब कल्याण की योजनाओं को धरातल पर उतारने में लगे रहते हैं. उन्होंने लालू प्रसाद से मोह तोड़ने और भाजपा की शक्ति बनने की सलाह यदुवंशियों को दी.
लालू उवाच : आजकल ‘कंस’ भी कर रहे हैं गोवर्द्धन पूजा
दूसरी तरफ ,वहीं, उसी समय पटना के इस्कॉन मंदिर में श्रीकृष्ण चेतना समिति द्वारा आयोजित समारोह में राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने भाजपा पर जोरदार हमला किया और तंज कसते हुए कहा कि आजकल ‘कंस’ भी गोवर्द्धन पूजा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा यादवों को तोड़ने का काम कर रही है. हम कृष्ण के बताये रास्ते पर चलकर भारतवंशियों की रक्षा करेंगे. लालू ने गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय पर सीधा हमला बोलते हुए उन्हें पशु तस्कर बताया और कहा कि राय को हमने जब राजद में जगह नहीं दी, तो उसने भाजपा में शरण ली. लालू ने पाटलिपुत्र के सांसद रामकृपाल को बस स्टैंड और टेंपो का एजेंट बताया. राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अपनी पत्नी को सीएम नहीं बनाता, तो किसकी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाता. राबड़ी देवी मुख्यमंत्री नहीं होती तो आज महागठबंधन की सरकार नहीं होती. सबसे बड़ी बात है कि एक तरफ भाजपा यादव वोटरों को साधने में जुटी है, वहीं महागठबंधन के दो बड़े घटक दल राजद और जदयू भाजपा के परंपरागत वोटरों में सेंध लगाने की जुगत में है.
भूमिहार वोटरों पर डोरे डाल रहे पिता-पुत्र, नीतीश राजपूतों को रिझाने में जुटे
कुछ ही दिन पूर्व लालू प्रसाद और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह की जयंती पर आयोजित अलग-अलग कार्यक्रमों में शिरकत की थी और भूमिहार वोटरों को रिझाने की हरसंभव कोशिश की थी. वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उसके एक दिन बाद सहरसा के पंचगछिया में पूर्व सांसद आनंद मोहन के दादा स्व. राम बहादुर सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया और इस मौके पर राजपूत वोटरों को डोरे डाले. असल में भाजपा देख रही है कि जबतक पिछड़े-अति पिछडे वोटों की उसके पक्ष में गोलबंदी नहीं होगी, तब तक लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत दर्ज करने में मुश्किलें आएंगी. वहीं, महागठबंधन भी अगड़ी जाति के वोटरों को अपने पक्ष में कर 2024 लोकसभा की वैतरणी पार करना चाहता है.