26 मार्च- कांके में भाजपा नेता अनिल टाइगर की हत्या. 27 मार्च – हत्या के विरोध में भाजपा व आजसू का रांची बंद का ऐलान था. सुबह से ही भाजपा के कार्यकर्ता जगह-जगह सड़क पर थे. दिन भर सड़कें वीरान रहीं. दुकानें नहीं खुलीं. ऑटो नहीं चले. लोग घरों में बंद रहें. राजधानी के लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. भाजपा ने इस हत्याकांड को राज्य की कानून-व्यवस्था से जोड़ करके सड़क से सदन तक हो-हल्ला किया. इस पूरे प्रकरण का सबसे आश्चर्यजनक पहलू रक्षा राज्य मंत्री द्वारा अपने सांसद कोष से उक्त जमीन पर सड़क निर्माण की योजना स्वीकृत करना है.
15 दिन बाद 10 अप्रैल को रांची पुलिस ने अनिल टाइगर की हत्या का खुलासा कर लिया है. रांची पुलिस ने प्रेस बयान जारी कर बताया है- अनिल टाइगर की हत्या की वजह 10 एकड़ जमीन थी. देवव्रत शाहदेव उस जमीन पर दखल चाहते थे. अनिल टाइगर 50 हजार रुपया प्रति डिसमिल की मांग कर रहे थे. दोनों के बीच समझौता वार्ता भी हुआ. पर बात नहीं बनी. तब जाकर अनिल टाइगर को रास्ते से हटाने का प्लान तैयार किया गया.

इस तथ्य से यह पता चलता है कि जमीन पर दखल का विरोध के पीछे कोई नेक इरादा नहीं था, बल्कि उद्देश्य करोड़ों रुपये की वसूली करना था. मतलब हत्या की वजह राजनीतिक तो बिल्कुल ही नहीं थी. हां, जमीन विवाद में हो रही हत्याओं की वजह से यह लॉ एंड ऑर्डर का ईश्यू जरुर है.
रांची पुलिस के बयान में यह भी पता चलता है कि विवादित जमीन पर सड़क बनाने के लिए रांची के सांसद ने मंजूरी दी थी. हालांकि प्रेस विज्ञप्ति में सांसद का नाम नहीं है, लेकिन रांची के सांसद संजय सेठ हैं और वह केंद्र सरकार में रक्षा राज्य मंत्री हैं.
पुलिस ने प्रेस बयान में आगे कहा है- जब अनिल टाइगर को पता चला कि सांसद मद से वहीं सड़क बन रहा है, तब उसने सांसद से मिल कर जमीन के बारे में बताया था. खुद (अनिल टाइगर) के द्वारा जमीन पर दखल का विरोध करने की बात भी बतायी थी. इसके बाद भी सांसद वहां सड़क शिलान्यास करने पहुंचे. तब अनिल टाइगर ने ग्रामीणों को साथ लेकर वहां विरोध किया और सांसद को शिलान्यास किए बिना वापस लौटना पड़ा.

इस तथ्य से यह साफ होता है कि सांसद को अनिल टाइगर और देवव्रत शाहदेव के बीच चल रहे रंजिश की जानकारी थी. अनिल टाइगर की हत्या के बाद जब 27 मार्च को रांची बंद किया गया, तब सांसद संजय सेठ भी प्रदर्शन में शामिल थे. पंडरा के पास करीब दो घंटे तक वह सड़क पर बैठे रहें. उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि अनिल टाइगर जमीन पर दखल का विरोध कर रहा था. उन्होंने कभी भी अनिल टाइगर और देवव्रत शाहदेव के बीच रंजिश के बारे में सार्वजनिक रुप से कुछ नहीं कहा.

एक सांसद और केंद्र में मंत्री होने के नाते उन्हें रांची पुलिस की मदद करनी चाहिए थी. लेकिन वह सड़क पर प्रदर्शन में शामिल हुए. रांची पुलिस को इसकी जानकारी दी या नहीं, यह बात सार्वजनिक नहीं है. लेकिन अगर सांसद संजय सेठ ने सार्वजनिक रुप से शिलान्यास वाली घटना और उसके पीछे की बात को बता दिया होता तो रांची बंद जरुर टल जाता और लोग परेशान होने से बचते.

सांसद संजय सेठ को लेकर एक और सवाल उठ रहा है, वह यह कि उन्होंने खाली जमीन पर सांसद कोष से सड़क निर्माण पर कैसे सहमति दे दी. सांसद या विधायक किसी के घर, मुहल्ले या कॉलोनी के लिए सड़क निर्माण पर सहमति तो देते रहे हैं, लेकिन एक 10 एकड़ के भूखंड पर सड़क निर्माण पर सहमति देना सबको खटक रहा है.
अब बात अनिल टाइगर की हत्या कराने के आरोपी की. उसका नाम देवव्रत शाहदेव है. वह कोतवाली थाना क्षेत्र के बड़ा लाल स्ट्रीट, किशोरगंज स्थित पालकोट हाउस के रहने वाले हैं. देवव्रत शाहदेव भाजपा से जुड़ा है या नहीं, यह तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन एक तस्वीर जरुर सोशल मीडिया पर है, जिसमें वह हिन्दु महासभा के कार्यक्रम में वक्ता के रुप में मौजूद दिख रहा है. इससे यह जरुर पता चलता है कि कम से कम वह हिन्दू महासभा से तो जरुर जुड़ा हुआ था.

उपर के तथ्यों पर गौर करिये. मृतक अनिल टाइगर भाजपा के नेता थे. जमीन पर दखल को लेकर पैसे की मांग करने की वजह उनकी हत्या हुई. अनिल टाइगर के इस काम की जानकारी भाजपा सांसद को थी. हत्या का आरोप जिस पर है, वह हिन्दु महासभा से जुड़ा हुआ व्यक्ति है और जमीन का कारोबार करता है. और हत्या के बाद रांची बंद किसने बुलाया, प्रदर्शन किसने किया, सड़क पर टायर कौन जलाया, भाजपा के नेता-कार्यकर्ता ने. और भुगता कौन- रांची की जनता.