Ranchi : कोयला आधारित बिजलीघरों के संचालकों पर फ्लाई एश से संबंधित दुर्घटनाओं के लिए जुर्माना लगाने और पीड़ित स्थानीय निवासियों को मुआवजा देने के प्रावधान के बावजूद ऐसी घटनाएं देश में निरंतर होती रहती हैं. इन घटनाओं में मुआवजा का पूरा भुगतान कभी नहीं होता. इसके अलावा फ्लाई एश मिलने से प्राकृतिक जलस्रोत भी प्रदूषित हो रहे हैं. एक नये अध्ययन ने पाया है कि देश के विभिन्न राज्यों के निवासियों को इन पर्यावरणीय दुर्घटनाओं की वजह से कई तरह का समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
यह रिपोर्ट “लेस्ट वी फॉरगेट- ए स्टेटस रिपोर्ट ऑफ नेगलेक्ट ऑफ कोल एश एक्सिडेट इन इंडिया ( मई 2019 – मई2021)” जिसे असर सोशल इंपैक्ट एडवाइजर्स, सेंटर फार रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) और मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है. यह रिपोर्ट भारत में अगस्त 2019 से मई 2021 के बीच कोयला आधारित बिजली प्रकल्पों में फ्लाई एश से जुड़ी दुर्घटनाओं की स्थिति के बारे में है. यह रिपोर्ट इस तरह की आठ दुर्घटनाओं के अध्ययन पर आधारित है, जिसमें मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत छह राज्यों में हुई दुर्घटनाएं शामिल हैं.
बोकारो थर्मल-पावर स्टेशन ने अंतरिम मुआवजा के तौर पर एक करोड़ रुपये झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में जमा कराया है, लेकिन सभी प्रभावित निवासियों को मुआवजा नहीं मिल सका है. झारखंड में बोकारो थर्मल पावर स्टेशन में एश पौंड का निर्माण वर्षा के स्वरूप का ध्यान रखे बिना किया गया था, यह सितंबर 2019 में टूट गया, जिससे 20 परिवार प्रभावित हुए और 40 एकड़ जमीन डूब गई.
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राख की वजह से टीबी से हो रहे पीड़ित
बोकारो थर्मल पावर स्टेशन के निकट बाजारटांड़ गांव के निवासी प्रफुल्ल ठाकुर बताते हैं कि हवा में मिली राख की वजह से गांव के कई लोगों को क्षय (टीबी) रोग हो गया है. सांस की बीमारी तो सामान्य बात हो गई है. वे यह भी बताते हैं कि “हवा में मिली हुई राख खेती की जमीन के अलावा अक्सर केंजीपानी नाला के पानी पर इकट्ठा हो जाता है जो दामोदर नदी को जोड़ती है. इस थर्मल पावर स्टेशन के राख को गैर-कानूनी ढंग से कोनार नदी में बहा दिया जाता है.” यहां एश पौंड का निर्माण वर्षा के स्वरूप का ध्यान रखे बिना किया गया था, जिससे ज्यादा वर्षा होने के कारण सितंबर 2019 में ऐश पौंड टूट गया, जिससे 20 परिवार प्रभावित हुए और 40 एकड़ जमीन डूब गई.
अध्ययन के दौरान मध्यप्रदेश के एस्सार थर्मल पावर स्टेशन, विंध्याचल थर्मल पावर प्लांट और रिलायंस ससान अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट, उत्तर प्रदेश के अनपारा थर्मल पावर स्टेशन, ओडिशा के तालचर थर्मल पावर स्टेशन, झारखंड के बोकारो थर्मल पावर स्टेशन, तमिलनाडु के उत्तर चेन्नई थर्मल पावर स्टेशन और बिहार के कहलगांव सुपर थर्मल पावर स्टेशन में कोयले की राख से संबंधित दुर्घटनाओं का आंकलन किया गया है.
रिपोर्ट के लेखकों ने स्पष्ट किया है कि दुर्घटना के कई महीनों के बाद भी कुछ मामलों में अभी तक फ्लाई ऐश खेतों में पड़ी है, कुछ जगहों पर गांवों के आसपास के कुओं में राख भरी हुई है, जिससे वह उपयोग के लायक नहीं रह गया है. पावर प्लांट न केवल राख हटाने, स्थल को दुरुस्त करने, स्वास्थ्यगत प्रभावों का निदान निकालने में नाकाम रहा, बल्कि प्रभावित गांववालों को पूरा मुआवजा देने में भी नाकाम रहा है.
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राख को सीधे नदी में डाल दिया जाता है
अध्ययन में पता चला है कि हवा में मिली राख की वजह से क्षय रोग (टीबी) और सांस संबंधी बीमारियां समूचे केन्द्रीय भारत में फैल रही हैं. इसका प्रभाव प्राकृतिक जलस्रोतों के गंभीर प्रदूषण के रूप में भी दिख रहा है क्योंकि राख को सीधे नदी में डाल दिया जाता है. ताजा दुर्घटना 15 जून को छत्तीसगढ़ के कोबरा में एनटीपीसी और एसीबी इंडिया पावर प्लांट में हुई जिसमें एश डैम दरार आने से मकान और खेतों में राख फैल गया, स्थानीय लोग प्रभावित हुए.
राख से जुड़ी दुर्घटनाओं की प्रकृति और आजीविका पर प्रभाव से जोड़ते हुए मंथन अध्ययन केन्द्र की सह-लेखक सेहर रहेजा ने कहा कि “संरचनात्मक रूप से अस्थिर एश पौंड और रिसाव वाले एश स्लरी (राख का घोल) के पाइपलाइनों का विस्तृत अध्ययन किया गया है जिनके कारण खेतों और उस पूरे इलाके को जहरीली राख (कोल एश) ने ढंक लिया है. इसे विभिन्न राज्यों में हुई दुर्घटनाओं में समान रूप से देखा जा सकता है.“
राख के निपटारे के इंतजामों के पुनर्मूल्यांकन की चर्चा
रिपोर्ट में वर्तमान स्थिति को प्रस्तुत करने में प्रदूषण का जारी रहना, कानून का पालन नहीं होना, आर्थिक मुआवजा, पर्यावरणीय क्षति का आंकलन, राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) में चली कानूनी कार्यवाही और राख के निपटारे के इंतजामों के पुनर्मूल्यांकन की चर्चा की गई है. असर की सह-लेखक मेधा कपूर ने कहा कि सभी फ्लाई-एश दुर्घटनाओं में एक चीज समान है, वह है पारदर्शिता, जवाबदेही और अनुपालन के प्रति औद्योगिक वचनबद्धता और ऐसी प्रशासनिक प्रणाली जो कानून को लागू करने, दंड देने और निगरानी करने में तत्पर हो, पर इसमें निरंतर कमी रही है.
रिपोर्ट में आगे की कार्रवाई के लिए सिफारिशें भी शामिल की गई हैं, जिसमें कोयला की राख से संबंधित दुर्घटनाओं में आपराधिक मामला चलाने, एश पौंडों के लिए बाध्यताकारी नियमित तकनीकी आंकलन, पारदर्शिता में बढ़ोतरी, सूचनाओं की सार्वजनिक उपलब्धता और संबंधित अधिकारियों को जिम्मेवार बनाए रखने के लिए नागरिक समाज का सामूहिक प्रयास शामिल हैं.