1932 के खतियान आधारित स्थानीयता और आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव नौंवी अनुसूची में शामिल करके लागू करना पूरी तरह से केंद्र पर निर्भर
निजी क्षेत्रों में स्थानीय को 75 प्रतिशत आरक्षण, सिविल सेवा परीक्षा नियमित लेने पर बात बनती नहीं दिख रही
Nitesh Ojha
Ranchi: हेमंत सरकार ने तीन साल के कार्यकाल में कई चुनावी वादों को पूरा करने का काम किया. इन वादों को झामुमो ने ‘निश्चय-पत्र’ नाम दिया था. निश्चय पत्र में पांच सबसे महत्वपूर्ण वादा था – ‘1932 के खतियान आधारित स्थानीय’, ‘एसटी-एससी-ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाना’, ‘झारखंड के निजी क्षेत्रों में स्थानीय के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण’, ‘आदिवासी/सरना धर्म कोड’ और ‘नियमित सिविल सेवा परीक्षा लेना शामिल हैं. पहले तीन निश्चय को विधेयक के रूप में और चौथे को प्रस्ताव के रूप में विधानसभा से पारित कराया गया. अंतिम निश्चय यानी सिविल सेवा की नियमित परीक्षा लेने की पहल हुई. हकीकत यही है कि इन पांचों प्रमुख निश्चय पत्र को धरातल पर उतारना झामुमो के लिए चुनौती से कम नहीं है.
झामुमो की साख बढ़ने की आशंका देख भाजपा कभी नहीं चाहेगी केंद्र समर्थन करे
1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति, आरक्षण दायरा बढ़ाने, आदिवासी/सरना धर्म कोड लागू होना पूरी तरह से केंद्र सरकार पर निर्भर करता है. हेमंत सरकार चाहती है कि विधानसभा से पारित पहले के दो ‘निश्चय’ को केंद्र सरकार संविधान की नौंवी अनुसूची में शामिल करें. मुख्यमंत्री का मानना है कि झारखंड के मूलवासी-आदिवासी के लिए यह तभी कारगर होगा. ऐसे में इन तीनों ‘निश्चय’ पर केंद्र सरकार अगर सहमति दे देती है, तो झारखंड में झामुमो की साख मजबूत होगी. वहीं, भाजपा को सीधे-सीधे नुकसान झेलना पड़ेगा. भाजपा शीर्ष नेतृत्व ऐसा कभी नहीं चाहेगी. अन्य दो ‘निश्चय’, निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत का आरक्षण और नियमित सिविल सेवा परीक्षा लेना पूरी तरह से मजबूत प्रशासनिक क्षमता पर निर्भर करता है.
क्या है वर्तमान स्थिति
1.1932 खतियान आधारित स्थानीय विधेयकः राज्यपाल रमेश बैस ने इसे पुनर्समीक्षा के लिए लौटा दिया है. झामुमो ने कहा कि सरकार कानूनी सलाह ले रही है. जरूरत पड़ने पर दोबारा इसे सदन से पारित कराकर राजभवन भेजा जाएगा.
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- 2. आरक्षण का दायरा बढ़ानाः एसटी, एससी, ईबीसी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का कोटा वर्तमान में 60 से बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने का प्रस्ताव भी राज्यपाल के पास लंबित है. सूत्रों के मुताबिक, राज्यपाल इस पर कानूनी सलाह ले रहे हैं.
- 3. आदिवासी/सरना धर्म कोडः प्रस्ताव अभी केंद्र सरकार के पास लंबित है. सीएम हेमंत सोरेन के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल सितंबर 2021 को केंद्रीय गृह मंत्री से मिल चुका हैं.
- 4. निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत आरक्षणः राज्यपाल की स्वीकृति के बाद अगस्त 2022 में गजट अधिसूचना जारी किया. लेकिन प्रशासनिक उदासीनता इतनी है कि अधिसूचना के पांच माह बाद भी केवल 1100 कंपनियों ने श्रम विभाग में खुद को रजिस्टर कराया. 5000 के करीब कंपनियों को नोटिस भेजा गया. रजिस्ट्रेशन के लिए विभाग अभी तक पोर्टल भी नहीं बना पाया. सभी काम मैन्यूल तरीके से हो रहे हैं.
- 5. नियमित सिविल सेवा परीक्षाः झामुमो ने अपने निश्चय पत्र में हर साल नियमित परीक्षा लेने का वादा किया था. शुरूआती समय में कोरोना ने इस पर ब्रेक लगायी. फिर रिकॉर्ड समय में केवल एक बार 7वीं से 10वीं सिविल सेवा परीक्षा ली गयी. इसके बाद परीक्षा नियमावली में संशोधन का फैसला हुआ. इसके लिए उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव रहे के.के खंडेलवाल की अध्यक्षता में कमेटी बनी. लेकिन इनके रिटायर होने के बाद रिपोर्ट नहीं सौंपी गई. दूसरी कमेटी बीते दिसंबर माह के अंत में वन एवं पर्यावरण विभाग के अपर मुख्य सचिव एल खियांग्ते की अध्यक्षता में बनी है. कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है. युवा अभी भी सिविल सेवा परीक्षा विज्ञापन के इंतजार में हैं.