Chandil (Dilip Kumar) : कोल्हान प्रमंडल का एकमात्र सरस्वती मंदिर चांडिल प्रखंड के हारुडीह में स्थापित है. यहां 1911 से विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. मौके पर सार्वजनिक सरस्वती पूजा कमेटी हारुडीह – धातकीडीह द्वारा पांच दिवसीय मेला का भी आयोजन किया जाता है. सरस्वती पूजा के दो दिन बाद से शुरू होने वाले ऐतिहासिक सरस्वती मेला में झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल और ओडिशा से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती मंदिर में विद्या की देवी मां शारदे की पूजा-अर्चना धूमधाम के साथ की गई. पूजा को लेकर पूरे क्षेत्र में लोगों का उत्साह देखा गया. मंदिर में मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित है.
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ज्ञान की अधिष्ठात्रि देवी हैं मां सरस्वती
चांडिल के हारुडीह स्थित मां सरस्वती मंदिर के पुजारी अशोक कुमार पांडे ने कहा कि विद्या की देवी मां शारदा जिस मस्तिष्क में विराजमान होती है, वह सभी गुणों से सुशोभित हो जाता है और समस्त संसार में उसकी ख्याती बढ़ती है. सरस्वती को ज्ञान की अधिष्ठात्रि भी कहा गया है. मां सरस्वती की आराधना मन और मस्तिष्क को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर उसका संपूर्ण विकास करती है. पूजा व मेला कमेटी के सचिव लक्ष्मीकांत महतो ने बताया कि पूर्वजों द्वारा शुभारंभ किया गया सरस्वती मेला के आयोजन की परंपरा को अब भी निष्ठा व श्रद्धापूर्वक मनाया जा रहा है. मेला में विभिन्न भाषाओं के सांस्कृतिक कार्यक्रम का संगम श्रद्धालु और दर्शकों के लिए आस्था व आकर्षण का केंद्र रहता है. तीन राज्यों के लाखों श्रद्धालु मेला में आते हैं और माता सरस्वती के चरणों में माथा टेक कर विद्या बुद्धि ज्ञान का आशीर्वाद लेते हैं. मेला में विभिन्न भाषाओं के रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम, संथाली ड्रामा आदि आकर्षण का केंद्र रहता है.
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ऐतिहासिक हारुडीह मेला में दिखेगा सांस्कृतिक संगम
सार्वजनिक सरस्वती पूजा कमेटी हारुडीह-धातकीडीह द्वारा पांच दिन विभिन्न भाषाओं के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन किया जाएगा. इसके तहत शनिवार को मेला के पहले दिन विभिन्न कार्यक्रमों के बाद रात आठ बजे से रंगारंग डांस धमाका, 29 जनवरी को आदिवासी पांता नाच एवं दिन दो बजे से तपती माहतो, झाड़ग्राम की टीम द्वारा झुमुर संगीत, रात 10 बजे से सुबह तक बाई नाच का आयोजन किया गया है. बाई नाच में ज्योत्सना देवी पुरुलिया बनाम बिजली देवी कोटशिला के बीच नृत्य का मुकाबला होगा. रात 10.30 बजे से सुबह तक आदिवासी ड्रामा आदिम ओवर जारपा ओपरा, मयुरभंज, ओड़सा द्वारा गायन-मोने बाड़ीज पेड़ा दादा आलम कुली ईञा “दिशा- उदुरे राही दीदी कल्व गोड़ों सोपहद लेकाते” का मंचन किया जाएगा. 30 जनवरी को दिन दो बजे से “तापती महतो एवं समीर महतो” (झाड़ग्राम) द्वारा झुमूर संगीत व रात 10.30 बजे से उस्ताद पद्मश्री दिवंगत गंभीर सिंह मुंडा के पुत्र अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कार्त्तिक सिंह मुंडा बनाम अपर्णा महतो के महिला दल का मानभूम शैली छऊ नृत्य का आयोजन होगा. वहीं, 31 जनवरी को दिन दो बजे से सुरजीत महतो, झाड़ग्राम द्वारा झुमूर संगीत पेश किया जाएगा. मेला के अंतिम दिन एक फरवरी को दिन दो बजे से झुमुर सम्राट सुरजीत एवं शिल्पी दिपीका झाड़ग्राम द्वारा झुमुर संगीत प्रस्तुत किया जाएगा और रात 10.30 बजे से उस्ताद वीणाधर कुमार बनाम विकास महतो द्वारा छऊ नृत्य प्रस्तुत किया जाएगा.