NewDelhi : चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा है कि कानून बनाने से पहले नेता उससे होने वाले हानि और लाभ का आकलन नहीं करते, जिससे यह विवाद का कारण बन जाता है. एनवी रमना ने शनिवार को कहा कि विधायिका अध्ययन नहीं करती है या उन कानूनों के प्रभाव का आकलन नहीं करती है, जो कभी-कभी बड़े मुद्दों में बदल जाते हैं और परिणामस्वरूप न्यायपालिका पर मामलों का अधिक बोझ पड़ता है. CJI का यह विचार राजनीतिक दलों को लिए नसीहत समझा जा रहा है.
इसे भी पढ़ें : इलाहाबाद हाई कोर्ट से शरजील इमाम को जमानत मिली, देशद्रोह मामले में तिहाड़ जेल में है बंद
हमें न्यायपालिका को मजबूत करना है
बता दें कि सीजेआई न्यायाधीशों और वकीलों के बीच सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे. इस क्रम में कहा, हमें यह याद रखना चाहिए कि जो भी आलोचना या बाधा आती है, उससे न्याय करने का हमारा मिशन रुक नहीं सकता है. हमें न्यायपालिका को मजबूत करने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य का पालन करते हुए आगे बढ़ना है.
इसे भी पढ़ें : संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से, पीएम मोदी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक आज
राष्ट्रपति कोविंद, कानून मंत्री किरेन रिजिजू शामिल हुए
कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू भी शामिल हुए. सीजेआई ने उनकी मौजूदगी में कहा कि न्यायपालिका में मामलों के लंबित होने का मुद्दा बहुआयामी है. उम्मीद है कि सरकार इस दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान प्राप्त सुझावों पर विचार करेगी और मौजूदा मुद्दों का समाधान करेगी. इस अवसर पर सीजेआई ने जोर देकर नये कानूनों को पास करने के संदर्भ में कहा कि एक और मुद्दा यह है कि विधायिका अध्ययन नहीं करती है, या कानूनों के प्रभाव का आकलन नहीं करती है जो वह पारित करती है. यह कभी-कभी बड़े मुद्दों में बदल जाता है.
इसे भी पढ़ें : पश्चिम बंगाल : नदिया जिले में श्मशान जा रही मेटाडोर ट्रक से टकराई, 18 लोगों की मौत की खबर
9,000 करोड़ रुपये आवंटित किये जाने की सराहना
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 की शुरूआत इसका एक उदाहरण है. अब पहले से ही बोझ तले दबे मजिस्ट्रेट पर और बोझ पड़ रहा है. चीफ जस्टिस ने कहा कि देश में कई लोग मानते हैं कि यह अदालतें हैं, जो कानून बनाती हैं और इस धारणा से संबंधित गलतफहमी का एक और सेट है कि अदालतें स्थगन के लिए जिम्मेदार हैं. साथ ही सीजेआई ने केंद्रीय कानून मंत्री की उस घोषणा को सराहा, जिसमें सरकार ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 9,000 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं.
wpse_comments_template]