Kalyan Kumar Sinha
देश के 65 लाख से अधिक वयोवृद्ध ईपीएस-95 पेंशनर देश की सर्वोच्च अदालत से यह उम्मीद बांधे बैठे थे कि ईपीएफओ और केंद्र सरकार द्वारा दायर रिव्यू पिटीशन और एसएलपी पर स्पष्ट और दो टूक न्यायपूर्ण फैसला सुनाएगाा. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के ही 2016 के आरसी गुप्ता फैसले के मामले में पैदा की गई अनिश्चितता दूर कर देगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
पिछले 4 नवंबर 2022 के फैसले में हालांकि कोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच ने आरसी गुप्ता फैसले को सही तो माना, लेकिन इसे पूर्ववत लागू करने का ईपीएफओ या सरकार को स्पष्ट निर्देश देने में कंजूसी दिखा गया. इससे ईपीएस-95 पेंशनर्स आरसी गुप्ता फैसले का लाभ से उच्च पेंशन से वंचित रह गए हैं. पेंशनर्स के साथ-साथ संबंधी विधि विशेषज्ञ अभी भी असमंजस में हैं. वे समझ पाने में असमर्थ हैं कि “माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश/निर्णय का सटीक परिणाम और लाभ क्या है.”
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कुछ बिंदुओं को छोड़ कर पूरी तरह अस्पष्ट है. विधि जानकारों ने इसे अजीबोगरीब तरीके से दिया गया फैसला बताया है. वैसे भी, यह ईपीएफओ और केंद्र सरकार के पक्ष में दिया गया फैसला ही है. सरकार और ईपीएफओ की परोक्ष रूप से पेंशनरों को उच्च पेंशन से वंचित रखने की मंशा थी, लगता है, मानो सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने उनकी यह मंशा पूरी कर दी है. अन्य सभी मामलों में, न्यायालय ने पेंशन योग्य वेतन की गणना की पद्धति में लाए गए परिवर्तनों सहित 1 सितंबर 2014 के संशोधनों को मंज़ूरी दे दी है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फैसले में उसके द्वारा दी गई छूट उन कर्मचारियों के लिए उपलब्ध नहीं होगी, जो विकल्प का प्रयोग किए बिना 1 सितंबर 2014 से पहले सेवानिवृत्त हुए थे. इस संशोधन के अनुसार, 1 सितंबर 2014 के बाद सेवा में शामिल होने वाले कर्मचारी पेंशन योजना में शामिल होने के पात्र नहीं हैं, यदि उनका मासिक वेतन 15,000/- रुपए से अधिक है. चूंकि इस खंड में न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया गया है, इसलिए निर्णय का लाभ केवल उन लोगों को मिलेगा जो 1 सितंबर 2014 को योजना के सदस्य थे.
इस फैसले में 1 सितंबर 2014 से पहले या बाद में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन से संबंधित अधिकांश मुद्दों में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश या निर्देश नहीं दिए गए हैं. मामले की 6 दिनों की सुनवाई के पश्चात 15 अगस्त 2022 को फैसला सुरक्षित रख दिया गया था. पिछले 4 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने यह फैसला सुनाया है.
फैसले के बारे में विधि जानकारों, ईपीएस-95 पेंशनर एक्टिविस्ट दादा झोड़े सहित अन्य जानकार वकीलों (विधि विशेषज्ञों और विद्वान वकीलों ने इस सन्दर्भ में अपनी प्रतिक्रया को लेकर अपना नाम जाहिर करने से मना किया है.) को भी इस बात पर आश्चर्य है कि 2016 के जिस आरसी गुप्ता फैसले को केंद्र सरकार और ईपीएफओ दोनों ने मान्य कर लिया था, उस पर उच्च पेंशन का भुगतान भी शुरू कर दिया था, उसे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ललित की दो सदस्यीय बेंच ने अनावश्यक रूप से विचार करने के लिए क्यों घसीटा. हालांकि, अंतिम फैसले में कोर्ट ने आरसी गुप्ता फैसले को विवाद रहित तो बताया, लेकिन ईपीएफओ को इस बारे में कोई निर्देश देने में विफल क्यों रह गया? इससे पूर्व पूरे मामले को न्याय प्रविष्ठ (सब जुडिस) बता कर उसके अमल पर ईपीएफओ ने राहत भी ले ली थी. इससे 1 सितंबर 2014 से पूर्व 6,500 या 5,000 रुपए के निर्धारित सीमा मानक पर सेवानिवृत लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व फैसले के अनुरूप पूर्ण वेतनमान पर पेंशन पाने का मार्ग अवरुद्ध किया ही था, इस फैसले के बाद भी यह अवरुद्ध ही है. सुप्रीम कोर्ट इस सन्दर्भ में ईपीएफओ को स्पष्ट या दो टूक आदेश अथवा निर्देश नहीं दे सका है.
इस फैसले के अनेक अस्पष्ट बिंदुओं पर स्पष्टीकरण और ईपीएफओ को साफ-साफ आदेश देने की गुहार लेकर पेंशनर्स पक्ष को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा, जिसकी तैयारी चल रही है. विधि विशेषज्ञों और पेंशनर्स पक्ष जानकारों ने इस फैसले के बारे में निम्नलिखित 14 बिंदुओं को रेखांकित किया है. आइए जानें – फैसले में क्या है और इसमें लोचा क्या है, जो सभी के समझ से परे है –
1) पेंशनरों के संवैधानिक अधिकारों को ध्यान में रखे बिना निर्णय बहुत अनुचित है, और निर्णय बहुत ही अजीब तरीके से लिखा गया है.
2) समझा जाता है कि इस निर्णय से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 1-04-2019 के अपने स्वयं के निर्णय को बदल दिया. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
3) इस निर्णय से ईपीएस 95 योजना में पूर्ण/वास्तविक वेतन पर पेंशन का प्रावधान 01-09-2014 से समाप्त किया जाता है. 1-09-2014 के बाद सेवा में शामिल होने वाले कर्मचारियों को पूर्ण वेतन पर उच्च पेंशन या पेंशन कभी नहीं मिलेगा. माननीय सर्वोच्च ने दुर्भाग्य से यह नहीं माना कि यह भारत सरकार की कल्याणकारी योजना है, जैसा कि ओटिस लिफ्ट के मामले में 2003 में तय किया गया था.
4) अधिकांश मामले सेवा से सेवानिवृत्त और पेंशनरों के हैं. लेकिन, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पेंशनरों को इस संबंध में या राहत के संबंध में ईपीएफओ को कोई विशिष्ट और स्पष्ट आदेश या निर्देश जारी नहीं किया है.
5) उन कर्मचारियों के लिए, जिन्होंने विकल्प का प्रयोग नहीं किया और 1-09-2014 से पहले सेवानिवृत्त हो गए, आरसी गुप्ता मामले में निर्णय उन पर लागू होता है और वे तदनुसार वास्तविक वेतन पर पेंशन के लाभ के हकदार होते हैं, लेकिन इसका भी स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है और इसलिए, यदि हम पहले की तरह उच्च पेंशन पाने का दावा करें तो ईपीएफओ आसानी से बहाना ढूंढ सकता है.
6) इसी तरह, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उन कर्मचारियों के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया, जो 1-09-2014 को सेवा में थे और 1-09-2014 के बाद सेवानिवृत्त हुए, निर्णय में और अस्पष्टता पैदा की है.
7) यह एक तथ्य है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय को 1-09-2014 से योजना में किए गए संशोधनों का निर्णय करना है, हालांकि, माननीय सर्वोच्च ने योजना से संबंधित कई अन्य मुद्दों को नहीं छुआ और जो विषय थे याचिकाओं के प्रार्थना खंड का मामला और इसलिए, यह कहा जा सकता है कि यह एक अधूरा निर्णय है. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
8) यह निर्णय मुख्य रूप से उन मौजूदा कर्मचारियों पर लागू होता है जो 01-09-2014 को सेवा में थे और वर्तमान में कार्यरत हैं. सेवानिवृत्त कर्मचारियों को राहत के संबंध में एक भी वाक्य नहीं है जो 01-09-2014 से पहले या बाद में हो सकता है.
9) हालांकि, इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण और लाभकारी बिंदु यह है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरसी गुप्ता के फैसले को परेशान नहीं किया और कानूनी माना है. जानकारों की राय में पेंशनभोगियों के लिए इस फैसले का यह सबसे उल्लेखनीय लाभ है.
10) इस निर्णय का अन्य महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इस निर्णय से छूट प्राप्त (exempted) – बिना छूट (non exempted) का भेदभाव समाप्त हो गया, जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न उच्च न्यायालयों के पहले के निर्णयों को बरकरार रखा और एक वर्ग के रूप में छूट-रहित माना है.
11) यह दोहराया जाता है कि 1-09-2014 से पहले सेवानिवृत्त हुए व्यक्ति, आरसी गुप्ता (जो इस आदेश में कानूनी है) में निर्णय/निर्णय के अनुसार उच्च पेंशन के हकदार हैं और तदनुसार विकल्प प्रस्तुत कर सकते हैं. इस उद्देश्य के लिए, ईपीएफओ दिनांक 23-03-2017 का परिपत्र प्रासंगिक है और लगभग 27,000 मामलों का निपटारा पहले ही किया जा चुका है. हालांकि, ईपीएफओ ने इस सर्कुलर को 2020 से स्थगित रखा है और दुर्भाग्य से माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस बिंदु को स्पष्ट नहीं किया.
12) माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आरसी गुप्ता में दिए गए निर्देशों को लागू करने के लिए फंड अथॉरिटी को आठ सप्ताह का समय दिया है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उन निर्देशों को किसके खिलाफ लागू किया जाना है. यह सब भी अस्पष्ट है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय को एक वाक्य लिखना चाहिए था कि “पैरा 11(3) के तहत विकल्प का प्रयोग किए बिना 01-09-2014 से पहले या 01-09-2014 के बाद सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों के मामलों को निर्णय के अनुसार निपटाया जाए, आरसी गुप्ता और ईपीएफओ का परिपत्र दिनांक 23-03-2017”, इस वाक्य से सारी अस्पष्टता समाप्त हो सकती थी और निर्णय का कुल उद्देश्य पूरा हो सकता था.
13) इसके अलावा, सेवानिवृत्त कर्मचारियों के बारे में महत्वपूर्ण मुद्दे जो वास्तव में तत्काल मामलों के विषय हैं और उनकी प्रार्थनाओं में शामिल हैं, अदालत द्वारा तय नहीं किया जाता है और यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के रिकॉर्ड के चेहरे पर स्पष्ट त्रुटि है. यह जानकारों का विचार है.
14) संक्षेप में, जानकारों की समझ के अनुसार सभी कर्मचारी जो 1सितंबर 2014 से पहले सेवा में शामिल हुए और जो 1 सितंबर 2014 से पहले या बाद में सेवानिवृत्त हुए या वर्तमान में सेवा में हैं, सभी पैरा 11 के परंतुक के अनुसार उच्च पेंशन के पात्र हैं. 11(3). सेवा से सेवानिवृत्त हुए लोगों को उक्त विकल्प का प्रयोग करने का अवसर नहीं दिया गया और अब वे सभी आरसी गुप्ता के अनुसार उक्त विकल्प का प्रयोग करने के पात्र हैं. वर्तमान में सेवा में कार्यरत कर्मचारियों को वर्तमान निर्णय के अनुसार उक्त अवसर दिया जा रहा है.
वर्तमान में फैसले पर और अधिक विश्लेषण संभव नहीं है. इसे यहां सब कुछ का उल्लेख भी नहीं किया जा सकता है. संक्षेप में, हमारी राय में, निर्णय बिल्कुल भी सुखद नहीं है और हमारे पूर्ण पक्ष में नहीं है. विधि विशेषज्ञों को वयोवृद्ध पेंशनरों को उपरोक्त मुद्दों और अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए कानूनी लड़ाई जारी रखने के सिवा और कोई चारा भी नहीं दिखाई देता.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.