Ranchi : 8 वर्षों के इंतजार के बाद राजधानी रांची में अपोलो अस्पताल के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है. 11 सिंतबर 2012 को निगम ने पीपीपी मोड पर अस्पताल के निर्माण का निर्णय लिया था. अस्पताल के शिलान्यास से पूर्व रांची नगर निगम ने 70 फीट के एप्रोच रोड निर्माण का कार्य आरंभ किया है. बता दें कि निर्माण में सबसे बड़ी अड़चन रास्ते को लेकर ही थी, जिसे सुलझा लिया गया है.
फंसे थे कई पेंच, अब निर्माण शुरु
जिस स्थान पर हॉस्पिटल बनना था, वहां तक पहुंचने के लिए सरकारी रास्ता नहीं था. हालांकि 2014 में तत्कालीन सीएम हेमंत सोरेन ने इस योजना को हरी झंडी दे दी थी, लेकिन उसके बाद इसमें कई पेंच आये, जिससे इसका निर्माण का कार्य थमा रहा. सीएम ने अपोलो प्रबंधन को लेटर ऑफ अवार्ड सौंपा था, जिसके बाद जमीन को लेकर कुछ विवाद सामने आये थे. चेन्नई अपोलो अस्पताल डोरंडा के घाघरा बस्ती में बनेगा, जिसमें 200 बेड का सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल होगा.
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2015 में एक रूपये के टोकन पर मिली थी जमीन
घाघरा में राज्य सरकार ने एक रूपये पर जमीन चेन्नई अपोलो को उपलब्ध करायी थी. इसे लेकर राज्य सरकार और अस्पताल प्रबंधन के बीच एक समझौते हुये थे, जिसके तहत अस्पताल के कुल राजस्व का 0.5 प्रतिशत राज्य सरकार के खाते में जायेगा. साथ ही 7.5 प्रतिशत बेड बीपीएल परिवारों के लिए आरक्षित होगा.
चेन्नई जाने से मिलेगी राहत
झारखंड बिहार समेत पड़ोसी राज्यों से बड़ी संख्या में इलाज के लिए लोग चेन्नई अपोलो का रूख करते आये हैं. अस्पताल के निर्माण पूरे हो जाने के बाद बेहतर इलाज के लिए लोगों को चेन्नई जाने के झंझट से मुक्ति मिल जायेगी. हलांकि निर्माण कार्य में पहले ही 2 वर्ष विलंब हो चुका है, लेकिन निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने से एक उम्मीद जगी है. सूत्रों ने बताया कि अगले कुछ दिनों में सीएम खुद निर्नाण स्थल में जाने पर विचार कर रहे हैं.
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स्थानीय नियोजन की उठ रही है मांग
घाघरा बस्ती के लोगों को यह आश्वासन दिया गया था कि यहां के स्थानीय लोगों को व्यवसाय के साथ साथ नियोजन में प्राथमिकता दी जायेगी. इस शर्त को याद दिलाते हुए लोग एक बार फिर से मुखर हो रहे हैं. स्थानीय केदार ने बताया कि अपोलो अस्पताल के निर्माण शुरू होने से आस पास के लोगों में हर्ष है. यह इस अस्पताल का स्वागत करते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों के हितों का ख्याल रखा जाना चाहिए.