DR. Santosh Manav
समाज-राज्य-राष्ट्र, जिसे नायक मान ले और नायकत्व के बाद भी व्यक्ति या उस परिवार से गरीबी का अंधेरा न मिटे, तो हैरत होती ही है. हैरत इसलिए कि आप मानते हैं कि उस पुरूष या महिला का कार्य असाधारण है, अगर असाधारण है, तो इस असाधारणता का असर उसके या परिजनों के जीवन पर नहीं पड़ना चाहिए? यह सवाल इसलिए कि हम जिन्हें पर्वत पुरूष, माऊंटेनमैन कहते नहीं अघाते, उस दशरथ मांझी को दुनिया से गए 14 साल हो गए और अब भी उनके आंगन में गरीबी का अंधेरा है. इन पंक्तियों के लेखक ने मांझी के गांव जाकर परिवार-परिजनों की पीड़ा समझी. दशरथ मांझी की पौत्री अंशु कुमारी ने कहा: मैं इंटर पास हूं. मेरे पति स्नातक हैं. अगर किसी एक को नौकरी मिल जाती, तो हमारे जीवन में हरियाली आती. यही बात अंशु के पति मिथुन मांझी ने कही. दशरथ मांझी मुसहर समाज से आते थे. गया जिले के मोहड़ा प्रखंड के गेहलौर गांव में घर है. घर क्या है, मिट्टी और ईंट के कुछ कमरे. जहां सुविधाओं का घोर अभाव झलकता है. घर के पिछले हिस्से में पीएम आवास योजना के तहत बन रहा पक्का मकान है, जहां अब तक दीवारें खड़ी हो पाई हैं. दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी की पत्नी बसंती देवी का 2014 में देहांत हो गया. पौत्री अंशु कुमारी, पति मिथुन के साथ पिता भागीरथ मांझी के पास ही रहती है. परिवार के पास खेती की कुछ जमीन है. कुछ बटाई पर लेते हैं. यही रोटी का साधन है. सरकार ने कुछ जमीन दी है, वह बंजर है. राजनीतिक पप्पू यादव ने छह हजार रूपया प्रति माह बारह माह तक भेजे. इससे बड़ा सहारा मिला. मिथुन कहते हैं: ‘कुछ खेती और कुछ बटाई के खेत. पेट भर जाता है हमारा.’
दशरथ मांझी को आप सदी का बड़ा ‘प्रेरणा पुरूष’ कह सकते हैं. चाहें तो मोटिवेशन मैन कहें. राबिन शर्मा, शिव खेड़ा जैसे मोटिवेशनल स्पीकर लिख-बोलकर हमें मोटिवेट, प्रेरित करते हैं. दशरथ मांझी ने कर्म से मोटिवेट किया. सोचिए, 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को हथौड़े-छेनी से काटकर रास्ता बनाना कितना कठिन कार्य है. इस काम में उन्हें 22 साल लगे. 22 साल उनका एक ही काम था-पहाड़ तोड़ना. ऐसी जिद, इतना धैर्य, ऐसी लगन! दशरथ मांझी को आप पागल प्रेमी भी कह सकते हैं. उनका प्रेम दिव्य है. जिस्म से परे अलौकिक प्रेम! पहाड़ के एक ओर खेत, जिसमें वे मजदूरी करते. दूसरी ओर घर. पत्नी फाल्गुनी देवी रोज खाना-पानी लेकर खेत पहुंचती. एक दिन पैर फिसल गया. वह घायल हुईं. चिकित्सीय सुविधा दूरी के कारण, समय पर नहीं मिली. वह चल बसी. तीसरी कसम फिल्म के हीरामन की तरह दशरथ मांझी ने दो कसम खाई. जिस पहाड़ ने पत्नी को छीना, उसे चीड़ देंगे. गांव से कस्बे की दूरी कम कर देंगे. दशरथ ने दोनों कसम को जिया- पूरे 22 साल. उसे पूरा किया. पहाड़ काटकर सड़क बनाई. सड़क बनने से अतरी और वजीरगंज की दूरी 55 किलोमीटर की जगह 15 किलोमीटर हो गई.
दशरथ मांझी 1929 में धरती पर आए. 1960 से 1982 तक पहाड़ काटे. यानी उम्र के 31 वें साल से 53 तक उनका एकमेव काम था-पहाड़ काटना. पहाड़ काटते दशरथ पगलवा कहलाए. बच्चे भूख से बिलबिलाए. लेकिन, पहाड़ काटकर ही माने. उस कटे पहाड़ को देखकर दशरथ मांझी का जुनून समझ में आता है. मन पूछता है कि ऐसा भी हो सकता है क्या? 2007 में दशरथ मांझी कैंसर से चल बसे. लेकिन, कर्म की गूंज बहुत बाद में घर-घर पहुंची. केतन मेहता ने 2012 में फिल्म माझी: द माऊंटनमैन बनाई. तब दुनिया ने जाना दशरथ मांझी को. उन्हें और उनके जुनून को. अब तो उस फिल्म का एक संवाद बेस्ट मोटिवेशन वाक्य के रूप में जाना जाता है-‘जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं’. फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दकी ने दशरथ मांझी और राधिका आप्टे ने दशरथ मांझी की पत्नी फाल्गुनी देवी का अविस्मरणीय रोल किया है. फिल्म में नाटकीयता, अतिरेक की गुंजाइश रहती है. होगी ही, फिर भी फिल्म जैसा ही था दशरथ मांझी का जीवन. बिहार की नीतिश सरकार ने दशरथ मांझी की याद में स्मारक, सड़क, अस्पताल बनवाए. बीमारी के दिनों में एम्स में इलाज के प्रबंध करवाए. राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि करवाई.
लेकिन, स्मारकों से गौरवान्वित हुआ जा सकता है. सीना चौड़ा हो सकता है. पेट की आग नहीं बुझती. नीतिश सरकार ने 2006 में दशरथ मांझी को पद्मश्री देने के लिए केंद्र की सरकार को प्रस्ताव भेजा. 2017 में समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर, चंपारण सत्याग्रह के अगुआ नेता राजकुमार शुक्ल के साथ-साथ दशरथ मांझी को भारत रत्न देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा. लोग बताते हैं कि सरकार दशरथ मांझी को नागरिक सम्मान नहीं दे सकती. इसमें पेंच है. मांझी ने जिस पहाड़ को काटा, वह सुरछित पहाड़ था. भारतीय वन्य जीव अधिनियम के तहत यह दंडनीय है. आरोप यह भी है कि पहाड़ के कुछ पत्थर भी उन्होंने बेचे थे. ऐसे में सवाल यह भी है कि दशरथ मांझी 22 साल तक पहाड़ काटते रहे, तब कहां था वन विभाग का अमला ? और इससे उनके नायकत्व में कहां कमी आती है?
हिंदी के अलावा कन्नड़ में दशरथ मांझी पर फिल्म बनी-‘ओलवे मंदार’. आमिर खान ने 2014 में अपने टीवी शो ‘ सत्यमेव जयते’ में दशरथ मांझी पर एक एपिसोड बनाया. दशरथ पुत्र भागीरथ को आर्थिक मदद का भरोसा दिलाया. पर भरोसा देकर भूल गए. भागीरथ आज भी आमिर से मदद की आस लगाए हैं. दशरथ मांझी की स्मृतियां सहेज ली गईं हैं. जरूरत है कि उनकी संतति का भी ख्याल रखा जाए. क्या नहीं ? मैंने 1991-1992 में जनसत्ता अखबार में एक खबर पढ़ी थी. शीर्षक था : ‘ उसनेअकेले ही तोड़ दिया पहाड़.’ तब से इच्छा थी कि इनसे मिलना है. दशरथ मांझी से नहीं मिल पाया. लेकिन खबर पढ़ने के तीस साल बाद मुसहर समाज के मांझी के गांव की तीर्थयात्रा कर आया!