Dhanbad : कोल इंडिया के निदेशक (तकनीकी व विपणन) डॉ. बी वीरा रेड्डी ने कहा कि ओपन कास्ट माइनिंग से कई नुकसान हैं. इससे जमीन का क्षरण, पर्यावरण प्रदूषण और विस्थापन जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए आने वाले तीन से चार दशकों के दौरान कोयला खनन की रणनीति को बदलते हुए कंपनी अब अंडरग्राउंड माइनिंग को बढ़ावा देने पर फोकस कर रही है. धनबाद में सिंफर के स्थापना दिवस समारोह में भाग लेने आए डॉ. रेड्डी ने 18 नवंबर को कोयला उत्खनन को लेकर कोल इंडिया की भविष्य की प्लानिंग के बारे में विस्तार से जानकारी दी. कहा कि कोल इंडिया ने एक बिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा है. इसे पूरा करने के लिए कई बंद पड़ी माइंस को खोलने पर भी मंथन चल रहा है. राष्ट्रीयकरण के बाद धीरे-धीरे सुरक्षा, तकनीकी घटनाएं व स्थानीय कारणों से 250 से अधिक माइंस बंद हो गई हैं. कोल इंडिया इन बंद पड़े माइंस का निरीक्षण कराकर जांच रिपोर्ट तैयार करा रही है. इनमें से कई ऐसी माइंस हैं जहां उच्च दर्जे का कोयला है. इनमें से 30 माइंस को जल्द ही चालू कराया जाएगा.
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रानीगंज और पूर्वी भारत का कोयला उच्च दर्जे का
डॉ. रेड्डी ने बताया कि कोल इंडिया उच्च दर्जे के नन कोकिंग कोल प्रोडक्शन को लेकर भी गंभीर है. ईसीएल की रानीगंज और उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थित माइंस से अच्छा कोयला निकलता है. इसमें जी-3 और जी-4 ग्रेड का कोयला शामिल है. उच्च दर्जे के कोयले का उत्खनन बढ़ने से देश के बाहर से आने वाले कोयले पर निर्भरता कम होगी.
उत्पादन के साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान
डॉ. रेड्डी ने कहा कि कोल इंडिया डिजिटलाइजेशन को लेकर गंभीर है. जब खनन के सभी पॉइंट डिजिटालाइज हो जाएंगे, तो हर स्तर पर मॉनिटर में मदद मिलेगी. इससे खनन क्षेत्र में पीएम-2.5 और पीएम-10 जैसे प्रदूषक पार्टिकल्स के साथ सल्फर, नाइट्रेट जैसे तत्वों को जानने व नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी.
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