Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) के धैया स्थित जैन मंदिर में चल रहे पंच कल्याणक महोत्सव के तीसरे दिन 23 जून को तप कल्याणक अनुष्ठान हुए. इसमें जैन समाज के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. पूजन-अनुष्ठान के बाद जैन मुनि प्रमाण सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में तप की विस्तार से विवेचना की. कहा कि तप के बल पर व्यक्ति भगवान को प्राप्त कर सकता है. राजा ऋषभ देव ने इसे अपनाया और भगवान का सानिध्य मिला.
मुनिश्री ने कहा कि मनुष्य जीवन में चार प्रवृत्तियां हैं- प्रकृति, विकृति, संस्कृति और दुष्कृति. मनुष्य जीवन प्राप्त करना उसकी प्रकृति है. दुर्भाग्यवश कुछ बच्चे जन्म से ही विकलांग, मंदबुद्धि या अन्य समस्यओं से ग्रसित रहते है. यह उनकी विकृति है. वहीं, कुछ व्यक्ति अपने जीवन को धार्मिक, सामाजिक व पारिवारिक रूप से जीते हैं. पूरा जीवन लोक कल्याण में बिता देते हैं. यह उनकी संस्कृति है. पर कुछ मनुष्य सक्षम, स्वस्थ, सम्पन्न होते हुए भी पूरा जीवन असामाजिक कार्यो में लगा देते हैं. स्वार्थवश दूसरे को परेशान करने, सताने में ही समय गंवा देते हैं. यह जीवन की दुष्कृति है. तप व्यक्ति को गलत प्रवृत्तियों से बचाता है और सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है. उन्होंने बताया कि तप 3 तरीके से कर सकते हैं- शारीरिक, मानसिक और वाचिक.
ऋषभ देव ने राजपाट छोड़कर तप का मार्ग अपनाया
कथा को आगे बढ़ाते हुए मुनिश्री ने कहा कि ऋषभ देव प्रतापी राजा थे. युवा अवस्था में उनकी शादी हुई. इसके बाद उन्हें भरत और बाहुबली समेत 99 पुत्र हुए. सब कुछ ठीक ढंग से चल रहा था. तभी कुछ दिन बाद ऋषभ देव के मन में तप का भाव जगा. उन्हें लगा कि मुक्ति का मार्ग तप है. धीरे-धीरे उन्हें वैराग्य हो गया और राजपाट अपने बड़े पुत्र भरत को सौंपकर तपस्या में लीन हो गए.
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