RANCHI : राजधानी रांची समेत देश में इस बार धनतेरस 12, 13 नवंबर और दीपावली 14 नवंबर को मनायी जाएगी. इस लिहाज से आम शहरवासी 13 नवंबर को धनतेरस मनाएंगे, जबकि दीपावली निर्विवाद रूप से 14 नवंबर को मनायी जाएगी. कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धनतेरस मनाने का विधान है.
मिथिलांचल के रहने वाले शहरी 12 को ही मनाएंगे धनतेरस
हालांकि मिथिला समाज में धनतेरस का मुहूर्त 12 नवंबर को मनाया जाएगा, इसलिए रांची में रहने वाले मिथिलावासी 12 को ही धनतेरस मनाएंगे. मिथिला के आचार्य पंडित बद्रीनाथ झा ने बताया कि मिथिला के लोग 12 नवंबर को ही धनतेरस मनाएंगे. मैथिली पंचांग के अनुसार 12 नवंबर की संध्याकाल में 6 बजे के बाद त्रयोदशी तिथि का प्रवेश हो रहा है. त्रयोदशी को ही धनतेरस मनाया जाता है. मुहूर्त के अनुसार इस दिन लोग भगवान धन्वंतरी और धन के देवता कुबेर की पूजा के साथ-साथ अपनी मनपसंद चीजों की खरीदारी करेंगे.
स्वामी दिव्यानंदजी महाराज ने बताया कि धनतेरस 13 नवंबर को मनाया जाएगा. उनके अनुसार 12 नवंबर की संध्या 6.32 बजे त्रयोदशी का प्रवेश हो रहा है. लेकिन धनतेरस का संध्या-व्यापिनी महत्व होने के कारण भगवान धन्वंतरी की पूजा 12 नवंबर की रात को ही जाएगी. धनतेरस 13 को मनाया जाएगा.इस दिन खरीदारी की जाएगी. धनतेरस का मुहूर्त 13 नवंबर को संध्याकाल में 5 बजकर 28 मिनट से शुरू हो रहा है.
धनवंतरी जयंती को भारत सरकार मनाती है आयुर्वेद दिवस के रूप में
धनवंतरी जयंती को भारत सरकार का आयुष मंत्रालय राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाता है. मान्यताओं के मुताबिक़ धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन करने से धन-धान्य की कमी नहीं होती और लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा भी इस दिन घर में लानी चाहिए. धनतेरस के दिन संध्याकाल में दीपक जलाने की भी प्रथा है. इसे यम दीपक कहते हैं जो यमराज के लिए जलाया जाता है जिससे अकाल मृत्यु को टाला जा सके. इस पूजा को लोग लगातार बरसों से कर रहे हैं या यूं कहें की यह प्रथा रही है.
आरोग्य के देवता हैं देव धन्वंतरी
मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के क्रम में भगवान विष्णु का रूप माने जाने वाले धनवंतरी अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, कहा जाता कि चिकित्सा विज्ञान के प्रसार के लिए उन्होंने यह अवतार लिया था. हाथों में अमृत कलश होने के कारण ही उन्हें आरोग्य का देवता कहा गया है. इन्हें धातुओं में पीतल सर्वाधिक पसंद है. इसलिए धनतेरस को पीतल, सोने, चांदी या अन्य धातुओं के सामान विशेष रूप से खरीदे जाते हैं. इसी मुहूर्त में धन के देवता कुबेर की पूजा करने का भी विधान है. शास्त्रों के अनुसार इस मुहूर्त में पूजा से व्यक्ति को आरोग्य के साथ-साथ सुख-संपत्ति का लाभ प्राप्त होता है.
14 नवंबर को मनायी जाएगी दीपावली
ज्योतिषियों के अनुसार 12 नवंबर की रात्रिकाल 9.30 बजे त्रयोदशी की तिथि आ रही है. यह 13 नवंबर की संध्या 7.59 बजे तक रहेगी. इसके बाद चतुर्दशी का प्रवेश हो जाएगा. यह तिथि 14 नवंबर को दिन के 1.16 बजे तक रहेगी. इसके बाद अमावश्या का प्रवेश हो जाएगा. इसी दिन शाम को लक्ष्मी माता का पूजन किया जाएगा. पूजा का मुहूर्त संध्या 5.40 बजे से लेकर रात्रि 8.15 बजे तक सबसे उत्तम है. लक्ष्मी- गणेश पूजा के साथ दीपावली भी मनायी जाएगी. हालांकि दान और स्नान 15 नवंबर को ही किये जा सकेंगे.
499 साल बाद बना ग्रहों का दुर्लभ संयोग
इस बार दीपावली पर बहुत ही खास संयोग बन रहा है, खासकर तंत्र पूजा के लिए यह संयोग काफी दुर्लभ है. दीपावली की रात इस संयोग के कारण विशेष अनुष्ठानों के कारण धन संबंधी अड़चन दूर हो सकती है. ज्योतिषियों के अनुसार दीपावली में गुरू और शनि ग्रह का संयोग बन रहा है. इस संयोग के अनुसार गुरू अपनी धनु राशि में और शनि अपनी मकर राशि में मौजूद रहेंगे. दोनों ही ग्रह आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाले माने जाते है. जबकि कन्या राशि के नीच में शुक्र ग्रह होगा. इसके कारण विशेष पूजा से धन संबंधी उपलब्धि दूर होगी. यह दुर्लभ संयोग 499 वर्षों के बाद बनी है. इससे पूर्व 9 नवंबर 1521 में यह स्थिति बनी थी.