Faisal Anurag
क्या ममता बनर्जी ने सहकारी संघवाद और संवैधानिक मर्यादाओं का अपमान किया है? बंगाल के राज्यपाल सहित भाजपा के तमाम मंत्रियों का यही आरोप है. यदि सहकारी संघवाद और संवैधानिक मूल्यों की यह अवमानना है तो फिर 13 सितंबर 2013 को तत्कालीन प्रधानमंत्री की बैठक का बहिष्कार क्या था. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्धारा आहूत नेशनल इंट्रिगेशन काउंसिल की बैठक का बहिष्कार किया था. तब क्या प्रधानमंत्री की गरिमा, संवैधानिक मर्यादा और सहकारी संघवाद का सम्मान हुआ था. यह तुलना इसलिए महत्वपूर्ण है कि भारत में किस तरह राज्य और केंद्र के बीच का टकराव स्वस्थ लोकतंत्र की राह में बाधा बनता रहा है.
वैसे तो यह सवाल भी कम महत्व का नहीं है कि जिस मुख्य सचिव को कोविड प्रबंधन के लिए तीन माह का सेवा विस्तार दिया गया था, उसका अचानक दिल्ली तबादला कर दिया गया. एक राज्य के प्रति केंद्र के नजरिए को इससे भी तो समझा जा सकता है. मुख्य सचिव कोई मामूली अफसर नहीं होता है जिसे इस तरह बदला जा सके जिसमें संबंधित राज्य की कोई भूमिका ही नहीं हो.
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तूफान तुकेत से महाराष्ट्र और गुजरात दोनों की प्रभावित हुए लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने केवल गुजरात का दौरा किया. यास से प्रभावित बंगाल की सीमक्षा में तो विपक्ष के भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी को बुलाया गया लेकिन गुजरात में कांग्रेस के विपक्ष के नेता की उपेक्षा क्यों की गयी. बिहार के विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा है कि प्रधानमंत्री ने बंगाल में विपक्ष से भी विचार विमर्श की जो परंपरा शुरू किया है क्या वह उन राज्यों में भी अमल में लाया जाएगा जहां विपक्ष गैर भाजपा दल हैं. यह एक गंभीर सवाल है क्योंकि जिस सियासत करने का आरोप ममता बनर्जी पर लग रहा है क्या वह सुवेंदु अधिकारी के भाग लेने से नहीं लगना चाहिए.
सवाल तो यह भी है कि जब बंगाल के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को 20 हजार करोड़ के नुकसान का आकलन दस्तावेज दिया तो बंगाल को केवल 250 करोड़ ही क्यों दिया गया. प्रधानमंत्री ने उड़ीसा को 500 करोड़ और बंगाल और झारखंड के लिए 500 करोड़ देने का एलान किया.
अल्पन बंद्योपाध्याय का तबादला जिन हालतों में किया गया है उससे कई सवाल खड़े होते है. सवाल तो आइएएस के राष्ट्रीय संगठन को पूछना चाहिए लेकिन वह शायद ही पूछे. बंगाल में यह धारणा प्रबल हुई है कि अल्पन बंद्योपाध्याय को सजा ममता बनर्जी को सबक सिखाने के लिए ही तो दी गयी है. बंगाल सरकार के आग्रह पर कि पिछले साल भर से वे ही कोविड प्रबंधन में लगे हुए हैं उसमें निरंतरता के लिए तीन माह के उनको सेवा विस्तार दिया गया था. बंगाल में कोविड का प्रकोप है बावजूद उनका रातोरात तबादला कर दिया गया.
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विपक्ष शासित राज्यों ने कई बार केंद्र की भूमिका को ले कर सवाल उठाए हैं. केरल में 2018 और 2019 में आए बाढ़ के समय भी केंद्रीय सहायता को लेकर केरल और केंद्र के टकराव की खबरें सार्वजनिक हुई थीं. केरल के मुख्यमंत्री ने विदेशों में रह रहे केरल के नागरिकों से मदद की गुहार की थी क्योंकि उनके अनुसार केंद्र से पर्याप्त मदद नहीं मिली थी.
केंद्र और राज्यों के संवैधानिक मर्यादाओं के टूटना खतरनाक प्रवृति की संकेत करता है. चुनावी हार जीत से परे देश को आगे ले जाने और सभी नागरिकों के जानमाल की हिफाजत और विकास के लिए केंद्र और राज्य के बीच परस्पर विश्वास की जरूरत होती है. यह विश्वास बेहद महत्वपूर्ण हें. केंद्र और राज्य दोनों को अपनी मर्यादाओं को ध्यान में रखने की जरूरत है.