Jamtara: साइबर अपराध के लिए बदनाम करमाटांड़ कभी प्रख्यात समाज सुधारक पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कर्मभूमि रही है. जिन्होंने अपने जीवन काल के 18 वर्ष करमाटांड़ में गुजारे हैं. उस समय इस इलाके में अंधिविश्वास और रुढ़िवादी परंपराएं समाज में गहरी पैठ रखती थी. बीमारी और भूखमरी से लोगों का जीवन बेहाल था. यह सब देख पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने बंगाल रुख करने के बजाय करमाटांड़ में रहने लगे. अपने निवास स्थान का नाम नंदन कानन रखा था. आज भी नंदन कानन में उनकी स्मृतियां जीवंत हैं. उनके पलंग समेत कई अन्य सामान मौजूद हैं. 29 जुलाई को पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की पुण्यतिथि मनाई जाती हैं. आपको बता दें कि गुरुवार को 131वें पुण्यतिथि के कार्यक्रम में आसनसोल रेल मंडल के डीआरएम सुमित सरकार शिरकत करेंगे.
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विकास की तलाश में करमाटांड़
वहीं तत्कालीन मुख्यमन्त्री रधुवर दास ने करमाटांड़ प्रखंड क्षेत्र का नामकरण विद्यासागर करने की धोषणा की थी. जिसके बाद करमाटांड़ प्रखंड के नामकरण का मसला कहीं फाइलों में ही दबकर गुम हो गया. 25 लाख रुपये की लागत से नंदन कानन के विकास की कवायद शुरू हुई. जिसमें पीसीसी सड़क समेत अन्य कई कार्य हुए. नंदन कानन के स्पेशल स्टेटस व हैरिटेज हाउस का दर्जा की मांग होती रही है. लेकिन सरकारी महकमा इस ओर उदासीन बना हुआ है. करमाटांड में वे केवल संथालों के साथ रहे ही नहीं, बल्कि उन्होंने उनके सामाजिक उत्थान के लिए भी काफी प्रयास किया.
उन्होंने संथाल लड़कियों के लिए सबसे पहला औपचारिक विद्यालय प्रारम्भ किया. उन्होंने इन आदिवासी लोगों के लिए चिकित्सा प्रदान करने के लिए एक नि:शुल्क होम्योपैथी क्लिनिक खोला. उन्होंने जनजातीय आबादी के वयस्कों को भी शिक्षित करने की कोशिश की. उन्हें जनजातीय समाज द्वारा भगवान की तरह पूजा जाता था.
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