Ranchi: जेलों में सजा काट रहे कैदियों की मौत के मामले में कुछ खास सुधार नहीं हुआ है. देशभर में ऐसे मामले मिलते हैं. ऐसे में ये नहीं कहा जा सकता कि कस्टोडियन डेथ के मामलों में कमी आयी है या प्रशासन का रवैया कैदियों के लिएबदला है. ये बातें अधिवक्ता सिद्धार्थ लांबा ने कहीं. वे नेशनल प्रिजनर रिफाॅर्मस के प्रोजेक्ट ऑफिसर भी हैं. एसोसिएशन फाॅर परिवर्तन ऑफ नेशन की ओर से आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय मीट में उन्होंने ये बातें कहीं. मीट का आयोजन वर्चुअल तरीके से हुआ. इस दौरान सिद्धार्थ ने कहा कि झारखंड में 150 साल पहले बिरसा मुंडा की मृत्यू कस्टोडियन डेथ थी. अब भी ऐसे मामले आते है. इन मामलों में सुधार नहीं है. ऐसे में जरूरी है कि ऐसे मामलों को रोका जायें. कार्यक्रम का नाम ट्राइबल इकोस रखा गया, जिसमें शैक्षणिक, सांस्कृतिक, राजनितिक समेत अन्य मुद्दों पर चर्चा की गयी.
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सामुदायिक पुलिसिंग ग्रामीण क्षेत्रों मे जरूरी
वहीं क्रिमिनल लाॅयर शैलेश पोद्दार ने कहा कि सामुदायिक पुलिसिंग को बढ़ावा देना जरूरी है. शैलेश ने बताया कि सामुदायिक पुलिसिंग एक अवधारणा है. इसके तहत पुलिस कार्यों में जनता की भागीदारी हेाती है. ये एक सकारात्मक अवधारणा है,जिसके तहत पुलिस और जनता के बीच की खाई को पाटने का काम किया जाता है. शैलेश ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में इसका विस्तार करना जरूरी है. जिससे पुलिस और लोगों के बीच की दूरियां कम की जा सकें.
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सामाजिक विकास में शिक्षा महत्वपूर्ण
डीयू की प्रोफेसर नीतिशा खलखो ने शिक्षा और सुधारों पर कहा कि समाजिक विकास में शिक्षा महत्वपूर्ण है. समाज के संपूर्ण विकास चाहिए. बदलते समय के साथ लोग शिक्षित तो हो रहे है लेकिन अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं. जब तक ऐसा होता रहेगा, समाज में एक अनिश्चितता बनी रहेगी. ऐसे में जरूरी है कि शिक्षा ऐसी हो कि ज्ञान के साथ संस्कृति को बचाया जा सकें. इन्होंने कहा कि संस्कृति और शिक्षा के जरिये ही सजगता आयेगी. ऑनलाइन मीट में आकृति लकड़ा, दीप्ति मैरी मिंज, सौम्या पांडे, इकरा इल्हाम समेत अन्य लोग मौजूद रहे.