Sanjay Singh
अपने झारखंड में एक से एक कलाकार नेताजी लोगन हैं. तनिका सा पावर का मिलता है, बउरईनी धर लेता है. अब देखिए न एगो दलबदलु नेताजी और हैं. जेने देखिन फायदा ओने ही लपक लिए. हालांकि नेताजी पहिले अकेले ही अपना दम देखा चुके हैं. लेकिन बाद में धड़ाधड़ पाला बदले लगे. एतना पाला बदले कि उनको खुद भी ठीक से याद न रहता है कि कब कौन सा पार्टीया में घुसिया गए थे. नेताजी निर्दलीय जीत गिए, तो बिहार वाली पार्टिया के तीर से निशाने साधे लगे. लेकिन इहां सिर्फ हॉफे-डिप देवे में दिन गुजर जाता रहा. नेताजी को कुछो भेंटा न रहा था, तो तड़पड़ाईल थे. जेने-तेने तांकझांक कईले थे. जुगाड़ में लगल थे कि मौका मिले तो चौका जड़ देंगे. अभी नेताजी अभी तीर-धनुष लेले निशानेवाजी कईले हैं. पहिले तीरे ले के घूमले थे. मौका ताड़े, तो कमल खिलावे लगी चल दिए. फायदे में भी रहे, जीते तो मंत्री भी बन गये. पढ़ावे-लिखावे के साथे -साथ लगे दारुओ बेचे-बेचवाए. उस समय लाले लाल बत्ती गाड़ी का फोकासी था. लाले लाल हो गिये थे नेताजी. अब दारू बेचे-बेचवावे वाला मंत्री जी कमे समय में लाले लाल हो जाएंगे, तो भला ऊ पार्टिया के बड़का नेतवन को पचेगा. भाई जो लोगन लग गिये इनका पतईया गुल करावे में. बेचारे के कुछ पते न चला और कमल छाप के घाघ नेताजी लोगन उनका टिकटवा खा-पचा गिए. बाद में ऊ पार्टिया वाला नेताजी लोगन इनको ऐन चुनावे के मौके पर अईसन साइड धरा दीहिस कि बेचारे लगे हांफे. हंफनी के बेमारी धर लीहिस.
अब नेताजी मौका के तलाश में जुट गए. उसी समय तीर-धनुषवाली पार्टिया में वेंकेसी को बारे में नेताजी को पता चला. नेताजी ताड़ लीहिन. समझ गिये कि मौका फाइन है, तो धीरे से ढुकिया जाया जाए, नेताजी ढुकियाए तो तीर-धनुष से जीतियो गये. लेकिन अपना लुर-लच्छन के कारण ढेरे दिन तक ई पार्टिया में साइडे धईले रहे. कुछ करेला, कुछ कहे ला कोनो तरह का मौके न मिल रहा था. लेकिन गुटूर-पुटूर कईले रहते थे. एक बार तो ई नेताजी को लाटसाहिब के यहां से बुलावा भी आ गया. नेताजी खुशी से उछले लगे. नेताजी के शपथियाए लगी बुलाहटा था. नेताजी सूट-बूट पहिनले घर से निकल लिए, मन में लड्डुइयां फूटिए रहा था. लेकिन ई का, आधे रास्ते में नेताजी के फोन आ गईस, कहल गया कि अभी रुकिए जाओ. बेचारे नाक धुनलले आधा रास्ता से लौट गये. खूबे खिसियाए.. अंडोबंड भी बोले लगे. जाति से लेके धरम-करम तक पर लेक्चर देवे लगे.
लेकिन कहते हैं न.. नारयस्य त्रियाचरित्रम पुरुषस्य भाग्याम कोऊ न जानत -कोऊ न जानत… आखिरताक ई नेताजी के किस्मतवा तीर-धनुषवाली पार्टी के बड़का नेताजी लोगन ने पलटवा ही दी. मंत्री बना दीहिस. अब तो बैजू बाबू के बउरईनी धईले है. मंत्री पद बरदाश्ते न हो पा रहा है. अबकियो बैजू बउरनी महोदय के पढ़ाई-लिखाई करावे के साथे दारू बेचे-बेचवावे के जिम्मेवारी मिलल है. नेताजी लगल हैं कि लक्ष्मी मईया उन पर कृपा बरसा दें. लेकिन जइसे ही नेताजी के बड़का जिम्मेवारी मिलाी है, नेताजी के बउरनी जोर-शोर से धर लीहिस है. नेताजी तो नेताजी, अब तो उनके लाडले को भी हूटर लगी गाड़ीसे सफर करे का बेमारी घर लीहिस है. बेटाजी लोगन भी बाजार पहुंचते हैं, तो हूटर लगल गाड़ी मौहाल बनाइले रहते है.
नेताजी का पैरवा पहिले धरातल पर रहा करता था, आजकल बऊराइल हैं, तो चउवे पर चल रहे हैं. ठस्सा मेनटेन कईले हैं. नेता जी एतने नहीं किए हैं, दुनो बेटाजी के भी अपना प्रतिनिधि बना दीहिन है. अब क्या है, बेटा जी लोगन भी खुद के मंत्री से कम न बुझ रहिस है. पूरा फुटानी कईले है. लेकिन ज्यादा इतराए के जरूरत न है. जनता सब देख रहिस है. दो-तीन महीने में कही जनता, जनार्दन हो गई न नेताजी. तो बुझिए लीजिए का होवेवाला है. वईसे इहो चर्चा है कि ई बउरईनी नेताजी फिरो कीचड़ में कमल खिलावे के भी जुगाड़ में जेने-तेने हाथ पैर मारले हैं. अब देखिए, आगे-आगे होता है क्या?
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