- नेशनल पार्क के आसपास बसे कई गांव के सैकड़ों ग्रामीणों बेरोजगार
- गांव में न बिजली, न सिंचाई की व्यवस्था, कैसे चलेगा घर परिवार
- वन विभाग की चल रही कई योजनाएं, फिर भी काम की आस ताक रहे ग्रामीण
Pramod Upadhyay
Hazaribagh : हजारीबाग जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर एनएच-33 स्थित नेशनल पार्क के आसपास के गांवों के करीब 300 ग्रामीणों को रोजगार नसीब नहीं हो रहा है. वहां करीब 40 घर की बस्ती है. यह गांव है कैले. यहां के ग्रामीणों को एक अदद रोजगार के लिए तरसना पड़ रहा है. वह मजदूरी करने के लिए शहर आने को मजबूर हैं. स्थानीय स्तर पर उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा है, जबकि वन विभाग की कई योजनाएं संचालित हैं. यहां मनरेगा, जलछाजन समेत वन विभाग की कई योजनाएं पौधरोपण, चेकडैम, सड़क, वनरोपण आदि के काम संचालित होते रहते हैं. नेशनल पार्क के निकट सटे गांव डुमरी, कलवारा बांध, कैले, लोटवा, पदमा, इचाक और कटकसांडी प्रखंड के भी कई गांव हैं.
‘शुभम संदेश’ से ग्रामीणों ने बयां की अपनी व्यथा
रोजगार के संबंध में कैले गांव के सोहन महतो, शंकर महतो, विशेश्वर महतो, चामो महतो, फागुन महतो, विलेश्वरी देवी और जोगवा देवी कहती हैं कि वन विभाग की ओर से कोई काम नहीं मिल रहा है. वहां मशीन से काम कराया जा रहा है. अगर जरूरत भी पड़ती है तो शहर से मजदूर लाते हैं. वर्षों से गांव में न बिजली है और न ही बेहतर पेयजल की व्यवस्था. यहां तक कि सिंचाई के लिए भी मोहताज रहना पड़ता है. पुरानी व्यवस्था लाठ-कुंडी से सिंचाई करते हैं. कुछ लोग मशीन से सिंचाई करते थे, लेकिन अब वह भी केरोसिन के अभाव में बंद हो गया है. रोजगार के नाम पर खजूर का पत्ता काटकर ओरमांझी ले जाते हैं. वहीं बेचकर किसी प्रकार घर-परिवार चला रहे हैं.
क्या कहते हैं गोबरबंदा पंचायत के मुखिया
इस संबंध में गोबरबंदा पंचायत के मुखिया रंजीत मेहता सवाल उठाते हैं कि जब बिजली नहीं, तो सिंचाई कैसे होगी ? इसके लिए बिजली विभाग को कई बार आवेदन दिया गया, काम भी शुरू हुआ, पोल लगे, लेकिन बिजली नहीं आयी. वन विभाग की ओर से एनओसी नहीं दिया गया. सोलर लाइट पहुंचाने के लिए गांव में कोशिश की गई, कुछ लगी भी, लेकिन तकनीकी खराबी की वजह से उसकी मरम्मत नहीं हो पायी.
वन विभाग को सेंचुरी एरिया के ग्रामीणों को काम देना चाहिए था. वन विभाग में हमेशा काम चलता है, लेकिन वन विभाग के लोग मनमाने तरीके से काम करवाते हैं. कहां से मजदूर लाते हैं, इस बात की कोई जानकारी ग्रामीणों को नहीं है. ग्रामीण रोजगार के लिए तरसते रहते हैं. उन्हें रोजगार के लिए शहर जाना पड़ता है.
क्या कहते हैं फॉरेस्ट विभाग के डीएफओ
इस संबंध में वन्यप्राणी डीएफओ अवनीश चौधरी ने कहा कि रोजगार देने का प्रावधान है, पर मजदूर को रेंज ऑफिस आना पड़ेगा. उन्हें अपना नाम पता लिख कर देना होगा. उनका नाम रिकॉर्ड में पंजीकृत्त होगा, तभी काम मिलेगा. रही बात गांव में बिजली नहीं रहने की, तो इसके लिए वर्ष 2019 में आवेदन आया था. उसे प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ा दिया गया है और यह जिम्मेवारी बरही डिवीजन वाले का बनता है. हम लोग भी चाहते हैं कि गांव में बिजली आए और गेस्ट हाउस तक भी बिजली रहे, इससे ग्रामीणों की परेशानी दूर होगी और गांव का विकास भी होगा. इसके लिए एनओसी की बात डिवीजन को कही गई थी. बात रही जेसीबी से काम कराने की, तो इसकी जानकारी रेंज ऑफिस ही दे पाएगा.