Anand Kumar
Ranchi : एक तरफ राज्य सरकार नयी उद्योग नीति पर काम कर रही है. निवेशकों के लिए परेशानी का कारण बन रहे 108 से अधिक नियमों को हटाने की तैयारी है. दूसरी तरफ खान विभाग ऐसे-ऐसे नियम जोड़ रहा है, जिससे खनिज आधारित उद्योगों की परेशानी बढ़ गयी है. खान विभाग ने डीलर लाइसेंस के लिए अपने पुराने नियम को बदलते हुए अब हर मिनरल के लिए अलग लाइसेंस लेना जरूरी कर दिया है. ऐसे में एक से ज्यादा मिनरल का इस्तेमाल करनेवाले उद्योगों की परेशानी बढ़ गयी है. स्टील उद्योग इससे ज्यादा प्रभावित हैं. स्टील इंडस्ट्री में आयरन ओर के अलावा, डोलोमाइट, लाइम स्टोन और कोयला जैसे खनिजों का भी उपयोग किया जाता है.
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हर खनिज के लिए अलग स्टॉक लाइसेंस लेना भी जरूरी हुआ
स्टील उद्योग के एक सूत्र ने बताया कि अगर पहले किसी स्टील कारखाने को गुवा या जामदा की खदान से आयरन ओर मंगाना होता था, तो वह चाईबासा खनन कार्यालय से एक डीलर लाइसेंस निकालता था. इसी लाइसेंस में बाकी खनिज, जैसे डोलोमाइट, लाइम स्टोन, कोयला आदि भी शामिल रहते थे. अगर उस उद्योग को चतरा या लातेहार से कोयला लेना होता तो उस जिले का खनन पदाधिकारी इसी लाइसेंस के आधार पर कोयले उठाने की अनुमति दे देता था. अब सरकार ने हरेक मिनरल के लिए अलग से लाइसेंस लेना जरूरी कर दिया है. इससे उद्योगों की परेशानी बढ़ गयी है. चार जगह खनन कार्यालयों में लाइसेंस हासिल करने में होनेवाला ऊपरी खर्चा बढ़ गया और भागदौड़ की परेशानी बढ़ गयी है.
परमिशन के लिए टन के हिसाब से लिया जाता है कमीशन
सूत्र बताते हैं कि बात इतनी ही नहीं है. पहले जिस-जिस जिले से मिनरल आता था, उन्हें जहां प्लांट स्थित है, वहां स्टॉक करने के लिए पहले एक स्टॉक लाइसेंस लेना पड़ा था. अब खान विभाग ने हर मिनरल के लिए अलग-अलग स्टॉक लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया है. अर्थात चार तरह के खनिज हैं, तो चारों के लिए स्टॉक लाइसेंस लेना पड़ता है. इससे कागजी खानापूरी की मगजमारी भी बढ़ गयी है. मिनरल का परमिशन देने के लिए जिला खनन कार्यालयों में ऊपरी खर्चा भी अब टन के हिसाब से लिया जाने लगा है. इससे भी उद्योग चलानेवाले परेशान हैं.
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