Ranchi : वर्ष 2013 में दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट के तथाकथित 514 छात्रों को फर्जी नक्सली बताकर सरेंडर कराये जाने के मामले में रवि बोदरा ने हाइकोर्ट में रवि बोदरा ने किया हस्तक्षेप याचिका दायर किया है.
दायर किए हस्तक्षेप याचिका में रवि बोदरा ने कहा है कि उस समय के सीआरपीएफ आईजी, राज्य के पूर्व डीजीपी डीके पांडेय, पूर्व गृह सचिव जेबी तुबिद, आईजी एसएन प्रधान, कोबरा बटालियन के डिप्टी कमांडेंट पीआरके मिश्रा, कंपनी कमांडेंट लखेद्र सिंह और रांची के तत्कालीन एसएसपी को पूरी मामले की जानकारी थी.
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रवि बोदरा से लगातार संपर्क में थे एसएन प्रधान
दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट के तथाकथित 514 छात्रों को फर्जी नक्सली बताकर सरेंडर कराये जाने के मामले में उस समय के आईजी, एसएन प्रधान रवि बोदरा से लगातार संपर्क में थे. और दोनों के बीच कई बार मीटिंग भी हुई थी.
इसके अलावा रवि बोदरा ने अपने बयान में कहा है कि इन सभी लोगों के द्वारा सभी संसाधन उपलब्ध कराए गए थे. और कहा गया था कि जो भी सरेंडर करेंगे उन्हें आत्मसमर्पण नीति के तहत नौकरी और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी. इसके बाद रवि बोदरा के प्रयास से 500 से अधिक लोगों ने पुलिस अधिकारियों के समक्ष अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. उनके हथियार भी पुलिस अधिकारी द्वारा ले लिए गए और उन्हें बिरसा मुंडा जेल में छोड़ दिया गया था.
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क्या है पूरा मामला
झारखंड सहित देश के दूसरे राज्यों में नक्सलियों को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए सरेंडर कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इसी के तहत झारखंड पुलिस ने रवि बोदरा नाम के शख्स की सहायता ली. रवि के बारे में जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि वह सेना में काम कर चुका है. और वहां से रिटायर होने के बाद वह मिलिट्री इटेंलीजेंस से जुड़ गया था.
रवि बोदरा ने रांची, गुमला, खूंटी, सिमडेगा जैसे नक्सलवाद प्रभावित जिलों में घूम-घूम कर कैंप लगवाया था और सरेंडर पॉलिसी के तहत हथियार के साथ सरेंडर करने का सुझाव युवाओं को दिया. ऐसे में सीआरपीएफ और सेना में नौकरी पाने की लालच में गांव के युवकों ने जमीन और मोटरसाइकिल बेचकर रवि और दिनेश प्रजापति को पैसे दिये.
दोनों ने युवकों से कहा था कि नक्सली के रूप में सरेंडर करने पर ही नौकरी मिलेगी. बाद में सभी युवकों को पुराने जेल में रखा गया. मामला सामने आने के बाद पुलिसिया जांच की मंजूरी दी गयी. वैसे रांची पुलिस ने जो जांच किया, उसमें यह कहा गया है कि रवि, दिनेश प्रजापति के साथ बड़े अफसरों के रिश्तों की जांच नहीं की गयी.
इन 514 युवकों के फर्जी सरेंडर के बाद इन्हें सीआरपीएफ की देखरेख में रखा गया. हैरानी की बात यह रही कि सरेंडर के बाद किसी भी युवक को कोर्ट में पेश ही नहीं किया गया था. मानवाधिकार आयोग ने भी इस प्रकार युवकों को रखने के लिए पुलिस अधिकारियों को दोषी बताया था.
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रांची पुलिस ने चाईबासा से किया था रवि बोदरा को गिरफ्तार
6 अप्रैल 2014 को रांची पुलिस के द्वारा चाईबासा से गिरफ्तार के लिया गया था. रवि बोदरा ने लोअर बाजार थाना में दिये बयान में कहा था कि दिग्दर्शन कोचिंग के डायरेक्टर वर्ष 2012 में एक महिला के साथ रविवार के दिन बरियातू स्थित मेरे किराये के मकान पर मुझसे मिलने आए.
मुझसे मिलकर मेरे कार्यों के बारे में जानने के बाद उन्होंने बताया कि हमलोगों ने कई लोगों से सेना और पुलिस में बहाली के नाम पर पैसा लिया है. आप उन लोगों को भी उग्रवादी बताकर हथियार के साथ आत्मसमर्पण करा दें. ताकि उनकी भी अस्थाई बहाली हो जाये. रवि कांटाटोली स्थित दिग्दर्शन कोचिंग संस्थान गया और पैसों का प्रलोभन दिया.
रवि ने दिग्दर्शन कोचिंग के डायरेक्टर दिनेश प्रजापति को बोला इसके लिए उग्रवादी संस्था का सदस्य बनना होगा. साथ ही उसे हथियार देना होगा. दिनेश प्रजापति ने कहा कि हम हथियार की व्यवस्था कर देंगे. वर्ष 2012 में दिनेश प्रजापति के द्वारा रवि को चार लड़का और तीस हजार रुपया दिया गया. रवि ने अपने दिये बयान में कहा है कि गांव के लड़के और सरेंडर करने वाले लड़कों से मैंने खुद को आर्मी से रिटायर्ड कर्नल बताया था.
चारों लड़कों को रांची के मेन रोड स्थित एक होटल में करीब 2 महीने रखा गया. जिसका सारा खर्च दिनेश प्रजापति की ओर से उठाया गया था. कुछ दिन बाद पांच अन्य लड़कों को सरेंडर कराने के लिए 80 हजार के साथ एक रायफल, 2 दोनाली बंदूक और 3 पिस्टल दिनेश प्रजापति के द्वारा उपलब्ध कराया गया. सभी 9 लड़कों को कोबरा बटालियन के अधीन पुराने जेल में सरेंडर कराया गया. बाद में और पैसा देने का वादा किया था. जो नहीं दिया. बाद में सरेंडर कराये गये.
सभी व्यक्तियों का सत्यापन कराये जाने पर कई लोगों के विरुद्ध अपराध एक उग्रवादी घटना में संलिप्तता की बात सामने नहीं आयी. और उन्हें अपने-अपने घर जाने का निर्देश दिया गया. रवि ने बयान में कहा था कि सरेंडर कराने के लिए हमलोगों की एक टीम थी. सभी लोग मिलकर सरेंडर करवाने का काम करते थे. इस दौरान रवि को पता चला कि दिग्दर्शन कोचिंग के संचालक दिनेश प्रजापति ने आर्मी एवं पुलिस में बहाली के नाम पर कई लोगों से 2-3 लाख लिये हैं.
भुक्तभोगी लड़कों के द्वारा पुलिस में शिकायत करने और समाचार पत्र में खबर आने पर दिनेश प्रजापति ने मुझे और मेरी पत्नी को दिखाया. और साथ ही मुझे अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर मामले को रफा-दफा करने की बात कही. इसके बाद मैंने डर से अपनी पत्नी को जमशेदपुर पहुंचा दिया. और मैंने भी रांची छोड़कर चाईबासा में रहने लगा, लेकिन वहां से मैं गिरफ्तार कर लिया गया.
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मामले की जांच के लिए एसआईटी का किया गया है गठन
2013 में हुए 514 छात्रों के फर्जी नक्सल सरेंडर की पुलिस मुख्यालय ने 1 सितंबर 2020 को फिर से जांच करने का आदेश दिया था. रांची रेंज के तत्कालीन डीआइजी अखिलेश झा के नेतृत्व में एक एसआइटी गठित की गयी है, जिसमें रांची के एसएसपी भी शामिल हैं. एसआइटी की टीम अब फिर से पूरे मामले की जांच कर रही है.
इस मामले में बीते दिन सरेंडर करने वाले निर्दोष छात्रों के परिजनों ने डीजीपी से न्याय की गुहार लगायी थी. परिजनों का कहना था कि उन्हें न्याय नहीं मिला है. और इस मामले की फिर से जांच हो.
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