Ranchi : 2013 में हुए 514 छात्रों की फर्जी नक्सल सरेंडर का अनुसंधान हो रहा है. एसआईटी टीम पीड़ित छात्रों का बयान दर्ज करा रही है. पीड़ित छात्रा से बात करने पर उन्होंने बताया की अभी तक कुछ ही लोगों से बयान लिया गया है. ऐसे बहुत लोग हैं, जिनसे पुलिस संपर्क तक नहीं कर पाई. छात्रों ने बताया कि इस मामले में इंसाफ मिलने की कम उम्मीद नजर आ रही है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सात साल बाद 514 निर्दोष छात्रों को इंसाफ मिलेगा. गौरतलब है की बीते एक सितंबर को एक बार फिर से पुलिस मुख्यालय ने राज्य के 514 निर्दोष युवकों को नक्सली बताकर फर्जी तरीके से सरेंडर कराने के मामले का अनुसंधान करने का आदेश दिया था. रांची रेंज के डीआइजी अखिलेश झा के नेतृत्व में एक एसआइटी गठित की गयी है.
पूर्व डीजीपी डीके पांडेय सहित कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की फंसी हुई है गर्दन
बता दें की ग्रामीण क्षेत्रों के 514 निर्दोष युवकों को नक्सली के नाम पर हथियार के साथ आत्मसमर्पण कराने व उन्हें पुलिस की नौकरी दिलाने का झांसा देने के मामले में पूर्व डीजीपी डीके पांडेय सहित कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की गर्दन फंसी हुई है. डीके पांडेय उस वक्त सीआरपीएफ, झारखंड के आइजी के पद पर थे. भुक्तभोगी युवाओं ने डीजीपी एमवी राव से पूरे मामले की जांच की गुहार लगाई थी. युवकों ने डीजीपी एमवी राव को बताया थी कि इस बहुचर्चित मामले में उनका बयान लिए बगैर ही पुलिस ने चंद लोगों पर चार्जशीट किया, जबकि इस प्रकरण में कई वरिष्ठ अधिकारी आरोपित हैं. इसके बाद ही पुलिस मुख्यालय ने समीक्षा के बाद इस कांड का फिर से अनुसंधान का आदेश दिया था.
युवकों को एक साथ सरेंडर कराकर पुलिस ने अपनी नाक ऊंची कर ली थी
यह मामला वर्ष 2013 का है. तब रांची, खूंटी, गुमला और सिमडेगा आदि जिलों के 514 युवकों को एक साथ सरेंडर करवाकर पुलिस महकमे ने अपनी नाक ऊंची कर ली थी. सभी युवकों को सीआरपीएफ कोबरा बटालियन के जवानों की निगरानी में पुरानी जेल परिसर में रखा गया था और हथियार के साथ उनकी तस्वीरें ली गयी थीं. उस वक्त सीआरपीएफ झारखंड सेक्टर के आइजी डीके पांडेय हुआ करते थे, जो बाद में राज्य के डीजीपी बने.
रांची पुलिस पर लापरवाही के आरोप भी लगते रहे हैं
फर्जी नक्सली सरेंडर मामले में आरोप है कि रांची पुलिस ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की उस रिपोर्ट पर गौर ही नहीं किया, जिसमें कहा था कि पुलिस के सीनियर अफसरों ने सरेंडर का आंकड़ा बढ़ाने के लिए नक्सली सरेंडर पॉलिसी का दुरुपयोग किया है. इस मामले को लेकर ‘झारखंड डेमोक्रेटिक संस्था’ की ओर से झारखंड हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी. जनहित याचिका को संज्ञान में लेते हुए कोर्ट झारखंड सरकार और प्रशासन को कई बार फटकार भी लगा चुका है. गौरतलब है कि सरेंडर करने वाले युवकों में 128 का पुलिस ने बयान लिया था. इनमें अधिकांश युवकों के पता का पुलिस या तो सत्यापन ही नहीं कर पायी या वे उस पते पर नहीं मिले. इसके बाद रांची के तत्कालीन सिटी एसपी अमन कुमार के निर्देश पर इस मामले की जांच बंद कर दी. चर्चा है कि जांच बंद होने के पीछे राज्य के कई बड़े अफसरों की भूमिका है.
क्या है रवि बोदरा का बयान
6 अप्रैल 2014 को रांची पुलिस ने चाईबासा से गिरफ्तार किये गये रवि बोदरा ने लोअर बाजार थाना में दिये बयान में कहा था कि सरेंडर कराने के लिए हमलोगों की एक टीम थी. सभी लोग मिलकर सरेंडर कराने का काम करते थे. बयान के पेज नंबर तीन और चार में कहा है कि दिग्दर्शन कोचिंग के डायरेक्टर वर्ष 2012 में एक महिला के साथ रविवार के दिन बरियातू स्थित मेरे किराये के मकान पर मुझसे मिलने आए. मुझसे मिलकर मेरे कार्यों के बारे में जानने के बाद उन्होंने बताया कि हमलोगों ने कई लोगों से सेना और पुलिस में बहाली के नाम पर पैसा लिये है. आप उन लोगों को भी उग्रवादी बताकर हथियार के साथ आत्मसमर्पण करा दें. ताकि उनकी भी अस्थाई बहाली हो जाये.
इसके बाद रवि कांटाटोली स्थित दिग्दर्शन कोचिंग संस्थान गया और पैसों का प्रलोभन दिया. रवि ने दिग्दर्शन कोचिंग के डायरेक्टर दिनेश प्रजापति को कहा कि इसके लिए उन्हें उग्रवादी संस्था का सदस्य बनना होगा. साथ ही उसे हथियार देना होगा. इस पर दिनेश प्रजापति ने कहा कि हम हथियार की व्यवस्था कर देंगे. वर्ष 2012 में दिनेश प्रजापति ने रवि को चार लड़का और तीस हजार रुपये दिये.
रवि ने अपने दिये बयान में कहा है कि गांव के लड़के और सरेंडर करने वाले लड़कों से मैंने खुद को आर्मी से रिटायर्ड कर्नल बताया था. चारों लड़कों को रांची के मेन रोड स्थित एक होटल में करीब दो महीने रखा गया. इसका सारा खर्च दिनेश प्रजापति ने उठाया था.
कुछ दिन बाद पांच अन्य लड़कों को सरेंडर कराने के लिए 80 हजार के साथ एक रायफल, दो दोनाली बंदूक और तीन पिस्टल दिनेश प्रजापति के द्वारा उपलब्ध कराया गया. सभी नौ लड़कों को कोबरा बटालियन के अधीन पुराने जेल में सरेंडर कराया गया. बाद में और पैसा देने का वादा किया था जो नहीं दिया. बाद में सरेंडर कराये गये सभी लोगों का सत्यापन कराये जाने पर कई लोगों के विरुद्ध अपराध व उग्रवादी घटना में संलिप्तता की बात सामने नहीं आयी. इसके बाद उन्हें अपने-अपने घर जाने का निर्देश दिया.
इस दौरान रवि को पता चला कि दिग्दर्शन कोचिंग के संचालक दिनेश प्रजापति ने आर्मी एवं पुलिस में बहाली के नाम पर कई लोगों से 2-3 लाख लिये हैं. भुक्तभोगी लड़कों ने पुलिस में शिकायत करने और समाचार पत्र में खबर आने पर दिनेश प्रजापति ने मुझे और मेरी पत्नी को दिखाया. साथ ही मुझे अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर मामले को रफा-दफा करने की बात कही. इसके बाद मैंने डर से अपनी पत्नी को जमशेदपुर पहुंचा दिया. और मैं रांची छोड़कर चाईबासा में रहने लगा, लेकिन वहां से मैं गिरफ्तार कर लिया गया.
क्या है मामला
झारखंड सहित देश के दूसरे राज्यों में नक्सलियों को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए सरेंडर कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इसी के तहत झारखंड पुलिस ने रवि बोदरा नाम के शख्स की सहायता ली. रवि के बारे में जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि वह सेना में काम कर चुका है और वहां से रिटायर होने के बाद वह मिलिट्री इटेंलीजेंस से जुड़ गया था. रवि बोदरा ने रांची, गुमला, खूंटी, सिमडेगा जैसे नक्सलवाद प्रभावित जिलों में घूम-घूम कर कैंप लगवाया था और सरेंडर पॉलिसी के तहत हथियार के साथ सरेंडर करने का सुझाव युवाओं को दिया.
नौकरी पाने की लालच में युवकों ने जमीन व बाइक बेचकर दिये थे पैसे
सीआरपीएफ और सेना में नौकरी पाने की लालच में गांव के युवकों ने जमीन और बाइक बेचकर रवि और दिनेश प्रजापति को पैसे दिये थे. दोनों ने युवकों से कहा था कि नक्सली के रूप में सरेंडर करने पर ही नौकरी मिलेगी. बाद में सभी युवकों को पुराने जेल में रखा गया. मामला सामने आने के बाद पुलिसिया जांच की मंजूरी दी गयी. वैसे रांची पुलिस ने जो जांच की, उसमें रवि, दिनेश प्रजापति के साथ बड़े अफसरों के रिश्तों की जांच नहीं की गयी.
इन 514 युवकों के फर्जी सरेंडर के बाद इन्हें सीआरपीएफ की देखरेख में रखा गया. हैरानी की बात यह रही कि सरेंडर के बाद किसी भी युवक को कोर्ट में पेश ही नहीं किया गया था. मानवाधिकार आयोग ने भी इस प्रकार युवकों को रखने के लिए पुलिस अधिकारियों को दोषी बताया था.