
Kiriburu : 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में गोली लगने के बावजूद अपने शौर्य का प्रदर्शन करने वाले स्व. गोस्सनर तोपनो का परिवार पिछले 10 साल से सरकारी घोषणा के अनुसार जमीन का एक टुकड़ा मिलने की बाट जो रहा है. मनोहरपुर प्रखंड के सारंडा जंगल के सुदूरवर्ती गांव दीघा निवासी स्व. गोस्सनर तोपनो सारंडा के लोगों के लिए वीरता और देश प्रेम के प्रतीक हैं. लेकिन युद्ध में घायल सैनिक को कृषि कार्य व घर बनाने के लिए घोषित जमीन के लिए पहले स्वयं गोस्सनर तोपनो सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे, फिर 2014 में उनके निधन के बाद उनकी विधवा पत्नी और बेटे. उनकी पत्नी का भी निधन 2020 में हो गया. सरकारी लालफीताशाही में उलझी फाइल के लिए चक्कर लगाते-लगाते अब इस वीर सैनिक का परिवार थक चुका है. अब उनके छोटे बेटे आलोक तोपनो ने वीरता के लिए अपने पिता को सरकार की ओर से मिले चार मेडल को वापस करने की घोषणा कर दी है. आलोक तोपनो का कहना है कि यदि सरकार युद्ध में वीरता दिखाने वाले गोली से घायल सैनिक का ख्याल नहीं रख सकती है तो इन मेडल का वे क्या करेंगे.

गोस्सनर के निधन के बाद विधवा पत्नी सुसारी तोपनो के नाम नहीं हो पाई बंदोबस्ती
आलोक तोपनो बताते हैं कि उनके पिता गोस्सनर तोपनो को 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जांघ में गोली लगी, इसकी बावजूद उन्होंने अपने देश की एक इंच जमीन पाकिस्तानियों को लेने नहीं दी. जांघ में गोली लगने के कारण उनका एक पैर ठीक से काम नहीं करने लगा और उन्हें चलने में तकलीफ होती रही. वर्ष 2000 में बिहार से अलग होने के बाद सरकार की ओर से झारखंड के दीघा गांव में रहने वाले उक्त पूर्व सैनिक को कृषि कार्य हेतु पांच एकड़ तथा घर बनाने हेतु 2.5 डिसमिल जमीन मिलनी था. 2010 में गोस्सनर तोपनो ने इसके लिए जिला में आवेदन दिया. 2012-13 में जमीन बंदोबस्ती मनोहरपुर प्रखंड के बचमगुटु के खाता संख्या-1240, प्लाट संख्या 3666, रकवा- 2.5 डिसमिल, थाना संख्या-90, बंदोबस्ती अभिलेख संख्या-1/202/2013, पत्रांक संख्या- 524, दिनांक 29/11/12 को निर्धारित किया गया. साथ ही कहा गया कि 2.5 डिसमिल जमीन देने की प्रक्रिया जारी है. लेकिन इससे पहले कि जमीन की बंदोबस्ती की प्रक्रिया पूरी हो पाती सितंबर 2014 में गोस्सनर तोपनो का निधन हो गया. उनकी किडनी जो युद्धकाल के दौरान गोली लगने से डैमेज हो गई थी, ने जवाब दे दिया. उसके बाद से उनकी विधवा सुसारी तोपनो इस बंदोबस्ती को अपने नाम पर कराने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने लगीं. कभी चाईबासा, कभी चक्रधरपुर तो कभी मनोहरपुर. इस बीच 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास से वे मिली भीं. उन्होंने भी भरोसा दिया. अपर उपायुक्त ने मनोहरपुर अंचलाधिकारी को अग्रतर कार्रवाई के लिए लिखा भी, लेकिन अंततः हुआ कुछ नहीं. डीसी बदलते गए और परिवार हर डीसी के पास जाता रहा. लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी. अंततः जमीन के इस टुकड़े का इंतजार करते-करते दिसंबर 2020 में सुसारी तोपनो का भी निधन हो गया.

जब सरकार सम्मान नहीं दे सकती, तो मेडल किस काम का
अब पूर्व सैनिक स्व. गोस्सनर तोपनो का परिवार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा-लगाकर थक चुका है. गोस्सनर के पुत्र आलोक तोपनो ने कहा कि अगर सरकार सम्मान नहीं दे सकती है तो मैं मेडल का क्या करूंगा. मैं मेरे स्वर्गीय पिताजी को बहादुरी के लिए दिए गए चारों मेडल को सरकार को लौटा दूंगा. इसमें 1971 की लड़ाई में सैनिकों को मिलने वाला पूर्वी स्टार मेडल भी शामिल है. आलोक कहते हैं कि विगत 10 वर्षों से दौड़-दौड़ कर लगभग लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं. अब मैं इससे ज्यादा ना दौड़ सकता हूं, ना ही मेरे पास खर्च करने लायक पैसे बचे हैं. इससे अच्छा यही होगा कि मैं सभी मेडल वापस कर दूंगा. गोस्सनर के परिजन चाहते हैं कि झारखंड हित की बात करने वाली हेमंत सरकार देश के लाल आदिवासी वीर सैनिक को उनका हक दिलाए ताकि नौजवानांे में देश प्रेम की आस्था और सरकारी व्यवस्थाओं पर विश्वास बना रह सके.
पता करा रहे हैं कहां मामला लंबित है,समाधान करेंगे: डीसी
इस मामले में उपायुक्त अन्नय मित्तल ने मीडिया को दिए बयान में कहा है कि यह मामला मेरे संज्ञान में आया है. यह काफी पुराना मामला है. हमलोग जांच करवा रहे हैं कि यह मामला कहां पर लंबित है तथा इसे गंभीरता से लेते हुए जल्द इसका समाधान करायेंगे.
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