
कृष्ण की पटरानी तो रूक्मिणी थीं, पर कृष्ण के साथ जो नाम जुड़ गया वह राधा का है. कृष्ण की यह बालप्रिया, कम से कम हमारी स्मृति में, कृष्ण के साथ अभिन्न रूप से जुड़ गईं. कारण? गोपियों ने उद्धव से कहा था – लरिकाईं को प्रेम कहो अलि, कैसे छूटै? एक कारण यह भी हो सकता है, किंतु … महाकवि बिहारी इस प्रेम के रहस्य को यों खोलते हैं – फीको परै न बरु घटै, क्यों न सनेह गंभीर/ को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के बीर! (भला इनके बीच गंभीर स्नेह क्यों न हो! वे वृषभानु+जा हैं ,वृषभानु की बेटी और ये हलधर- बलराम के बीर, यानी भाई हैं! लेकिन सभंग श्लेष से इसका छुपा अर्थ खुलता है- वे वृषभ+ अनुजा हैं, सांढ़ की छोटी बहन यानी गाय और ये हलधर, हल धारण करने वाले बैल के भाई हैं. गाय और बैल, तो गंभीर स्नेह तो होना ही था !)
एक अधिक प्रभावी कारण यह कि कृष्ण और राधा दोनों चोर हैं. चोर और चोरनी का साथ तो प्रगाढ़ होना ही ठहरा! व्रजे वसंतं नवनीत चौरं, श्री राधिकायाः हृदयस्य चौरं. गोपांगनानां च दुकूल चौरं, चौराग्रगण्यं शिरसा नमामि! माखनचोर, राधा के हृदय के चोर, गोपियों के वस्त्रों के चोर! चोरों में अग्रगण्य हैं कृष्ण! और राधा ? उनका तो अंग-प्रत्यंग चोरनी होने की गवाही देता है– करि की चुराई चाल, हरि की चुराई लंक, शशि को चुरायो मुख, नासा चोरी कीर की. पिक को चुरायो बैन, मृग को चुरायो नैन, दसन अनार, हंसी बीजुरी अधीर की. कहें कवि ‘बेनी’ बेनी व्याल सों चुराय लिन्हीं, रति – रति शोभा सब रति के शरीर की. अब तो कन्हैया जू को चित्तहू चुराय लीन्हीं, छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की ||- हाथी की चाल चुरा ली, सिंह की कमर चुराई, चन्द्रमा का मुख चुरा लिया, शुक की नाक चुरा ली, कोयल की वाणी चुरा ली, मृग की आंखें चुरा लींओ, अनार से दांत चुरा लिए, बेचैन बिजली से हंसी चुरा ली, चोटी सांप से चोरी की, रति (कामदेव की भार्या) की हर शोभा चुरा ली, अब तो श्रीकृष्ण का चित्त भी चुरा लिया! तो फिर अहीर की यह गोरी छोरी महाचोरनी ही ठहरी!
कृष्ण को राधा के प्रति प्रेम भुलाए नहीं भूलता. वे हर पल राधा-राधा करते रहे होंगे, तभी तो रूक्मिणी के मन में कुतुहल भरा है कि यह राधा कौन और कैसी है भला! वर्षों बाद अपनी पटरानी रूक्मिणी के साथ राधारानी के गांव पधार रहे हैं कृष्ण. यह खबर गोपियों तक पहुंच जाती है और वे झुंड की झुंड रास्ते पर आकर खड़ी हो जाती हैं. रूक्मिणी का कुतूहल शमित नहीं हो पा रहा. इसलिए वे कृष्ण से पूछती हैं, कहती हैं कि इस भीड़ में राधा कौन है? अपने बचपन की जोड़ी हमें दिखलाओ जरा! बूझति हैं रूक्मिणी पिय इनमें को वृषभानु किशोरी ! नेकु हमें दिखलावहु अपने बालापन को जोरी! गोपांगनाओं की उस भीड़ में भी कृष्ण, राधा को पहचान लेते हैं – वह लखि सब जुवतिन महॅं ठाढ़ी, नील बसन, तन गोरी! –वह देखो , युवतियों की भीड़ में नील वस्त्र धारण किए गोरी युवती – राधा!
और अंततः राधा माधव की भेंट होती है. राधा माधव ऐसे भेंटे, जैसे बहुत दिनन के बिछड़े एक बाप के बेटे! एक सुभाव, एक वय दोऊ.. और, राधा माधव की जब वास्तविक मुलाकात होती है तब? राधा माधव ,माधव राधा, कीट भृंग गति ह्वै जु गई! जैसे कमल क्रोड़ में भृंगी कीट छुप जाता है, वहां केवल राधा हैं या केवल माधव! अभिन्न, तदाकार!
इन अमर प्रेमी राधाकृष्ण के श्रीचरणों में प्रणति निवेदित है.