Faisal Anurag
सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल ने एक बार फिर किसानों और मजदूरों को एक मंच पर ला खड़ा किया है. 26 और 27 नवंबर को यह हड़ताल होने जा रही है. मजदूर और किसान संगठनों का दावा है कि इस बार की हड़ताल ऐतिहासिक होगी और मोदी सरकार को अपनी नीतियों को बदलना होगा. सरकारी संस्थानों को निजी हाथों को सौंपे जाने और मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ श्रमिकों में गुस्सा है.
किसान भी तीन नये कृषि कानून के खिलाफ हैं. किसान नेताओं का आरोप है कि नये कानून खेती, किसान और गांव के खिलाफ है. कृषि में कॉरपारेट के प्रवेश के दरवाजे इससे खुलते हैं. इस बीच बैंको को निजी हाथों में देने और श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर भी विवाद गहरा गया है. केंद्र सरकार के नये प्रस्ताव के अनुसार, काम के अधिकतम कार्यसमय को 10.5 से 12 घंटे किया जाना है. इस संदर्भ में श्रम मंत्रालय ने प्रस्ताव पारित किया है. लॉकडाउन के दिनों में भी आठ राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाव या शिथिलता लाने का प्रयास किया था. अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनेक मानक इन कानूनों के कारण प्रभावित होंगे.
श्रम संगठनों का आरोप है कि केंद्र सरकार कॉरपोरेट घरानों को यह छूट देने का प्रयास कर रही है, ताकि श्रमिकों को गुलाम जैसे हालात में रखा जा सके. कांग्रेस ने कहा है कि नये श्रम कानून यदि लागू किये जायेंगे तो इससे 41 लाख नौकरियां खत्म हो जायेंगी. कांग्रेस के महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि भारत में गुलामी प्रथा एक सदी पहले खत्म हो चुकी है. लेकिन मोदी सरकार ने अपने कुछ पूंजीपति मित्रों को फायदा पहुंचाने के लिए ‘पेशेवर सुरक्षा, स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति (ओएसएच) संहिता- 2020’ द्वारा ‘मजदूरों एवं कामकाजी तबके’ की ‘आर्थिक गुलामी’ की व्यवस्था को फिर से पेश कर दिया है.
नये नियमों के अंतर्गत नियम 28 से फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के लिए 12 घंटे की शिफ्ट का प्रावधान किया जा रहा है, जिससे उनके पास फैक्ट्री आने के लिए घंटों तक का सफर करने, आराम करने, घर के काम करने या फिर परिवार को देने के लिए समय ही नहीं बचेगा और उनके काम और जीवन का संतुलन बिगड़ जायेगा.
केंद्र सरकार के प्रस्ताव में मजूदरों के लिए ओवरटाइम की बात जरूर की गयी है. लेकिन जिस तरह श्रमिक हितों का ध्यान रखने वाले विभागों के पर कतरे गये हैं, उससे आशंका प्रबल होती है और श्रमिक संगठनों के आरोप में दम लगता है. श्रमिक संगठनों के अनुसार, पहले से ही मजदूर विपरीत और अमानवीय हालातों में काम करते रहे हैं. उनके लिए तय मानकों का पालन तक नहीं किया जाता है. लॉकडाउन के समय जब श्रम कानूनों में बदलराव लाये जा रहे थे और काम के तय घंटे में बदलाव लाकर उसे आठ से 12 घंटे किया गया था, तब अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी नोटिस लिया था.
भारत सरकार को लिखे अपने पत्र में आइएलओ ने कहा था कि दुनिया भर में तय मानकों का पालन किया जाना चाहिए. आइएलओ के नियमों के मुताबिक, किसी भी इंडस्ट्रियल वर्कर से एक दिन में 8 घंटे और हफ्ते में सिर्फ 48 घंटे ही काम लिया जा सकता है.
ऐसे काम जहां पर तुरंत दूसरी शिफ्ट को काम करना होता है, वहां हफ्ते में 56 घंटे तक काम कराया जा सकता है. इसके नियमों के मुताबिक, 15 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते में 57 घंटे काम कराया जा सकता है, वहीं 15 साल से कम उम्र पर 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता.
सरकारी संस्थानों को कॉरपारेट घरानों को बेचे जाने के खिलाफ पहले से ही श्रमिक गुस्से में हैं. बैंकों के निजीकरण की खबर ने उनको आक्रोश से भर दिया है. इस बीच रिजर्व बैंके के दो पूर्व शीर्ष अधिकारी रह चुके डॉ रघुराम राजन और विरल आचार्य ने भी बैंकिग सेक्टर में कॉरपारेट प्रवेश को खतरनाक विचार बताया है. हड़ताल की आहट के बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सुधारों की बात कह गति और तेज करने की बात कही है.
केंद्र सरकार कृषि कानूनों में भी किसी तरह के बदलाव से इंकार किया है. पंजाब के किसान कानून पास होने के बाद से ही आंदोलन कर रहे हैं. पंजाब के ट्रेन आवागमन इससे प्रभावित हैं. कर्नाटक के किसानों का आंदेालन भी तेज है. मुख्यधारा मीडिया की उपेक्षा के बावजूद श्रमिकों और किसानों ने जिस स्तर की तैयारी की है, उससे लग रहा है कि 26 और 27 नवंबर को देश की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होंगी. किसानों और श्रमिकों के संगठन लंबे समय के बाद एक साथ आये हैं.
पहले से ही खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिए यह हड़ताल एक एक बड़ी चुनौती है. न केवल सार्वजनिक क्षेत्र बल्कि असंगठित क्षेत्र में भी श्रमिकों का असंतोष साफ महसूस किया जा रहा है. कोविड के नये दौर की आहट के साथ गुजरात और महाराष्ट्र वापस लौटे श्रमिकों के पुन: वापस पलायन का संकट भी गहरा गया है. अप्रैल से अगस्त तक ही लगभग 2 करोड़ लोग बेरोजगार हुए थे. श्रमिक संगठनों ने श्रमिकों के आर्थिक हितों की तुलना में इन सवालों को प्रमुखता से उठाया है और यह हड़ताल का भी एक केंद्रीय सवाल है.