Ranchi : झारखंड के ग्रामीण क्षेत्र की एक बड़ी आबादी वनोत्पाद पर आश्रित हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में अनेकों ऐसे लघु वन उत्पाद हैं. जिनकी बाजार में अच्छी कीमत है. हालांकि कोरोना संक्रमण के कारण लगे लॉकडाउन और लैम्पस एवं पैक्स की लगातार… खराब हालत के कारण वनोत्पाद में लगे लोगों को सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है. इसे देखते हुए राज्य में पहली बार वन उत्पाद फेडरेशन बनाया जा रहा है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश के बाद इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है. संभवतः मंगलवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में इस पर हरी झंडी मिल सकती है. सीएम का मानना है कि वन उत्पादों को सही बाजार नहीं मिलने से ग्रामीणों और आजीविका के लिए लघु वन उत्पादों पर निर्भर परिवारों के सामने परिवार पालने की समस्या बनी रहती है. जिसे देखते हुए यह फेडरेशन बनाया जा जाएगा.
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सीएम ने कहा था, फेडरेशन का गठन कर सरकार ग्रामीणों की बढ़ाएगी आय
सरकार गठन होने के एक साल पर सीएम हेमंत ने कहा था कि राज्य का विकास तभी संभव है, जब ग्रामीण इलाकों में समृद्धि आएगी. विशेषकर वन उत्पाद पर आश्रित लोगों को उनके जीविका का सही मूल्य दिये बिना यह पूरा नहीं हो सकता. इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में फेडरेशन के गठन के जरिए ग्रामीणों के आय को बढ़ाने की दिशा में कार्य योजना तैयार कर ली गई है.
आय बढ़ाने की दिशा में पहले ही बढ़ाया गया है कदम
ग्रामीण क्षेत्रों में वनोत्पाद पर निर्भर लोगों को उनके उत्पादों का सही मूल्य दिलाने के लिए राज्य सरकार ने पहले ही कई कदम उठाया है. बीते दिनों झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) द्वारा चयनित जिलों खूंटी, लातेहार, सिमडेगा में औषधीय सयंत्र लगाया गया है. औषधीय संयंत्र परियोजना के तहत 10,000 से अधिक किसानों को व्यवसाय करने के लिए उत्पादक समूह से जोड़ा गया है. उन्हें करंज और कुसुम जैसे वनोपज को वैज्ञानिक तरीके से संग्रह के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि किसानों को उनके उपज का सही मूल्य मिल सके.
इसी तरह लोहरदगा के किस्को प्रखंड में ब्रिकेटिंग संयंत्र की स्थापना की गयी है. जिसमें वन उत्पादों में सूखे पत्तों, पुआल, डंडियों, कृषि उत्पाद से ब्रिकेट का उत्पादन किया जा रहा है. ब्रिकेट इको फ्रैंडली होने के साथ-साथ इसकी ऊष्मा लगभग कोयले से अधिक गुणवत्तापूर्ण है. वर्तमान में स्थानीय स्त्री-पुरुष जंगल में गिरे सूखे पत्ते लाने और ब्रिकेटिंग प्लांट में बेचने का कार्य कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें हाथों-हाथ दो रुपया प्रति किलो की दर पर भुगतान किया जा रहा है. इस कार्य के माध्यम से लोगों की दैनिक आय में 100 से 300 रुपये तक की वृद्धि हो रही है और उनका आर्थिक सशक्तिकरण हो रहा है.
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