Jamshedpur: पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने राजनीति को छोड़कर आध्यात्म की राह पकड़ ली है. झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता बेसरा ने अपना नाम भी बदल लिया है. अब वे सूर्यावतार देवदूत कहलायेंगे. उन्होंने कहा कि 30 मई से ही उनके आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत हो गई. वे 13 अप्रैल को कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए थे. करीब 22 दिनों तक कोरोना के जंग जीत कर नई जिंदगी हासिल की है. बेसरा कहते हैं कि वह बरसों से भगवान की खोज में थे, लेकिन वे अब जाकर मिले. आज उन्हीं की कृपा से पुनर्जीवित हो गए हैं.
1991 में जेपीपी की स्थापना की
65 साल के बेसरा ने झारखंड अलग राज्य के निर्माण के लिए संघर्ष किया था. वे 1990 में घाटशिला विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए. जब लालू यादव ने कहा था कि झारखंड उनकी लाश पर बनेगा तब उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर 1991 में झारखंड पीपुल्स पार्टी (जेपीपी) की स्थापना की थी.
गीतांजलि और मधुशाला का संथाल अनुवाद किया
उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीतांजलि तथा डॉ हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित मधुशाला का संथाली में अनुवाद किया है. बेसरा द्वारा 2017 में घाटशिला स्थित दामपाड़ा (लेदा) में संताल विश्वविद्यालय की स्थापना की. उसी वर्ष भारत सरकार द्वारा अंगीकृत साहित्य अकादमी नई दिल्ली की ओर से मधुशाला के लिए अनुवाद पुरस्कार उन्हें मिला.
सृष्टि, प्रकृति और प्रवृति पर करें आध्यात्मिक अध्ययन
सूर्य सिंह बेसरा अब सृष्टि, प्रकृति और प्रवृति के बीच आध्यात्मिक अध्ययन करेंगे. उनका मानना है कि भले ही अलग-अलग मजहब की अलग-अलग रास्ते हों, लेकिन यकीन कीजिए कि सबकी मंजिल एक है. सबका मालिक एक है. बेसरा अब बाकी की जिंदगी का सफर आध्यात्मिक के रास्ते से तय करेंगे. इसके साथ ही साथ प्रकृति वादी बनकर बन जंगलों को बचाएंगे. प्राणियों की रक्षा करेंगे तथा प्रदूषण रहित पर्यावरण को संतुलित करेंगे.