Soumitra Roy
भूटान आज चीन के पाले में पहुंच गया है. यानी ईरान से लेकर पाकिस्तान, नेपाल और मालदीव से लेकर भूटान तक. मतलब, भारत चारों ओर से घिर गया है. पड़ोसी भूटान इस बात को अच्छी तरह से समझ गया है कि भारत की नरेंद्र मोदी सरकार चीन के आर्थिक औपनिवेशवाद को रोकने में नाकाम है.
चीन की “वन बेल्ट, वन रोड” डोकलाम के इलाके से जानी है. वर्ष 2017 में हमारे बहादुर जवानों ने डोकलाम की संप्रभुता की शानदार रक्षा की थी. उसके बाद मोदी सरकार ने चीन से “डील” कर ली. चीनी राष्ट्रपति को घर बुलाकर झूला झुलवाया, रिश्तेदारी बांधी.
अगर कारोबार ही सब-कुछ है तो अमेरिका गया हाथ से!
अब जबकि पूर्वी लद्दाख के तमाम प्रमुख रणनीतिक ठिकानों तक चीन घुस आया है. पेडिग्री मीडिया मोदी सरकार से सवाल करने के बजाय चीन से कारोबार के 100 बिलियन डॉलर पर पहुंचने से लहालोट है. इधर, भारत-अमेरिका कारोबार दो साल से नेगेटिव है. अगर कारोबार ही सब-कुछ है तो अमेरिका गया हाथ से!
अब चीन ने अपने कारोबार को बढ़ाने के लिये भूटान से ही डील कर ली है. चीन की डील सस्ते क़र्ज़ पर टिकी है. ये वही भूटान है, जिसने दुनिया में सबसे पहले कोविड का पहला डोज़ लगवा दिया और फिर भारत के आगे दूसरे डोज़ के लिए हाथ फैलाये. लेकिन मोदी सरकार की मेहरबानी नहीं हुई.
भारत की मुट्ठी से वक्त तेजी से फिसल रहा है
आज देश के विदेश मंत्री से यह पूछा जाना चाहिए कि सिक्किम के नजदीक डोकलाम को अगर भूटान ने सस्ते क़र्ज़ के बदले चीन को बेच दिया, तो उसका रणनीतिक प्रभाव क्या होगा? देखा जाये तो भारत की मुट्ठी से वक़्त तेजी से फिसल रहा है और सरकार और उसकी पालतू मीडिया दोनों चुप है. इस चुप्पी की देश को बड़ी कीमत चुकानी होगी.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.