वर्ष 1996 में यूनियन नेशंस जनरल असेम्बी ने 21 नवंबर को वर्ल्ड टेलीविजन डे के मनाने की शुरुआत की. टेलीविजन का आविष्कार जॉन लोगी बेयर्ड ने 1924 में किया था. इसके करीब तीन दशक बाद भारत में आया. झारखंड में टीवी अस्सी के दशक की शुरुअता में आया. वर्ल्ड टीवी डे के मौके पर लोगों ने साझा किए उस दौर के अनुभव जब किसी घर में टीवी का होना खास हुआ करता. आज हाथ में समाए मोबाइल में जब चाहे जो टीवी प्रोग्राम देख लें. ऐसे में उस दौर का अनुभव वाकई रोचक है-
रविवार की फिल्म के लिए छत पर टीवी
वर्ष तो याद नहीं, पर इतना याद है कि उस साल झारखंड में दूरदर्शन लॉन्च हुआ था. मेरी उम्र करीब 10-12 वर्ष थी. तब हमारा परिवार जमशेदपुर के जुगसलाई में रहता था. रविवार को घर का टीवी छत पर ले जाकर एंटीना से कनेक्ट किया जाता और घर के मेनगेट का दरवाजा खोल दिया जाता. करीब 50-60 लोग जिसमें ज्यादातर बच्चे होते, हमारी छत पर आते और फिल्म का आनंद लेते थे. वाकई तब, घर में टीवी होना और मोहल्ले भर के लोगों का घर आना बेहद स्पेशल फील कराता था. -बीना देबुका
उद्घोषिका के विदा के बाद ही बंद होता टीवी
जब रामायण आदि का टेलिकास्ट होता था, रांची के सुखदेव नगर स्थित हमारे घर में सुबह सुबह अलग ही नजारा होता था. टीवी घर के बरामदे में डायनिंग टेबल पर रखा जाता जहां से मोहल्ले भर के लोग आकर टीवी देखते. यही हाल लोकप्रिय प्रोग्राम चित्रहार के दौरान भी होता. एंटीना छत पर लगा होता और पूरे समय हम चौकन्ना रहते कि कहीं कोई कौआ या दूसरा पक्षी तो एंटीना पर नहीं बैठ गया. तब पिक्चर का हिलना डुलना खूब होता. तब मैं ही दौड़ कर छत पर एंटीना ठीक करने जाता. इस चक्कर में कई बार सीढ़ियों से गिरा भी हूं. छत पर मैं एंटीना हिलाता, घर का कोई सदस्य नीचे से चिल्ला कर बताता जाता कि अब पिक्चर क्वालिटी कैसी आ रही. उधर किचन में कलछी घूमाती मम्मी भी पूछती, टीवी ठीक हुआ? कहीं बाहर जाना होता तो टीवी की हिफाजत सबसे अहम काम था. पहले टीवी कवर, फिर टेबल कवर कवर, उससे भी संतोष नहीं हुआ तो बेडशीट को फोल्ड कर अपने छोटे से ब्लैक एंड व्हाइट टीवी को कवर कर देते. और हां, प्रोग्राम तो ज्यादा होते नहीं होते तो रात ग्यारह बजे जब उद्घोषिका कार्यक्रम खत्म होने और तब तक के लिए नमस्कार नहीं कह देती, टीवी बंद नहीं करता. – अजय मिश्रा
जयश्री राम के उद्घोष के साथ टीवी देखना
टेलीविज़न के शुरुआती दिनों से जुडी मेरी यादों मे दो यादें प्रमुख हैं. पहली तो 1975 -76 में सरकार द्वारा लगाया गया मेरे ननिहाल के सामुदायिक भवन वाला टीवी जिसे सभी इकठ्ठा बैठ कर देखते थे. दूसरी याद जुडी है रामायण के प्रसारण के दिनों की . उन दिनों मैंने अपनी ससुराल बासौली ( मधुबनी ) में एक ब्लैक एंड वाइट टीवी अपने ससुराल वालों के मनोरंजन के लिए लगवाया था. कुछ दिनों के बाद जब मेरा वहां जाना हुआ तो रविवार के दिन अचानक लोग घर में आने शुरू हों गए. फिर टीवी को उठाकर बाहर बरामदे पर रखा गया और दरियां बिछायी गईं. रामायण का प्रसारण शुरू होते ही सभी अपनी जगह पर बैठ गये और फिर सियावर रामचंद्र की जय के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. सच कहूँ तो सबसे पीछे खड़े होकर घूँघट के अंदर से टीवी देखने का जो आनंद आया वो फिर कभी अपने बेडरूम में आराम से लेट कर मनपसंद प्रोग्राम देखने में भी नहीं आया. – प्रीता अरविंद
यादों में बसे ये शो
मालगुडी डेज
आरके नारायण द्वारा लिखित यह शो की यादें आज भी 80 और 90 के दशक के बच्चों को जेहन में हैं. इसमें गिरीश कर्नाड, अनंत नाग, देवेन भोजवानी, अरुंधति नाग और दीना पाठक जैसे दिग्गज कलाकार थे.
ब्योमकेश बक्शी
बंगाली डिटेक्टिव शो ब्योमकेश बक्शी का पहला एपिसोड साल 1993 में टेलीकास्ट हुआ था. रजीत कपूर अभिनित यह शो पूरे पांच साल तक चला था.
ये जो है जिंदगी
1984 में टेलिकास्ट इस कॉमेडी शो में शफी इनामदार, स्वरूप संपत, राकेश बेदी और सतीश शाह थे.
हम लोग
सीमा पाहवा, सुष्मा सेठ, जयश्री अरोड़ा, राजेश पुरी, मनोज पाहवा, लवलीना मिश्रा जैसे दिग्गज कलाकारों के इस शो को लोग आज भी शिद्दत से याद करते हैं.
फौजी
शाहरुख खान अभिनित शो की कहानी भारतीय सेना में एक प्रशिक्षण कमांडो शिविर के इर्द-गिर्द घूमती है.
इनके अलावा बुनियाद, शांति, वागले की दुनिया, मुंगेरी लाल के हसीन सपने, रामायण, महाभारत, चित्रहार, जैसे कई टीवी शोज हैं, जो आज भी लोगों की स्मृति में बसे हैं.