Saraikela/Kharsawan : खरसावां में सरकारी काली पूजा के आयोजन को लेकर अंचल अधिकारी गौतम कुमार की अध्यक्षता में बैठक हुई. इसमें निर्णय लिया गया कि पूजा में 48 हजार रुपे खर्च किे जाएंगे. बैठक में बताया गया कि चार नवंबर की रात से मां काली की पूजा होगी, जो अगले सात दिनों तक चलेगी. बैठक में कोविड-19 को लेकर सरकार की ओर से जारी निर्देशों के अनुरुप काली पूजा आयोजित करने की बात कही गई. पूजा के दौरान सभी रस्मों को निभाया जाएगा. बैठक में पूजा के विभिन्न आयोजन पर चर्चा करते हुए जिम्मेवारी दी गई. बैठक में पहुंचे थाना प्रभारी प्रकाश कुमार ने बताया कि पूजा के दौरान मंदिर के पास सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था रहेगी. रात्रि के समय नियमित गश्ती होगी. बैठक में बताया गया कि सरकार की ओर से विभिन्न पूजा व धार्मिक अनुष्ठानों के लिए मिलने वाली वार्षिक आवंटन की राशि नहीं मिली है. पूर्व में ही सरकार से विभिन्न पूजा व धार्मिक अनुष्ठानों के लिये 7.5 लाख रुपए की मांग की गई है. हर वर्ष राज्य सरकार पूजा के लिए 5.5 लाख रुपए देती है. बैठक में गोवर्धन राउत, नयन नायक, सुशील षाड़ंगी, जीतवाहन मंडल, नेथरु पति आदि उपस्थित थे.
तीन सदियों से निर्बाध रुप से हो रही है मां काली की पूजा
खरसावां सरकारी काली मंदिर में मां काली की पूजा अब भी उसी सादगी के साथ होती है, जैसा कि पूर्व में राजा रजवाड़े के समय में होती थी. यहां बीते तीन सदियों से निर्बाध रुप से मां काली की पूजा हो रही है. आज तामझाम की दुनिया में भी माता की पूजा पहले की तरह सादगी के साथ होती है. पूजा के दौरान रियासत काल से चली आ रही हर परंपरा को निभाया जाता है. पूर्व में इस पूजा का आयोजन राज कोषागार से किया जाता था और वर्तमान में सरकारी खर्च पर होता है. 1667 में सरायकेला रियासत के ठाकुर पद्मनाभ द्वारा खरसावां रियासत की स्थापना करने के कुछ वर्ष बाद ही काली पूजा का आयोजन शुरू हुआ. 1947 में भारत की आजादी के बाद जब खरसावां रियासत का विलय भारत गणराज्य में हुआ, तो खरसावां रियासत के तत्कालीन राजा श्रीराम चंद्र सिंहदेव ने बिहार सरकार के साथ मर्जर एग्रीमेंट कर खरसावां के हर वर्ष काली पूजा के आयोजन की जिम्मेवारी सरकार को सौंप दी. तभी से यहां काली पूजा का आयोजन सरकारी खर्च पर होता है. बिहार के समय में काली पूजा के लिए काफी कम राशि मिलती थी. झारखंड बनने के बाद राशि में बढ़ोतरी हुई है. इस वर्ष काली पूजा के लिए सरकारी फंड से 48 हजार रुपए खर्च होंगे. माता की पूजा तांत्रिक विधि से होती है. पूजा का आयोजन खरसावां के सीओ की देखरेख में होता है. पूजा में स्थानीय लोग भी सहयोग करते हैं.