Giridhari lal Joshi
Deoghar : देवघर (Deoghar) देवघर बाबा बैद्यनाथ मंदिर के सरदार पंडा को लगातार 51 साल से अदालत के चक्कर लगाना पड़ रहा है. 46 साल तो अदालत को यह तय करने में लग गए कि सरदार पंडा का पद अजितानंद ओझा को दिया जाए या नहीं. हालांकि जुलाई 2017 में ही उनकी ताजपोशी हो गई. उनके निधन के बाद 2018 में पुत्र गुलाबचंद्र ओझा को सरदार पंडा के पद पर बिठाया गया. अब वह पांच साल से अपनी पगार पाने के लिए अदालत और सरकारी दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं. मसलन 51 साल बाद भी अदालतों से छुटकारा नहीं मिल रहा है.
सरकार के सचिव को लिखा गया पत्र, नहीं आया जवाब
देवघर के उपायुक्त मंजू भयंत्री ने इसी साल 25 अगस्त को पत्रांक 257 जरिये संथाल परगना के आयुक्त से मार्ग दर्शन कराने का अनुरोध किया है. देवघर के डीसी ही बैद्यनाथधाम-बासुकीनाथ तीर्थ क्षेत्र विकास प्राधिकार के प्रशासक भी हैं. पत्र में डीसी ने लिखा है कि सिविल जज, सीनियर डिवीजन-1 देवघर द्वारा गुलाबचंद्र ओझा सरदार पंडा का मानदेय तय करने का आदेश पारित किया. इस सिलसिले में पर्यटन, कला संस्कृति खेलकूद व युवा कार्य विभाग झारखंड के सचिव व अपर सचिव को भी दो पत्र लिखा गया. डीसी के 2 अगस्त 2019 में पत्रांक 379 व 27 सितंबर 19 को पत्रांक 436 के जरिये लिखे गए पत्र का भी कोई जबाव नहीं आया. इसी कारण अब संताल परगना के आयुक्त से मार्ग दर्शन मांगा गया है.
मंदिर पर सरकार और जिला प्रशासन का कब्जा बरकरार
मालूम है कि उनके आवेदन पर उन्हें नब्बे हजार रुपए मानदेय देने का आदेश सेशन सब-जज ने झारखंड सरकार और देवघर के डीसी को दिया था. आदेश जनवरी 2019 में दिया गया. मगर उन्हें पहले 13 महीने तक तो एक पाई भी नहीं मिली. हालांकि अक्तूबर 2018 से सिर्फ तीस हजार रुपये का भुगतान किया जा रहा है. झारखंड सरकार और जिला प्रशासन का मंदिर पर कब्जा है. प्रशासन की मनमानी इस कदर है कि अदालत के आदेश को भी दरकिनार करने से भी नहीं चूकते. सरदार पंडा के भाई बाबा झा कहते हैं कि यह सरासर अदालत के आदेश की अवहेलना है.
कमेटी व श्राइन बोर्ड भी नहीं कर रहा कोर्ट के आदेश का पालन
सरदार पंडा गुलाबनंद ओझा ने इस संवाददाता को बातचीत में बताया कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक सह देवघर के उपायुक्त और बाबा बैद्यनाथ श्राइन बोर्ड को कई दफा लिखित आवेदन देकर कोर्ट के आदेश का पालन करने की गुजारिश की गई. मगर कोई परिणाम नहीं निकला. सरदार पंडा पद की गरिमा को ठेस पहुंचाई जा रही है. उनका कहना है कि मंदिर के कर्मचारी को तो प्रशासन ने अंगरक्षक और गाड़ी मुहैया करा दी है. मगर सरदार पंडा को कोई सुविधा नहीं दी गई, जबकि सरदार पंडा के पद की अपनी गरिमा व अहमियत है.
सुप्रीम कोर्ट ने सरदार पंडा को बनाया है ट्रस्टी
प्रबंध समिति ने मंदिर मॉनिटरिंग कमिटी का भी सदस्य नहीं बनाया. सिर्फ पूजा का अधिकार है. सारा कब्जा सरकारी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक बाबा बैद्यनाथ मंदिर समूह व पब्लिक ट्रस्ट है. सरदार पंडा इसके एकमात्र ट्रस्टी सह मुख्य पुजारी होते हैं. बावजूद वह मूक दर्शक ही बने हैं. एक जमाने से बाबा मंदिर प्रांगण में ही सरदार पंडा का आवास है. आज उनके आवास के शौचालय तक अंधेरे में डूबे हैं. हालांकि मंदिर की आमदनी करोड़ों की है.
प्रधानमंत्री, सीएम भी सरदार पंडा से लेते हैं आशीष, नहीं दे रहे अधिकार
दरअसल सरदार पंडा पद पाने की आपसी लड़ाई जब कोर्ट-कचहरी तक पहुंची तो 46 वर्षों तक यह विवादों के घेरे में रही. इस दौरान प्रशासन को मंदिर के मामले में दखल की आदत पड़ गई. सामाजिक कार्यकर्ता संजय भारद्वाज और सुनील मिश्रा कहते हैं कि प्रशासन के टालमटोल रवैये और अनदेखी की वजह से सरदार पंडा पद को पंगु बना दिया गया है. यह सरासर लालफीताशाही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देवघर जब चुनाव सभा करने आए तो सरदार पंडा गुलाबनंद ओझा का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी पूजा करने मंदिर आते हैं तो सरदार पंडा का आशीष लेते हैं. मगर बावजूद अनदेखी कायम है.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
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