Pravin Kumar (राजाडेरा गांव से लौटकर)
Gumla : निर्मला असुर सात माह के गर्भ से है. उसकी एक बेटी भी 15 महीने की है, सरकारी टीकाकरण का लाभ उन्हें और गांव के किसी बच्चों को नहीं मिल रहा है. 21 साल की सुखमनी असुर के भी तीन बच्चे हैं, रोशन 6 साल, सुसाना 16 माह और 8 माह की एक बेटी गोद में है. वह कहती हैं मेरे किसी भी बच्चे का टीकाकरण नहीं हुआ है. गांव में टीका देने के लिए एएनएम नहीं आती हैं. वहीं अपनी भौगोलिक स्थिति और सरकारी उदासीनता के कारण गांव की महिलाओं को असहनीय प्रसव पीड़ा सहना पड़ता है. मजबूरी में अधिकतर बच्चों का जन्म घर में ही हो जाता है. यह व्यथा गुमला जिला के चैनपुर प्रखंड के राजाडेरा गांव की है. जहां विलुप्त होती आदिम जनजाति असुर के साथ मुंडा, उरांव जाति के करीब 90 परिवार रहते हैं. यह गांव उस गुमला जिला का हिस्सा है, जिसके डीसी को सिविल सर्विसेज डे के मौके पर देश के प्रधानमंत्री के हाथों एक्सीलेंस अवॉर्ड मिला है. यह गुमला जिला सहित झारखंड के लिए बेहद गर्व की बात है और होनी भी चाहिए. लेकिन उसी गुमला जिला के आदिवासी बहुल गांव राजाडेरा में सालों से नौनिहालों के निवाले छीन लिए गए हों, बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को टीकाकरण से पूर्णत: वंचित होना पड़ रहा हो, शिक्षकों की मनमानी से स्कूल बन्द पड़ा हो और मनरेगा जैसे महत्वकांक्षी योजना दम तोड़ रही हो, तब इसकी जवाबदेही भी उसी जिला प्रशासन को लेनी होगी, जिसे लोक प्रशासन के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया है. गांव में सरकार नाम की चीज भी होती है. ऐसा बिल्कुल भी देखने को नहीं मिला.
समेकित बाल विकास योजना
गांव में आज भी आंगनबाड़ी भवन नहीं बना है. सेविका सलोमी तिर्की गांव में नहीं रहती हैं. वह छह महीने में गाहे-बिगाहे एक दो बार आती हैं. सहायिका के भरोसे किसी तरह इनके घर में केंद्र चलता था. लेकिन एक महीने पहले उनका भी देहांत हो जाने के कारण आंगनबाड़ी केंद्र पूरी तरह बंद है. लापरवाही का जो आलम सेविका का है, ठीक वही हाल एएनएम सरोज बाड़ा का है. वह इस गांव में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण के लिए बिल्कुल भी नहीं आती हैं . जिसकी वजह से गांव में दर्जनों छोटे बच्चे टीकाकरण से पूरी तरह वंचित हैं. गर्भवती महिलाओं प्रधानमंत्री मातृत्व योजना का लाभ मिलने की तो सोच भी नहीं सकती. गांव का आंगनबाड़ी केंद्र मनरेगा और समाज कल्याण विभाग के अभिसरण से वित्तीय वर्ष 2021-22 से ही बनाया जा है, जो डोर लेवल तक बनाकर लावारिश छोड़ दिया गया है.
गुमला के सिविल सर्जन को इसकी जानकारी तक नहीं है. पक्ष मांगा गया तो उन्होंने ऐसी जानकारी नहीं होने की बात कही.
क्या कहते हैं डीसी सुशांत गौरव
गुमला डीसी सुशांत गौरव से जब पूरे मामले में पक्ष मांगा गया तो उन्होंने कहा कि अगर इस तरह की स्थिति है तो काफी गंभीर और दुखद है. संभवतः दूसरे गांवों में भी यह हो रहा होगा. मैं पूरे मामले की जांच करने के बाद जो जिम्मेवार पदाधिकारी हैं, उनपर कार्रवाई करूंगा.
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