Pramod Upadhyay
Hazaribagh: जिले में इन दिनों अवैध कॉलेज और स्कूल खोलकर लोग व्यवसाय चला रहे हैं. पहले कोचिंग और ट्यूशन के नाम से शिक्षण संस्थान चलाते हैं. बाद में उसे कॉलेज और स्कूल का दर्जा दे देते हैं. स्कूल और कॉलेज खोलने के लिए कई प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. यहां तक कि शिक्षा विभाग को भी जानकारी दी जाती है. लेकिन हजारीबाग में ऐसा कुछ नहीं देखा जा रहा है. मर्जी हुआ तो स्कूल-कॉलेज खोल दिए. कमाई हुई तो ठीक, अन्यथा धंधा बदल देते हैं और उनमें नामांकित विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटक जाता है.
गांव और दूसरे जिले से हजारीबाग को एजुकेशन हब समझ कर शिक्षा ग्रहण करने के लिए लोग बच्चों को लाते हैं. फिर एजेंट की चपेट में फंसकर ऐसे ही अवैध स्कूल-कॉलेजों के बिछाए जाल में फंस जाते हैं. उन्हें टॉप का एजुकेशन देने और फर्स्ट डिवीजन पास करवाने का झांसा एजेंटों की ओर से दिया जाता है. बाद में उन्हें कोचिंग में शिफ्ट कर पढ़ाई शुरू करा दी जाती है और कॉलेज से रजिस्ट्रेशन देने की बात कही जाती है. ऐसे में बच्चे भटक जाते हैं. वह सही निर्णय नहीं ले पाते हैं.
अभिभावक ने बयां की पीड़ा
इस संबंध में विष्णुगढ़ के रामवृक्ष कहते हैं कि वे लोग किसान हैं. अपने बच्चों को पढ़ने के लिए शहर भेजते हैं. लेकिन शहर में सब्जबाग दिखा कर कोचिंग संस्थान वाले एडमिशन ले लेते हैं और मोटी रकम की लिस्ट बढ़ा देते हैं. वे लोग जानकार नहीं होने की वजह से उनके झांसे में फंस जाते हैं. जब साल भर बीत जाता है, तो वह बच्चे के रजिस्ट्रेशन के नाम पर मोटी रकम की मांग करते हैं और बच्चे भी कोचिंग वालों के झांसे में फंस जाते हैं. एक साल के बाद पता चलता है कि बच्चों का नाम शहर के कॉलेज में लिखवाए थे और परीक्षा देने के लिए उन्हें पदमा, चरही, बड़कागांव और बरही जैसे सुदूरवर्ती जगहों पर ले जाना पड़ता है. पूछे जाने पर वह कहते हैं कि वहीं से रजिस्ट्रेशन हुआ है, बच्चा आपका टॉप कर जाएगा. कॉलेज में न तो प्रैक्टिकल करने की व्यवस्था है और न ही बैठने के लिए क्लासरूम. अब हम किसान अभिभावक बच्चे से मिलने आते हैं, तो कॉलेज के एक बाहर के रूम में मिलाया जाता है. वे न क्लास रूम को देखते हैं और न ही कॉलेज की व्यवस्था देख पाते हैं.
उत्कर्ष इंटर कॉलेज का कुछ ऐसा ही है मामला
हजारीबाग के एनएच-33 स्थित सिंघानी बायपास रोड के किनारे उत्कर्ष इंटर कॉलेज का भी मामला कुछ ऐसा ही है. कॉलेज संचालन के लिए कॉलेज के पास न कोई कागजात है और न शिक्षा विभाग को कोई जानकारी दी गई है. कई साल से बिना बोर्ड लगाए कॉलेज चलाते रहे और लोगों को झांसा देते रहे. जब बच्चों की संख्या बढ़ गई, तो मार्केटिंग करनी शुरू कर दी. 21 सितंबर को कॉलेज की बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर जहां हाई वोल्टेज तार गुजरा हुआ था, वहां कॉलेज का बोर्ड लगाने के लिए डायरेक्टर लालमोहन एक बिजली मिस्त्री राजकुमार के साथ एक शिक्षक राजन को लेकर ऊपर चढ़ गए. बोर्ड लगाने के क्रम में मिस्त्री 33 हजार हाई वोल्टेज बिजली तार की चपेट में आ गया.
मौके पर ही मिस्त्री की मौत हो गई और शिक्षक व डायरेक्टर बाल-बाल बच गए. मृतक के परिजनों ने कॉलेज के संचालक पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए मुफस्सिल थाने में फर्द बयान में मुआवजे की गुहार लगाई है. मृतक के परिजनों का कहना है कि जब तीसरी मंजिल के ऊपर हाई वोल्टेज तार वर्षों पहले से गुजरा हुआ है और खुद डायरेक्टर तीसरी मंजिल पर चढ़कर बोर्ड लगाने को कहा, तो हादसे के बाद मुआवजा कौन देगा. अगर वहीं कोई बच्चा चढ़ता और यह घटना घटती तो क्या होता है.
क्या कहते हैं परिजन
इस संबंध में मृतक के परिजन राजीव कुमार का कहना है कि यह घटना कॉलेज प्रबंधक की लापरवाही से हुई है. मृतक के परिजनों को कम से कम 20 लाख रुपए मुआवजा मिलना चाहिए. बता दें कि दैनिक अखबार शुभम संदेश ने पहले ही खबर लिख उत्कर्ष कॉलेज में हादसे के बारे में चेताया था कि एनएच-33 के किनारे संचालित फर्जी कॉलेज में कभी भी घटना घट सकती है. यहां चहारदीवारी भी नहीं है. ऐसे में विद्यार्थी हो या शिक्षक कभी भी सरपट दौड़ते वाहनों की चपेट में आ सकते हैं. साथ ही छत के ऊपर से गुजरे हाई वोल्टेज तार से भी दुर्घटना घट सकती है और वही हुआ भी. इसमें एक बिजली मिस्त्री की मौत भी हो गयी.
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