Shubham Kishor
Ranchi : वर्ष 1958 में सबसे बड़े एकीकृत इंजीनियरिंग औद्योगिक कॉम्प्लेक्स के रूप में उत्कृष्ट अभिकल्पना, इंजीनियरिंग व उत्पादन सुविधा के आधार के रूप में एचईसी की स्थापानी की गयी थी. कंपनी ने वर्ष 1964 में उत्पादन शुरू किया. कंपनी में कास्टिंग, फोर्जिंग, फैब्रिकेशन, मशीनिंग, असेंबलिंग से लेकर परीक्षण तक की सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं, जो सशक्त डिजाइन, इंजीनियरिंग और टेक्नोलाजी टीम द्वारा संचालित होती थी. आवसीय परिसर में एचईसी प्रबंधन द्वारा बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाये गये थे, जिस पर स्लोगन लिखे थे- अनुशासन ही देश को महान बनाता है, एचईसी मशीनें बनाती हैं, मशीनें देश को. एशिया के सबसे बड़े कारखाना के रूप में ख्यातिप्राप्त एचईसी द्वारा तैयार मशीनों से देश ही नहीं बल्कि विदेशों में दूसरे कल-कारखानों की स्थापना की गयी. खास कर इस्पात संयंत्रों की स्थापना में एचईसी की अहम भूमिका रही है. एक वक्त ऐसा था, जब एचईसी मुनाफा कमाने वाली इंडस्ट्री थी. इसरो के लिए रॉकेट लांचिंग पैड से लेकर तोप के पार्ट-पुरजे तक एचईसी में तैयार किये जाते थे. लेकिन आज हालत यह हो गयी है एचईसी पूरी तरह से बदहाल हो गया है. न निगम के पास वर्किंग कैपिटल है और न वर्क आर्डर. कार्यादेश है भी, तो काम करने , रॉ मटेरियल का जुगाड़ करने तक के पैसे नहीं हैं. कभी 22 हजार कर्मचारियों से शुरू हुए कारखाने की हालत आज हो गयी है कि यहां स्थायी और ठेका कर्मचारी मिला कर गिने-चुने 26-2700 कर्मचारी ही बचे हैं. 1100 स्थायी और 1600 अस्थायी कर्मचारी हैं, जिन्हें न तो 22 महीनों से वेतन मिल रहा है और न अन्य सुविधाएं हीं.एचईसी के शिखर से ढलान तक सफर…
कैंपस में लगे थे होर्डिंग्स, लिखा था- एचईसी मशीनें बनाती हैं, मशीनें देश को
लेकिन अब अंतिम सांसें गिन रहा एशिया का सबसे बड़ा कारखाना
भीषण आर्थिक तंगी से गुजर रहे एचईसी के पास वर्किंग कैपिटल नहीं होने के कारण कोई काम ही नहीं कर पा रहा है. पूंजी के अभाव में न तो निगम कंपनी कच्चा माल मंगा पा रहा है और न वर्क आर्डर समय पर पूरा कर पा रहा है. एचईसी में चालू वित्तीय वर्ष 23-24 में मात्र 20 करोड़ रुपये का ही उत्पादन हुआ है. कंपनी पर हर माह वेतन मद में लगभग 7 करोड़ रुपये का खर्च है. कर्मियों को मिलने वाले भत्ते और अन्य मदों को मिलाकर हर माह का खर्च लगभग 11.50 करोड़ रु होता है. वहीं एचईसी की सुरक्षा में लगे सीआईएसएफ पर प्रतिमाह लगभग डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हो रहा है. साथ ही बिजली व पानी का खर्च भी हर माह अलग से हो रहा है. कंपनी पर ढाई से तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक की देनदारी हो गयी है. वहीं एचईसी के तीनों प्लांट में उत्पादन ठप रहने के कारण मशीनें जंग खा रही हैं. करोड़ों रुपये के बड़े-बड़े फर्नेश, लेथ मशीनें, गैस प्लांट मेंटेनेंस के अभाव में बंद पड़े हैं. इन मशीनों को फिर से चालू करने पर ही करोड़ों रुपये खर्च करने होंगे.
कितनी जमीन है एचईसी के पास
* एचईसी की स्थापना के लिए 7199.51 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था.
* 1669 एकड़ जमीन पर एफएफपी, एचएमटीपी और एचएमबीपी प्लांट बना.
* 430 एकड़ पर आवासीय कॉलोनियों का निर्माण हुआ
* सीआईएसएफ को 158 एकड़ जमीन दी गई.
* शैक्षणिक और अन्य संस्थानों को 313 एकड़ जमीन आवंटित की गयी.
* 2017 में स्मार्ट सिटी के लिए 675 एकड़ जमीन बेची गयी.
* 2005-06 में 2341 एकड़ जमीन राज्य सरकार को हस्तांतरित की गई.
* 400 एकड़ से अधिक जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जा कर घर-दुकानें बना ली हैं
*आरडीसीआईएस की सेटेलाइट कॉलोनी के लिए 65 एकड़ जमीन दी गयी
*निफ्ट को 57.47 एकड़, स्कूल और कॉलेज को 86.18 एकड़ जमीन आवंटित
*जेएससीए को 31.70 एकड़, पेट्रोल पंप को 1.8 एकड़ व दूरसंचार विभाग को 1.6 एकड़ जमीन लीज पर दी गई
फिलहाल 1000 एकड़ भूखंड ही एचईसी का खाली पड़ा है, जिसे लीज पर देकर या बेचकर कारखाना चलाने की मांग उठती रही है.
80 के दशक तक मुनाफे की कंपनी, 90 आते-आते बीमार
देश ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा उद्योग एचईसी खुलने के बाद 80 के दशक तक ठीक से चला. जब कभी एचईसी को घाटे का सामना करने की नौबत आयी, तो इसकी क्षतिपूर्ति केंद्र सरकार किया करती थी. 70-80 के दशक में एचईसी दो बार मुनाफे में रही. वहीं वर्ष 1984-85 में आंशिक रूप से लाभ कमाया. इसके बाद से एचईसी का डाउनफॉल शुरू हुआ. वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण के दौर में एचईसी की स्थिति और खराब हो गयी. वर्ष 1992 आते-आते पहली बार एचईसी रूग्ण उद्योगों की श्रेणी में शामिल हो गया और बीआईएफआर (औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड) के अधीन चला गया. कर्मचारियों से का वेतन असामयिक हो गया और उनकी हर तरह की सुविधाएं धीरे-धीरे बंद होने लगी.
केंद्र सरकार की खराब नीतियां भी जिम्मेवार रहीं
एचईसी के घाटे में जाने के कई कारण हैं. शुरुआती दौर में एचईसी जिन उपकरणों का निर्माण करता था, उसके दाम केंद्र सरकार तय करती थी. एचईसी को कभी भी लागत के अनुसार दाम नहीं मिले. राजनीतिक पहुंचवाले लोगों को सरकार ने सीएमडी जैसे पदों पर बैठाया. आवश्यकता के मुताबिक कर्मचारियों की बहाली नहीं हुई. प्लांटों का आधुनिकीकरण नहीं किया गया. मशीनें भी नहीं बदली गई. अधिकारियों ने यहां परिवारवाद को जन्म दिया. योग्यता नहीं होने के बावजूद रिश्तेदारों की नियुक्तियां की गयीं.
खर्च कम करने के लिए 1992 में वीआरएस स्कीम लागू किया
खर्च कम करने की नीति के तहत वर्ष 1992 में वीआरएस स्कीम लागू किया गया. इससे भी एचईसी को नुकसान उठाना पड़ा. वर्ष 2019 में सीएमडी अभिजीत घोष के सेवानिवृत्त होने के बाद भेल के • सीएमडी नलिन सिंघल को अक्तूबर 2019 में एचईसी के सीएमडी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया. स्थायी सीएमडी नहीं रहने से एचईसी की स्थिति में और अधिक गिरावट आने लगी. प्रभारी सीएमडी अपने कार्यकाल के दौरान पांच-छह बार ही एचईसी आये. स्थायी सीएमडी नहीं होने के कारण एचईसी की कार्यसंस्कृति खराब होती गयी. वर्तमान में एचईसी के तीनों निदेशक अतिरिक्त प्रभार में है, जो नियमित रूप से एचईसी नहीं आते हैं. इस कारण महत्वपूर्ण कार्यों में विलंब होता है. इसका असर उत्पादन पर पड़ता रहा.
1998 में एचईसी बंद करने की सिफारिश की थी
वर्ष 1996 में केंद्र सरकार ने एचईसी को 750 करोड़ रुपये का पैकेज दिया और कंपनी बीआईएफआर से बाहर आ गई. दो साल बाद वर्ष 1998 में एचईसी एक बार फिर बीआईएफआर के अधीन चली गयी और बीआईएफआर ने इसे अंतिम रूप से बंद करने की सिफारिश कर दी. इसके बाद मामला हाइकोर्ट में चला गया. केंद्र व राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद एक बार फिर एचईसी को पैकेज देने पर संहमति बनी, वर्ष 2004 में केंद्र सरकार ने 2100 करोड़ का पुनर्वास पैकेज पास किया.
2006 से 2014 तक व 2017-18 में हुआ लाभ, फिर घाटा ही घाटा
वर्ष 2007 में एचईसी के सीएमडी जीके पिल्लई बने. इसके बाद वर्ष 2006-07 से 2013-14 तक एचईसी लाभ में रहा. वर्ष 2014-15 में 241.68 करोड़, 2015-16 में 144.77 करोड़ और 2016-17 में 82.27 करोड़ का घाटा हुआ, लेकिन 2017-18 में 446 करोड़ का लाभ भी हुआ. फिर 2018- 19 में 93 करोड़ का घाटा, 2019-20 में 405.37 करोड़, 2020-21 में 175 करोड़, 2021-22 में 256 करोड़, 2022- 23 में 230 करोड़ और 2023-24 में 250 करोड़ का घाटा हुआ.
कर्मियों की सुविधाएं लगातार बंद होती गईं
एचईसी की आर्थिक स्थिति खराब होने पर धीर-धीरे कर्मियों की स्थिति भी खराब होने लगी. वर्तमान में स्थिति यह है कि कर्मियों को 22 माह से वेतन नहीं मिला है. अधिकारियों के पास गाड़ी तो है, लेकिन उसमें तेल भराने तक के पैसे नहीं. मुख्यालय सहित तीनों प्लांट में कैंटीन सुविधा बंद है. एचईसी कर्मियों की स्वास्थ्य सुविधा के लिए शुरू किये गये वेलनेस परियों सेंटर में न तो चिकित्सक हैं और न ही मेडिकल स्टॉफ, कर्मियों को दवाएं भी नहीं मिलती हैं. डीजल के अभाव में एंबुलेंस सेवा भी बंद है.
खेल के मैदान- खाली पड़ी जमीन पर अवैध कब्जा
एचईसी ने अपने कर्मियों के लिए 430 एकड़ जमीन पर आवासीय कॉलोनियों का निर्माण कराया था. मरम्मत के अभाव में कई भवन व क्वार्टर जर्जर हो गए, खेल के मैदान, खाली पड जमीनों पर अवैध कब्जा हो गया. अवैध निर्माण के कारण सिवरेज-ड्रेनेज का पाइप जाम रहन है. एचईसी ने झारखंड सकार को 1148 क्वार्टर बेच दिए व 6784 आवासों को दीर्घकालीन लीज पर दे दिया. वर्तमान में एचईसी के पास 3177 आवास ही बचे हैं.
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