Ranchi: राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान “रिम्स” को राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल होने का तमगा प्राप्त है. बहुमंजिला इमारत और कई विभागों वाला रिम्स लोगों के लिए वरदान साबित होता है. लेकिन आज रिम्स प्रबंधन और रिम्स के निदेशक की उदासीनता का खामियाजा हिमोफीलिया का मरीज बापी दास भुगत रहा है. 4 महीने से भी अधिक समय तक अधिकारियों के चक्कर काटने और कई बार पत्राचार होने के बावजूद बापी को जीवन रक्षक दावा बाईपास एजेंट फाइवा नहीं मिल पाया. अंत में इलाज करने वाले डॉक्टर भी हार कर बापी को डिस्चार्ज कर दिया.
क्या है मामला
दरअसल बोकारो जिले के चंदनक्यारी बरमसिया का रहने वाला बापी दास के दाहिने पैर का ऑपरेशन हुआ था. इलाज रिम्स के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ एलबी मांझी ने की थी. बापी को हिमोफीलिया होने के कारण उसे जीवन रक्षक दवा बाईपास एजेंट फाइवा लिखी गई. दवा के लिए बापी की मां 4 महीने से भी अधिक समय तक रिम्स के अधिकारियों से गुहार लगाती रही लेकिन दवा नहीं मिली.
छुट्टी होने के बाद एम्बुलेंस से पहुंचा निदेशक कार्यालय
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मरीज बापी दास एंबुलेंस से सीधे रिम्स के प्रशासनिक भवन पहुंचा. मरीज रिम्स के निदेशक डॉ कामेश्वर प्रसाद से मिलने की गुहार कर रहा था. लेकिन सुरक्षा में तैनात जवान उसे एंबुलेंस हटाने के लिए कह रहे थे. कोरोना का हवाला देकर रिम्स निदेशक ने मिलने से इंकार कर दिया.
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प्रबंधन की लापरवाही से परेशान हैं मरीज
वहीं मरीज बापी दास ने कहा कि पिछले 4 महीने से भी अधिक समय तक चक्कर काटने के बाद भी रिम्स के अधिकारी दवा के लिए पैसे का भुगतान नहीं कर रहे हैं. आज मुझे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है. दवा नहीं मिला तो पैर काटना पड़ेगा और भविष्य खत्म हो जाएगा.
फंड में करोड़ों रुपए फिर भी नहीं हो रही है दवा की खरीद
वहीं हिमोफीलिया ट्रीटमेंट सोसाइटी रांची चैप्टर के सचिव संतोष जयसवाल ने कहा कि हीमोफीलिया मरीज के लिए दवा की मांग रिम्स प्रबंधन से की गई है. दवा के खरीद के लिए दो करोड़ 20 लाख रुपए फंड में हैं. बावजूद इसके फाइल को एक विभाग से दूसरे विभाग में उलझा कर रखा गया है.