Dumka: दुमका जिले के हिजला गांव और मयूराक्षी नदी के बीच पिछले 130 सालों लगनेवाला हिजला मेला इस साल नहीं लगेगा. कोरोना के कारण पहली बार मेला का आयोजन नहीं करने का फैसला किया गया है. डीसी राजेश्वरी बी. की अध्यक्षता में हिजला मेला समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया. बैठक में मुख्य रूप से मेला की तिथि निर्धारित की जाती है.
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मरांग बुरू की होगी पूजा
हिजला मेला पिछले 130 सालों से हिजला गांव में मनाया जाता है. तब से यह मेला फरवरी माह के तीसरे शुक्रवार को लगाया जाता है. एक सप्ताह चलनेवाला हिजला मेला भले ही इस साल आयोजित नहीं होगा, लेकिन वहां आदिवासी समुदाय द्वारा मरांग बुरू की पूजा की जायेगी.
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सरकार की गाइडलाइन आने पर होगा फैसला
डीसी ने बताया कि जनजातीय हिजला मेला के लिए सितंबर में ही आवंटन प्राप्त हो जाता था, लेकिन इस साल अभी तक आवंटन नहीं मिला है. कोविड के कारण 2020 में श्रावणी मेला का आयोजन भी नहीं किया गया था. उन्होंने कहा कि हिजला मेला के आयोजन को लेकर यदि सरकार की कोई गाइडलाइन आती है, तो मेला समिति बैठक इसपर उचित निर्णय लेगी.
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मेले में सरकार देती है योजनाओं की जानकारी
हिजला मेला संस्कृतियों के आदान-प्रदान और परंपराओं के निर्वहन का माध्यम है. यह मेला जनता और प्रशासन के बीच सीधे संवाद का भी एक जरिया रहा है. इस मेले में कृषि एवं अन्य प्रदर्शनियों के माध्यम से सरकार लोगों तक योजनाओं की जानकारी पहुंचाती है. वहीं खेलकूद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है. इसके माध्यम से ग्रामीणों को खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया जाता है.
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जॉन राबर्ट्स कास्टेयर्स ने 1890 ई. में की थी शुरुआत
हिजला मेला की शुरुआत अंग्रेज जिलाधिकारी जॉन राबर्ट्स कास्टेयर्स द्वारा 3 फरवरी सन 1890 ई. को की गयी थी. हिजला मेला प्रदर्शनी स्थल का नाम कास्टेयर्स हॉल रखा गया. माना जाता है कि स्थानीय लोगों को उनकी परंपरा, रीति-रिवाज एवं सामाजिक नियमन से परिचित कराने के लिए मेला का आयोजन किया जाता है. साथ ही स्थानीय लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने के लिए मेला की शुरुआत की गयी थी.
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