Faisal Anurag
दुनिया के लोकतंत्र और मानवाधिकार का भविष्य आखिर कौन तय करेगा. अमीर देश या फिर संयुक्त राष्ट्र संघ जो कि व्यापक भागीदारी और विचार का बड़ा मंच है. जी-7 के देशों ने चार आमंत्रित देशों के साथ जिस तरह चीन और रूस दोनों पर निशाना साधा है, उससे जाहिर होता है कि आने वाले दिनों में दुनिया बड़े राजनीतिक टकराव की ओर बढ़ गयी है. अमीर माने जाने वाले देशों की फितरत रही है कि वे अपनी नीतियों को दुनिया पर थोपने के अभ्यस्त रहे हैं. भारत इन देशों के साथ मिल कर विश्व शक्ति संतुलन के अमीर देशों के मंच के साथ दिखने लगा है. जी 7 की कुल उपलब्धी चीन के खिलाफ साझा संघर्ष की दिशा तय करना है. जी 7 की बैठक के बाद जो साझा संकल्प जारी किया है, उसके खिलाफ चीन और रूस खड़े हैं.
जी-7 के सदस्य कोविड तबाही के सबसे बड़े शिकारों में 0 रहे हैं. सर्वाधिक मरीजों और मौतों के मामले में अमेरिका सबसे आगे है. जी -7 के इरादे साफ दिख रहे हैं कि दुनिया में वैक्सीनेशन की वह अगुवायी करे. वह भी वैक्सीन पेटेंट को खत्म किए बगैर. हालांकि भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जरूर पेटेंट को लेकर सवाल उठाए. लेकिन वैक्सीनेशन दुनिया के उस फर्मा इंडस्ट्री के पेटेंट से जुड़ा है, जो बड़े देशों की नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.
लेकिन जी-7 देशों के संयुक्त घोषणा पत्र का मूल जोर लोकतंत्र,मानवाधिकार और अभिव्यक्ति के ऑन और ऑफ लाइन स्वतंत्रता पर है. इस घोषणापत्र पर जी-7 के देशों अमेरिका,कनाडा,जर्मनी,इटली,यूनाइटेड किंगडम, जापान और फ्रांस के पांच आमंत्रित देशों भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका,दक्षिण कोरिया के साथ यूरोपीयन यूनियन ने भी हस्ताक्षर किया. इस संयुक्त घोषणा पत्र में जोर देकर कहा गया है: “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों, एक ऐसी स्वतंत्रता के रूप में जो लोकतंत्र की रक्षा करती है और लोगों को भय और उत्पीड़न से मुक्त रहने में मदद करती है” को मजबूत किया जाएगा. इसके साथ मानवाधिकारों की रक्षा करने के का भी संकल्प व्यक्त किया गया है. हांगकांग में लोकतंत्र,विगर मुसलमानों के मानवाधिकार और देशों के आर्थिक और लोकतांत्रिक खुलेपन की वकालत भी की गयी है.
लेकिन पिछले दो सालों में ही लोकतंत्र के खुलेपन और आर्थिक क्षेत्र में वैश्विक सहयोग को दरकते देखा गया, जब जी-7 के देशों ने वैश्विक महामारी के दौर में दूसरे देशों की मदद से मुकरते देखे गए. इटली ही जब पिछले साल तबाही के कगार पर था और ऐसा लग रहा था कि इटली को बचाना संभव नहीं है, तब उसे क्यूबा से आए डॉक्टरों और नर्सो की मदद मिली. जी-7 के देश तब अपने ही देश की सीमाओं में संकीर्ण राष्ट्रवाद की वकालत करने लगे. 2021 में जरूर इन में कुछ देशों ने भारत का मदद भेजा, लेकिन वह भी उस जनमत के दबाव में जो उन देशों की मीडिया और नागरिकों के कारण पैदा हुआ.
जी-7 देशों और आमंत्रित देशों के आतंरिक लोकतंत्र और मानवाधिकार के हालात तो उन वैश्विक रैंकिंग से ही जाहिर हो जाती है, जिसे डेमोक्रेसी और मानाधिकार के प्रतिष्ठित मंचों ने जारी किया है. 2020 की रैंकिंग के अनुसार, कनाडा दुनिया में लोकतंत्र इंडेक्स में 5वें स्थान पर है, लेकिन मानवाधिकार इंडेक्स में वह 16वें स्थान पर. इसी तरह अमेरिका लोकतंत्र इंडेक्स में 25 वें और मानाधिकार इंडेक्स में 17 वें नंबर पर है. जर्मनी लोकतंत्र के मामले में 14वें और मानवाधिकार मामले में 6ठे स्थान पर है. फ्रांस का रिकॉर्ड तो बहुत बुरा है वह लोकतंत्र इंडेक्स में 24 और मानवाधिकार के क्षेत्र में 26 वें स्थान पर है. जापान भी क्रमश: 21वें और 19वें स्थान पर है.
आमंत्रित देशों में भारत दोनों ही इंडेक्स में बुरे प्रदर्शन के लिए दर्ज हैं. लोकतंत्र इंडेक्स में वह 53वें और मानवाधिकार में 131वें स्थान पर है. इस मंच से नरेंद्र मोदी ने साइबर स्वतंत्रता की आवाज बुलंद किया. शायद वे भूल गए कि साइबर स्पेस में ही कार्टून बनाने वालों और सरकार के आलोचकों को लंबे समय से जेल में उनकी ही सरकार ने किस तरह रखा गया है. साथ ही सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए उनकी सरकार ने क्या कदम उठा रखे हैं. दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण कोरिया के रिकॉर्ड भी बेहतर नहीं हैं. दुनिया के शीर्ष पांच देशों से बाहर ये देश लोकतंत्र और मानवाधिकार का मसीहा बन रहे हैं.